Sunday 27 December 2020

मुहम्मद, अल्लाह के रसूल


मुहम्मद, अल्लाह के  रसूल 

 होशियार मुहम्मद जैसे लोग अल्लाह का मुखौटा पहन कर भेड़ों की भीड़ में खड़े होकर कम अक़लों के ख़ुदा बन सकते हैं.
दो चार नस्लों के बाद वह मुस्तनद भी हो जाते हैं. 
ये हमारी पूरब की दुन्या की ख़ासियत है. 
मुहम्मद ने अल्लाह का रसूल बन कर कुछ ऐसा ही खेल खेला 
जिस से सारी दुन्या मुतास्सिर है. 
मुहम्मद इन्तेहाई दर्जा ख़ुद परस्त और ख़ुद ग़रज़ इंसान थे. 
वह हिकमते अमली में चाक चौबंद थे, 
पहले मूर्ति पूजकों को निशाना बनाया, 
अहले किताब (ईसाई और यहूदी) को भाई बंद बना रखा, 
कुछ ताक़त मिलने के बाद मुल्हिदों और दहरियों ( कुछ न मानने वाले, नास्तिक ) को निशाना बनाया, और मज़बूत हुए, तो अहले किताब को भी छेड़ दिया कि 
इनकी किताबें असली नहीं हैं, इन्हों ने फ़र्ज़ी गढ़ ली हैं, असली तो अल्लाह ने वापस ले लीं हैं. हाँला कि अहले किताब को छेड़ने का मज़ा इस्लाम ने भरपूर चखा, और चखते जा रहे हैं मगर ख़ुद परस्त और ख़ुद ग़रज़ मुहम्मद को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. 
वह हर किसी के सर को अपने सजदे में झुका हुवा देखना चाहते थे, 
इसके अलावा कुछ भी नहीं.
ईमान लाने वालों में एक तबका मुन्किरों का पैदा हुआ, 
जिसने इस्लाम को अपना कर फिर तर्क कर दिया, 
जिसने मुहम्मदी अल्लाह को क़रीब से देखा तो इसे झूट क़रार दिया, 
उनको ग़ालिब मुहम्मद ने क़त्ल कर देने का हुक्म दिया, 
इससे बा होश लोगों का सफ़ाया हो गया, 
जो डर कर इस्लाम में वापस हुए वह मुरतिद कहलाए.
मुहम्मद ख़ुद सरी, ख़ुद सताई, ख़ुद नुमाई और ख़ुद आराई के पैकर थे. 
अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ चाहा, पा लिया, 
मरने के बाद भी कुछ छोड़ना नहीं चाहते थे कि ख़ुद को पैग़म्बरे आख़रुज़ ज़मा बना कर क़ायम हो गए, यही नहीं मुहम्मद अपनी जिहालत भरी क़ुरआन को अल्लाह का आख़री निज़ाम बना गए. 
मुहम्मद ने मानव जाति के साथ बहुत बड़ा जुर्म किया है जिसका ख़म्याज़ा सदियों से मुसलमान कहे जाने वाले बन्दे भर रहे है. 
अध् कचरी, अधूरी, पुर जेह्ल और नाक़िस बातों को आख़री निज़ाम क़रार दे दिया है. 
क्या उस शख़्स के सर में ज़रा भी भेजा नहीं था? 
कि वह इर्तेक़ाई तब्दीलियों को समझा ही नहीं सका. 
क्या उसके दिल में कोई इंसानी दर्द था ही नहीं कि इसके झूट एक दिन नंगे हो जाएँगे,
तब इसकी उम्मत का क्या हश्र होगा?
आज इतनी बड़ी आबादी हज़ारों झूट में क़ैद में, मुहम्मद की बख़्शी हुई सज़ा काट रही है. वह सज़ा जो इसे विरासत में मिली हुई है, 
वह सज़ा जो ज़हनों में पिलाई हुई घुट्टी की तरह है, 
वह क़ैद जिस से रिहाई ख़ुद क़ैदी नहीं गवारा करता, 
रिहाई दिलाने वाले से जान पर खेल जाता है. 
इन पर अल्लाह तो रहेम करने वाला नहीं, आने वाले वक़्तों में देखिए, क्या हो? 
कहीं ये अपने बनाए हुए क़ैद ख़ाने में ही दम न तोड़ दें. 
या फिर इनका कोई सच्चा पैग़म्बर पैदा हो.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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