Monday 28 December 2020

सहाबी ए किराम


सहाबी ए किराम  

आम मुसलमान मुहम्मद कालीन युग में इस्लाम पर ईमान लाने वाले मुसलमानो को जिन्हें सहाबी ए कराम कहा जाता है, पवित्र कल्पनाओं के धागों में पिरो कर उनके नामों की तस्बीह पढ़ा करते हैं, 
जब कि वह लोग ज़्यादः तर ग़लत थे, 
वह मजबूर, लाख़ैरे, बेकार और ख़ासकर जाहिल लोग हुवा करते थे. 
क़ुरआन और हदीसें ख़ुद इन बातों के गवाह हैं. 
अगर अक़ीदत का चश्मा उतार के, तलाशे हक़ की ऐनक लगा कर 
इसका मुतालिआ किया जाए तो सब कुछ क़ुरआन और हदीसों में 
ही अयाँ और निहाँ है .   
आम मुसलमान मज़हबी नशा फ़रोशों की दूकानों से और इस्लामी मदारियों से जो पाते है वही जानते हैं, इसी को सच मानते हैं. 
क़ुरआन में मुहम्मद का ईजाद करदा भारी आसमान वाला अल्लाह 
अपनी जेहालत, अपनी हठ धर्मी, अपनी अय्यारियाँ, अपनी चालबाजियाँ, 
अपनी दगाबज़ियाँ, अपने शर साथ साथ अपनी बेवकूफ़ियाँ 
खोल खोल कर बयान करता है. 
मैं तो क़ुरआनी फिल्म का ट्रेलर भर आप के सामने अपनी तहरीरों में पेश कर रहा हूँ. 
मेरा दावा है कि मुसलमानो को अँधेरे से बाहर निकालने के लिए एक ही इलाज है कि इनको नमाज़ें इनकी मादरी ज़ुबान में तर्जुमें की शक्ल में पढ़ाई जाएँ.  
इन्हें बिल जब्र क़ुरआनी तरजुमा सुनाया जाए. 
जदीद क़दरों के मुक़ाबिले में क़ुरआनी दलीलें रुसवा की जाएँ 
जोकि इनका अंजाम बनता है, 
तब जाकर मुसलमान इंसान बन सकता है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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