Thursday 3 December 2020

तलवार और क़लम


तलवार और क़लम 

फ़तह मक्का के बाद मुसलामानों में दो बाअमल गिरोह ख़ास कर वजूद में आए जिन का दबदबा पूरे खित्ता ए अरब में क़ायम हो गया. 
पहला था तलवार का क़ला बाज़ और दूसरा था क़लम बाज़ी गर. 
अहले तलवार जैसे भी रहे हों बहर हाल अपनी जान की बाज़ी लगा कर अपनी रोटी हलाल करते, मगर इन क़लम के बाज़ी गरों ने आलमे इंसानियत को जो नुकसान पहुँचाया है,  उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती. 
अपनी तन आसानी के लिए इन ज़मीर फ़रोशों ने मुहम्मद की असली तसवीर का नक़शा ही उल्टा कर दिया. इन्हों ने क़ुरआन की लग्वियात को अज़मत का गहवारा बना दिया. 
यह आपस में झगड़ते हुए मुबालग़ा आमेज़ी (अतिशोक्तियाँ ) में एक दूसरे को पछाड़ते हुए, झूट के पुल बांधते रहे. 
क़ुरआन और कुछ असली हदीसों में आज भी मुहम्मद की असली तस्वीर सफ़ेद और सियाह रंगों में देखी जा सकती है. इन्हों ने हक़ीक़त की बुनियाद को खिसका कर झूट की बुन्यादें रखीं और उस पर इमारत खड़ी कर दी.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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