Tuesday 22 December 2020

मुहम्मद की दीवानगी


मुहम्मद की दीवानगी 

कितना जालिम तबा था अल्लाह का वह ख़ुद साख़्ता रसूल? 
बड़े शर्म की बात है कि आज हम उसकी उम्मत बने बैठे हैं. 
सोचें कि एक शख़्स रोज़ी की तलाश में घर से निकला है, 
उसके छोटे छोटे बाल बच्चे और बूढे माँ बाप उसके हाथ में लटकती रिज़्क़ की पोटली का इन्तेज़ार कर रहे हैं और इसको मुहम्मद के दीवाने जहाँ पाते हैं क़त्ल कर देते हैं? 
एक आम और ग़ैर जानिबदार की ज़िन्दगी किस क़दर मुहाल कर दिया था मुहम्मद की दीवानगी ने. बेशर्म और ज़मीर फ़रोश ओलिमा उल्टी कलमें घिस घिस कर उस मुज्रिमे इंसानियत को मुह्सिने इंसानियत बनाए हुए हैं. 
यह क़ुरआन उसके बेरहमाना कारगुज़ारियों का गवाह है और शैतान ओलिमा इसे मुसलमानों को उल्टा पढा रहे हैं. 
हो सकता है कुछ धर्म इंसानों को आपस में प्यार मुहब्बत से रहना सिखलाते हों मगर उसमें इसलाम हरगिज़ नहीं हो सकता. मुहम्मद तो उन लोगों को भी क़त्ल कर देने का हुक्म देते हैं जो अपने मुस्लमान और काफ़िर दोनों रिश्तेदारों को निभाना चाहे. 
आज तमाम दुन्या के हर मुल्क और हर क़ौम, यहाँ तक कि क़ुरानी मुस्लमान भी इस्लामी दहशत गर्दी से परेशान हैं. इंसानियत की तालीम से नाबलद, क़ुरानी तालीम से लबरेज़ अलक़ाएदा और तालिबानी तंजीमों के नव जवान अल्लाह की राह में तमाम इंसानी क़द्रों पैरों तले रौंद सकते हैं, इर्तेकई जीनों को तह ओ बाला कर सकते हैं. 
सदियों से फली फूली तहजीब को कुचल सकते हैं. हजारों सालों की काविशों से इन्सान ने जो तरक़्क़ी की मीनार चुनी है, उसे वोह पल झपकते मिस्मार कर सकते हैं. इनके लिए इस ज़मीन पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है एक नाकिस सर के सिवा, जिसके बदले में ऊपर उजरे अज़ीम है. इनके लिए यहाँ पाने के लिए भी कुछ नहीं है सिवाए इस के कि हर सर इनके नाक़िस इसलाम को क़ुबूल करके और इनके अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद के आगे सजदे में नमाज़ के वास्ते झुक जाए. 
इसके एवज़ में भी इनको ऊपर जन्नतुल फ़िरदौस धरी हुई है, 
पुर अमन चमन में तिनके तिनके से सिरजे हुए आशियाने को इन का तूफ़ान पल भर में पामाल कर देता है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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