मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ (1)
एक बार अपने ख़ुदा के वजूद का तसव्वुर अपनी ज़ेहनी सतह पर बड़ी गैर जानिब दारी से क़ायम करो. बस कि सच का मुक़ाम ज़ेहन में हो. सच से किसी शरीफ़ और ज़हीन आदमी को इंकार नहीं हो सकता, इसी सच को सामने रख कर ख़ुदा का वजूद तलाशो, हमारे कुछ सवालों का जवाब खुद को दो.
१-क्या ख़ुदा हिदुओं, मुसलामानों, ईसाइयों और दीगर मज़ाहिब के हिसाब से जुदा जुदा हो सकता है?
२- क्या ख़ुदा भारत, चीन, योरोप, अरब, अमरीका और जापान वगैरा के जुग़राफ़ियाई एतबार से अलग अलग हो सकता है?
३- क्या खुदा नस्लों, तबकों, फिरकों, संतों, गुरुओं, पैगम्बरों और क़बीलों के एतबार से जुदा जुदा हो सकते हैं?
४- समाज के इज्तेमाई (सामूहिक) फैसले के नतीजे से बरआमद खुदा क्या हो सकता है?
५- खौफ़, लालच, जंग ओ जेहाद से बरामद किया हुआ खुदा क्या सच हो सकता है?
६- क्या ज़ालिम, जाबिर, ज़बर दस्त, मुन्तकिम, चालबाज़, गुमराह करने वाली हस्ती खुदा हो सकती है?
७-पहले हमल में ही इंसान की क़िस्मत लिख्खे, फिर पैदा होते ही कांधों पर आमाल नवीस फ़रिश्ते मुक़र्रर करे. इसके बाद यौमे हिसाब मुनअकिद करे, क्या ऐसा कोई खुदा हो सकता है?
८-क्या खुदा ऐसा हो सकता है जो नमाज़, रोज़ा, पूजा पाठ, चढ़वाया और प्रसाद वगैरा का लालची हो सकता है?
९- क्या ऐसा खुदा कोई हो सकता है कि जिसके हुक्म के बगैर पत्ता भी न हिले?
तो क्या तमाम समाजी बुराइयाँ इसी का हुक्म हैं. तब तो दुन्या के तमाम दस्तूर इसके ख़िलाफ़ हैं.
१०- कहते हैं ख़ुदा के लिए हर कम मुमकिन है, क्या ख़ुदा इतना बड़ा पत्थर का गोला बना सकता है, जिसे वह खुद न उठा पाए?
मुसलमानों! इन सब सवालों का सही सही जवाब पाने के बाद तुम चाहो तो बेदार हो सकते हो.
जगे हुए इंसान को किसी पैगम्बर या मुरत्तब किए हुए अल्लाह की ज़रुरत नहीं होती है.
जगे हुए इंसान के का रहनुमा खुद इसके अन्दर विराजमान होता है.
याद रखो तुम्हारे जागने से सिर्फ़ तुम नहीं जागते, बल्कि इर्द गिर्द का माहौल जागेगा, चिराग़ जलने के बाद सिर्फ़ चिराग़ रौशनी में नहीं आता बल्कि तमाम सम्तें रौशन हो जाती हैं.
महक उट्ठो अपने अन्दर की खुशबू से. लाशऊरी तौर पर तुम अपनी इस खुशबू को खारजी रुकावटों के बायस पहचान नहीं पाते. ये खुशबू है इंसानियत की. मज़हब तो खारजी लिबास पर इतर का छिडकाव भर है.
छोडो इन पंज रुकनी लग्व्यात को. और इस पंज वकता खुराफ़ात को,
मैं देता हूँ तुम्हें बहुत ही आसान पाँच अरकान ए हयात.
१-सच को जानो. सच के बाद भी सच, सच को ओढो और बिछाओ,
२-मशक्कत, का एक नावाला भी अपने या अपने बच्चों के मुँह में हलाल है, मुफ़्त या हराम से मिली नेमत मुँह में मत जाने दो.
३- जिसारत, सदाक़त को जिसारत की बहुत सख्त ज़रुरत होती है, वैसे सदाक़त अपने आप में जिसारत है.
४. प्यार, इस धरती से, धरती की हर शै से और खुद से भी.
५- अमल, तुम्हारे किसी अमल से किसी को ज़ेहनी या जिस्मानी या फिर माली नुकसान न हो.बस.
क़ुरआनी झूट पर नज़र डालो - - -
"हाम"सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (१)मुह्मिल यानी अर्थ हीन शब्द है. वैसे तो पूरा क़ुरआन ही अर्थ में अनर्थ है, नाइंसाफी और जब्र है.
"हाम"सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (१)मुह्मिल यानी अर्थ हीन शब्द है. वैसे तो पूरा क़ुरआन ही अर्थ में अनर्थ है, नाइंसाफी और जब्र है.
मुहम्मद के ज़ेहन पर अरबी ज़बान का भूत काबिज़ है कि जिसे ये बार बार दोहरा रहे हैं.
लौह यानी पत्थर कि स्लेट जिस पर इबारत खुदी हुई हो. मूसा को ख़ुदा ने दस इबारत खुदी हुई पत्थर की पट्टिका दी थीं "The Ten comondments " जो अरब दुन्या में मशहूर ए ज़माना था. उसी को मुहम्मद अपने कलाम में बार बार गाते हैं कि ये क़ुरआन पत्थर की लकीर है, इस की फोटो कापी कर के जिब्रील लाते हैं.
वह कहते है कि क्या अल्लाह इससे बाज़ आएगा कि उसकी बात नहीं मानते, कभी नहीं. गोया अपने अल्लाह की बे गैरती बतला रहे हैं.
एक गावँइ कहावत है हालांकि फूहड़ है जिसे ज़द्दे क़लम में न लाते हुए भी लाना पड़ रहा है, अल्लाह की संगत का असर जो है कि वह बार बार अपने फूहड़ कलाम में फूहड़ पन को दोहराता है. कहावत यूं है कि "रात भर गाइन बजाइन, भोर माँ देखिन तो बेटा के छुन्याँ ही नहीं" यही कहावत लागू होती है कुरआन पर कि इसकी तारीफों के पुल बंधे है मगर पुल के नीचे देखा तो नाली बह रही थी. कुरआन में कुछ भी नहीं है सिवाए खुद की तारीफ़ के.
"और वह लोग यूँ कहते हैं कि अगर अल्लाह चाहता तो हम लोग उन (बुतों) की इबादत न करते. उनको इसकी कुछ तहक़ीक़ नहीं, सब बे तहक़ीक़ बातें करते है. क्या हमने उनको इससे पहले कोई किताब दे रख्खी है कि वह इससे इस्तेद्लाल करते. और कहते हैं कि अगर कुरआन अल्लाह का कलाम है तो दोनों बस्ती मक्का और तायफ़ के किसी बड़े आदमी पर क्यूँ न नाज़िल किया गया. क्या ये लोग अपने रब की रहमते नबूवत को तक़सीम करना चाहते है?"सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (२०-२१+३१-३२)लोगों का सीधा और वाजिब सवाल और मुहम्मद का टेढ़ा और गैर वाजिब जवाब. मक्का के लोगों का कहना था कि वह पैगम्बरी को तक़सीम ओ ज़रब नहीं करना चाहते थे, वह सिर्फ़ इतना चाहते थे कि कुरआन अगर वाकई अरब में और अरबी ज़बान में आई होती तो किसी संजीदः, सलीक़े मंद, पढ़ा लिखा, नेक तबा, शरीफुन-नफ्स, अम्न पसंद, ईमानदार, साहिबे किरदार, साहिबे इंसाफ, साहिबे फ़िक्र के हिस्से में आती, न कि किसी झूठे और शर्री के हिस्से में.कलामे दीगराँ - - -
"मैं कहता आँखन की देखी, तू कागत की लेखी""कबीर"इसे कहते हैं कलाम पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
आप जो लिख रहे हैं वह इतना ज्यादा सच्चा और झकझोर देने वाला है कि यकीन ही नहीं हो पाता कि कोई हिन्दुस्तान में ऐसा सोच भी सकता था क्या? (विदेशों में इस मसले पर अंग्रेजी में काफी सोच समझ कर कई पढ़े लिखे पत्रकार और लेखकों ने कुछ किताबें लिखी हैं जिनमें इस बात को बहुत गहराई से महसूस किया गया है कि वास्तव में मुहम्मद साहब नामक व्यक्ति द्वारा स्थापित कुरान एक धर्मग्रंथ नहीं बल्कि उनकी राजनैतिक तथा आर्थिक वासना को पूरा करने के लिए लिखा गया, मनोवैज्ञानिक रूप से बंद कर देने वाला एक पहेलीनुमा शातिर ग्रंथ था.)
ReplyDeleteसच मानिए आप जैसे लोगों की इस देश और दुनिया के करोड़ों अरबों मुस्लिम लोगों को सख्त जरूरत है ताकि उनकी आंखें खुलें और वे कुरान के सच को समझकर तथा इस पर से अंधा विश्वास हटाकर एक ऐसी नजर से दुनिया को देखें जिसमें सबकी शांति तथा तरक्की में ही ईश्वर या खुदा बसता है....
आपने जो बेहद साहस का काम किया है उससे पैदा होने वाले खतरे को देखते हुए समझा सकता है कि आपने अपना ई-मेल पता क्यों अपनी प्रोफाइल पर नहीं डाला.... (आखिर इस्लाम नाम के इस खतरनाक सिस्टम में इस बात की सभी संभावनाओं पर विराम जो लगा दिया गया था कि कोई इसकी चालाकी भरी बुराइयों पर जरा सी भी उंगली उठा सके)
कृपया मुझे मेरे ई-मेल पर संपर्क करें मेरा पता है seelukutta@gmail.com.
आपकी गोपनीयता का सम्मान करते हुए मैं कभी भी आपका असली नाम या ई-मेल पता नहीं जानना चाहूंगा अगर आप ऐसा न चाहें तो; और चाहें तो ऐसी ही कोई अटपटा ई-मेल पता बनाकर मुझसे संपर्क करें, मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी :) लेकिन आप निश्चित तौर पर कुछ हजार लोगों को भी इस्लाम और कुरान में भरी नफरत और हिंसा को छोड़कर इंसानियत की राह सिखा सके तो भले ही आपको दुनिया जाने न जाने लेकिन इस संसार से जाने के बाद कुछ लोग अपने दिल में आपको याद करेंगे जो एक नई रोशनी में दुनिया को देख पाएंगे...
मैं जितना ही आपके लेखों को पढ़ता जाता हूँ उतना ही हैरान होता जाता हूँ कि आखिर कैसे आप इतनी बारीकी से कुरान के पन्नों के दरमियान छुपी खतरनाक इबारतों को समझ सके और इस बात का भी एहसास कर सके कि यह नफरत से भरा पुलिंदा वास्तव में उन करोड़ों लोगों की जिंदगी तबाह करने की ओर तो बढ़ ही रहा है जिनका कुसूर सिर्फ इतना है कि वे एक मुस्लिम के घर में पैदा हुए, साथ ही साथ बाकी सारी दुनिया को भी सिर्फ इसलिए कष्ट देने पर तुले हुए हैं कि वे मुस्लिम नहीं हैं, जिसमें उन बेचारों की कोई भी गलती नहीं है... आप सच में एक संत साबित हो सकते हैं आज के मुस्लिम लोगों के लिए जो उनकी आंखें खोलकर सच दिखा सके और शांति और प्रगति का पाठ पढ़ा सके... आप जल्द से जल्द मुझसे संपर्क करें मेरा ई-मेल पता है seelukutta@gmail.com
ReplyDeleteप्लीज़ इस बात का बुरा न मानें कि मैंने यह अटपटा सा लगने वाला ई-मेल पता बनाया है, मुझमें सच में आप जितनी हिम्मत नहीं है इस्लाम नाम की इस आतंकवादी साजिश के पैरोकारों से टकराने की....
मैं एक बार फिर से कहना चाहता हूँ कि मुसलमानों से सच में मुझे कोई भी घृणा नहीं है... मुझे उनके प्रति सहानुभूति है क्योंकि वे बेचारे तो फँसे हुए हैं इस बेसिरपैर की दूसरे धर्मों के प्रति नफरत से भरी बकवास को सच मानने के लिए और साथ ही साथ अपना बेड़ा गर्क करने के लिए भी.... मुझे नफरत है इस जहरबुझी बकवास कुरान से जिसमें रोशनी है ही नहीं और जो कुंठा से भरी मूर्खता और अँधेरे का ही रास्ता दिखाती है.... आप ही सोचिए कैसे इस कौम का भला होगा जब तक यह इस मूर्खतापूर्ण विचारधारा को छोड़कर एक सच्चे मानव के तौर पर और सभी जीवों का भला करने की दृष्टि से सोचना शुरू करेंगे....
ReplyDeleteमुझे जल्दी से जल्दी संपर्क करें क्योंकि आप एक नायाब मुस्लिम व्यक्ति की तरह दिख रहे हैं.... हालांकि आपके जैसे और भी जो मुस्लिम लोग हैं वे बेचारे चुप रहने को अभिशप्त हैं... ईश्वर या खुदा अगर है तो उनको रोशनी का रास्ता दिखाए ताकि वे इस खूबसूरत दुनिया में रहने के असली मायने कम से कम जान तो सकें.... आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मानवता और सारे मासूम और भोले जीवों से भरी इस दुनिया को मुहम्मद साहब के लिखे खतरनाक कुरान से निकली मूर्खता और नफरत की खौफनाक आग से बचाने के लिए की गई शुरुआत के लिए.... आपकी हर कष्ट से सदा रक्षा हो और आप मुसलमानों को इस गंदी मानसिकता को परे करके और इस कुरान की असलियत को समझकर अन्य धर्मों के मानने वाले इंसानों के साथ सहृदयतापूर्वक शांति व प्रसन्नता से जीते और सबके साथ उन्नति करते देखें....
seelukutta@gmail.com
बेहद झकझोरने वाला आलेख... मनन करने योग्य...
ReplyDeleteमहोदय,
ReplyDeleteशुक्रिया कि आपने मुझे समझा और मेरे अभियान को जाना.
मैं एक साधारण इंसान हूँ , मेरी कोई तमन्ना नहीं सन्त ओ सूफी बनने की.
मुसलमान दुन्या में सबसे ज्यादह मज़लूम कौम है जिस पर कोई और नहीं ,सिर्फ इस्लाम के एजेंट ज़ुल्म करते चले आ रहे हैं जिनका ज़रीया मुआश क़ुरआन फरोशी है,इसके लिए वर्ग विशेष कहे जाने वाले शेष रहें या जहन्नम में जाएँ. धर्म के धन्धेबाज़ उप महाद्वीप में सब ऐसे ही हैं. हिन्दू ज़्यादः ग्रस्त है इन से मगर उसमें बहुत से रिफर्मर्स पैदा हुए हैं,जिनका असर मानव समाज पर है. मुसलामानों में अभी तक कोई नहीं पैदा हुवा, शायद मुझे छोड़ कर. मगर हाँ ! कि मैं जन साधारण में से हूँ.
आप क्यूँ मुझे नजदीक से देखना चाहते है?
मुलाक़ात "कमेट्स" से होती रहेगी. आप मुझे सत्य समझे तो यही बस मेरे लिए काफी है. आप मेरे साथ कोई सुलूक करना चाहते हैं तो "हर्फ़ ए ग़लत के पाठक बढाइए, मानवता के प्रति ये आप का एहसान होगा.
मैं अपने पुराने साथी 'बारतीय नागरिक' का आभार व्यक्त करता हूँ.
मोमिन जी आपका जवाब मिला और सच मानिए बेहद ठंडा सा एहसास हुआ... शायद आपको यक़ीन न हो मेरी बात पर लेकिन आपका ब्लॉग पढ़ने के बाद एक हिंदू होने के बावजूद सारे संसार मुस्लिमों की इस बदकि़स्मती पर बहुत मुझे अफसोस होता था कि उनकी आंखें, कान और बुद्धि सब बेहद मुहम्मदी कुरान में लिखित भयानक डर के बेहद मोटे पर्दों से इतनी बुरी तरह बंद कर दी गई है कि उनमें से कोई सच देखने तो छोडि़ये सोचने की भी हिम्मत नहीं कर पाता.... सोचिए कैसा भयानक शैतानी दिमाग़ रहा होगा उस इंसान का जिसने ऐसे पुख्ता सिस्टम की ईजाद की जो अपने जाने के 1500 साल बाद भी करोड़ों-अरबों लोगों की सोच पर भी पर्दे नहीं बल्कि भारी-भरकम दरवाजे़ लगा चुका है और अभी तक करता जा रहा है एक वायरस की तरह... सोच कर ही आत्मा कांप उठती है और बहुत गुस्सा आता है उस पर जिसे भगवान कहते हैं कि क्या वह उस व्यक्ति को अच्छी सोच नहीं दे सकता था???
ReplyDeleteआप कृपया कभी भी ऐसा न सोचें कि मैं आपको नजदीक से देखना या मुलाकात का आकांक्षी हूँ, इसीलिए मैंने आपको एक बेहद अटपटे से लगने वाले ई-मेल पते का हवाला दिया और आपसे भी कहा कि आप चाहें तो ऐसी ही कोई रास्ता चुन सकते हैं मुझसे बात करने का... सच कहूँ तो आपको (बिना आपकी असली पहचान जाने) इसलिए करीबी से जानना चाहता था कि देखूँ कैसे इस आदमी ने भारत के किसी छोटे से कस्बे या गॉंव (आपके बात कहने के तरीके में जो दम है वह बहुतया बड़े शहरों के रहने वाले लोगों में नहीं पाया जाता सर) जैसी जगह में एक लंबी उम्र बिताने के बाद इतनी दिमागी हिम्मत और जुर्रत पाई कि उस बंद सुरंग से बाहर निकल कर देख भी सकें जो तोड़ना एक आम मुस्लिम के लिए सदियों से असंभव होता आया है.. विदेशों में रहने वाले कई पूर्व-मुस्लिम आपके जैसी सच्ची मुहिम पर चल रहे हैं जिनमें I.Q. Al Rassooli एक हैं और उन्होंने http://www.ummat-al-kuffar.org नाम से एक वेबसाइट चला रखी है जिसके माध्यम से वह वही कर रहे हैं जो आप कर रहे हैं और इस साइट से आज के दयनीय मुस्लिमों को मुहम्मदी इस्लाम नाम की यातना से मुक्ति दिलाने की मुहिम में शामिल होने की इच्छा रखने वाले किसी भी धर्म या जाति के लोग जुड़ सकते हैं... अल रसूली जी ईराक में पैदा हुए और पूरी तरह जवान होने से पहले (यानि इससे पहले कि इस भयानक और अंधेरी सुरंग की मांद तक गिर पाते जिसके बाद निकलना आम जज्बे और दृढ़ता वाले व्यक्ति के लगभग असंभव होता है) ही वे आगे की पढाई के लिए किसी पश्चिमी देश चले गए और तब वे इस बात का संज्ञान ले पाए जो आपने भारत के किसी कोने में अकेले बैठ कर ले लिया, यह बात वास्तव में हतप्रभ कर देने की सीमा तक चकित करती है...
अल रसूली जी और आप के अलावा और भी बहुत से लोग हैं जो मुस्लिम हैं लेकिन इस धर्म से जुड़े लोगों की मानसिकता के परिष्कार और उन्हें इस गुलाम मानसिकता से मुक्ति दिलाने में लगे हैं. अयान हिरसी अली नाम की बेहद हिम्मत वाली महिला जो आज तक अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही है, की लिखी कहानी पर इस्लाम में औरतों की बदहाली पर Submission नाम से एक फिल्म बनाई गई थी... इसके अलावा Fitna - The Movie के नाम से एक और फिल्म बनी है जिसमें कुरान की उन बेहद खतरनाक आयतों का हवाला दिया गया है जो मुस्लिमों को बाकायदा दूसरे धर्म वाले लोगों को कत्ले आम करने और उनके माल को लूट कर खा जाने की आजादी देती हैं. (इस फिल्म को Host करने वाली वेबसाइटों ने कट्टरपंथी मुस्लिमों के हाथों मारे जाने के डर से इस फिल्म को अपनी वेबसाइट पर डालने के अगले दिन ही हटा दिया क्योंकि नीदरलैंड में रहने वाले मुस्लिमों ने वहां की सरकार को सर्वत्र खून-खराबा करने की धमकी दी थी)
ReplyDeleteमैं सुनकर अत्यधिक चिंतित हूँ कि इनमें से विशेषकर 24 आयतें इतनी सारे विश्व की शांति के लिए इतनी ज्यादा खतरनाक हैं कि 1980 के दशक में सीताराम गोयल नामक एक व्यक्ति ने कलकत्ता के कोर्ट में कुरान को देश की शांति के लिए घातक बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी जिसे The Calcutta Quran Petition के नाम से जाना गया, कहने की जरूरत नहीं यह केस तो खारिज हुआ ही इसकी प्रतिक्रिया में कलकत्ता, कश्मीर, बिहार समेत बंगलादेश में तो इतने भयानक दंगे हुए कि करीब 12 हिंदू मार दिए गए और लगभग 100 घायल हुए... सब कुछ इस नामुराद मुहम्मदी कुरान की वजह से. (आपसे मेरा विशेष आग्रह है कि वे 24 आयतें कौन सी हैं और उनमें मोहम्मद नाम के इस राक्षस ने ऐसा क्या भयानक लिखा है यह अवश्य बताएं ताकि मुस्लिम मौलवियों के इस सच का भी पर्दाफाश हो सके कि उन आयतों को गलत परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया था)
आपमें और अयान हिरसी अली और अल रसूली जी जैसे मानवता के दूत मुस्लिमों में सिर्फ इतना फर्क है कि चूंकि वे लोग अपना काम इंग्लिश में या दूसरी अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में करते हैं इसलिए उनकी बात बहुत अधिक लोगों तक पहुंचती है, आप अपना काम चूंकि सिर्फ हिन्दी में करते हैं इसलिए आप की बात अधिक लोगों तक पहुंच नहीं पाती, लेकिन मैं यह बात दावे से कह सकता हूँ कि आप की बात सुनकर एक मुस्लिम पर अधिक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि उन लोगों का लेखन एक विश्लेषक के नजरिए से या एक पीडि़त व्यक्ति की दृष्टि से होता है और आपका किसी सुरंग में पड़े व्यक्ति की ओर प्यार और सहानुभूति से अपना हाथ बढ़ाने वाले मार्गदर्शक की दृष्टि से... मैं भी इस नेक मुहिम में आपकी सहायता करना चाहता हूँ लेकिन वह किस प्रकार से हो सकता है इसकी चर्चा क्षमा कीजिएगा मैं टिप्पणियों के माध्यम से नहीं कर सकता क्योंकि वे खुले मैदान में किए गए वार्तालाप की तरह होती हैं जिन्हें आपके उद्देश्य से घृणा करने वाले लोग भी सुन सकते हैं, और मानवता को बचाने के लिए जोखिम उठाने वाले लोग मैदान में खड़े होकर बात करें तो उनकी सफलता की आशाएं पहले ही धूमिल हो जाती हैं.... शेष कुशल है, आपको मेरा साधुवाद तथा सादर नमस्कार...