Saturday 26 February 2011

सूरह दुखान ४४- परा २५ (1)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह दुखान ४४- परा २५ (1)

आगाही


एक दिन मुहम्मद अपने मरहूम दोस्त इब्ने सय्यास के घर की तरफ़ चले, पास पहुँचे तो देखा कि इब्ने सय्यास का बेटा मैदान में अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था. उसे मुहम्मद की आमद की उसे ख़बर न हुई, जब मुहम्मद ने उसे थपकी दी तो उसने आँख उठ कर उनको देखा.
मुहम्मद ने उससे पूछा कि -
" तू इस बात की गवाही देता है कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ?"उसने मुहम्मद की तरफ़ दोबारा आँख उठा कर देखा और कहा,
" हाँ मैं इस बात की गवाही देता हूँ कि आप उम्मियों (अनपढ़ों) के रसूल हैं."इसके बाद उसने मुहम्मद से पूछा -
"क्या आप इस बात की गवाही देते हो कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ?"मुहम्मद ने उसके सवाल पर लापरवाई बरतते हुए कहा,
"मैं अल्लाह के तमाम बर हक़ रसूलों पर ईमान रखता हूँ "फिर उससे पूछा -
"तुझको क्या मालूम पड़ता है?"उसने कहा -
"मुझे झूटी और सच्ची दोनों तरह की ख़बरें मालूम पड़ती हैं"मुहम्मद ने कहा -
"तुझ पर मुआमला मख्लूत हो गया."
फिर बोले -
"मैंने तुझ से पूछने के लिए एक बात पोशीदा रख्खी है?"वह बोला -
"वह दुख़ है"मुहम्मद बोले -
"दूर हो! तू अपने मर्तबा से हरगिज़ तजाउज़ न कर सकेगा."साथी ख़लीफ़ा उमर बोले -
"या रसूलिल्लाह अगर इजाज़त हो तो मैं इसे क़त्ल कर दूं"मुहम्मद बोले -
"अगर ये वही दज्जाल है तो तुम इसे क़त्ल करने में क़ादिर नहीं हो सकोगे और अगर ये वह दज्जाल नहीं है तो इसे क़त्ल करने से क्या हासिल?"उस बहादर लड़के का नाम था
" ऐसाफ़"उसने किस बहादरी से कहा है -
"वह दुख़ है"
दुख़ के मानी धुवाँ होता है
मुहम्मद के लिए इससे बड़ा सच हो ही नहीं सकता.
ऐसाफ़ ! तुम पर मोमिन का सलाम पहुँचेशायद इसी दुख़ की सच्चाई पर इस सूरह दुखान का नाम रख्खा गया हो.


अब पढ़िए अल्लाह के धुवाँ धार झूट का फ़साना - - -"हा मीम"
सूरह दुखान ४४- परा २५ आयत (१)जादू गरों का मंतर, लोगों की तवज्जो खींचने के लिए. दुष्ट ओलिमा ने इसमें भी अल्लाह का कोई पैगाम पोशीदा पाया है."क़सम है इस किताब वाज़ह की, कि हमने इसको बरकत वाली रात को उतारा है और हम आगाह करने वाले थे, इस रात में हर हिकमत वाला मुआमला हमारी पेशी से हुक्म होकर तय किया जाता है. हम बवजेह रहमत के जो आपके रब की तरफ़ से हुई है, आप को पैगम्बर बनाने वाले थे. बेशक वह बड़ा सुनने वाला और बड़ा जानने वाला है."सूरह दुखान ४४- परा २५ आयत (२-६)कहते हैं क़ुरआन में कोई फ़र्क या बढ़त घटत नहीं हो सकती यहाँ तक कि ज़ेर ज़बर की भी नहीं. वह तमाम इबारत क़ुरआन बनती गई जो मुहम्मद मदहोशी में बाईस सालों तक बोले और जितना होश में बोले अपनी उम्मियत के साथ वह हदीसें बन गईं. मदहोशी के आलम में बकी गई आयते कुरानी में तर्जुमा निगारों को बड़ी गुंजाईश है कि अर्थ हीन जुमलों को मनमानी करके सार्थक बना लें मर हदीसों को जस का तस रखा गया. जिसमें मुहम्मद के किरदार का आइना है.
ऊपर की आयातों में मदहोशी है कि मुहम्मद जो कुछ कहना चाह रहे है, कह नहीं पा रहे. अल्लाह के रसूल कभी अल्लाह बन कर बातें करते हैं, तो कभी उसके रसूल बन जाते हैं. जहाँ अटक जाते है, वहां कलाम को छोड़ कर आगे बढ़ जाते हैं. कहते हैं
- "आप को पैगम्बर बनाने वाले थे. बेशक वह बड़ा सुनने वाला और बड़ा जानने वाला है." आप वह हो गया?
मुलाहिजा हो -" इस रात में हर हिकमत वाला मुआमला हमारी पेशी से हुक्म होकर तय किया जाता है"कुरआन कभी माहे रमजान में उतरता है और कभी बरकत वाली रात शब क़दर को, वैसे मुहम्मद बाईस सालों तक क़ुरआनी उल्टियाँ करते रहे.

कलामे दीगराँ - - -"मैं ये चाहता हूँ क़ि तुम भलाई के लिए दाना, और बुरे के लिए नादान बने रहो. खुदाए अम्न शैतान को तुम्हारे पैरों से जल्दी ही कुचलवा देगा.""ईसा"इसे कहते हैं कलामे पाक



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment