मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ (2)
आइए मुहम्मदी अल्लाह का ताबूत खोला जाए - - -
और अगर ये बात न होती कि तमाम आदमी एक ही तरह के हो जाएँगे,
तो जो लोग अल्लाह के साथ कुफ्र करते हैं,
उनके लिए उनके घरों की छतें हम चाँदी की कर देते.
और जीने भी जिस पर वह चढ़ कर जाते हैं,
और उनके घरों के कंवाड़े भी और तख़्त भी जिस पर तकिया लगा कर वह बैठते हैं,
और सोने के भी, और ये सब कुछ भी नहीं,
सिर्फ़ दुनयावी ज़िन्दगी की कुछ रोज़ की कामरानी है,
आखरत आप के रब के यहाँ खुदा तरसों के लिए है."सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (३२-३५)उम्मी मुहम्मद क्या बात कहना चाहते हैं? नतीजा अख्ज़ करना मोहल है. बात काफ़िरों के हक़ में जाती है जिसे मुतराज्जिम ने ब्रेकट में अपनी बात रख कर अल्लाह की मदद करके रसूल के हक में किया हुवा है. ऐसे आयतों को मुसलमान कहते हैं कि कुरआन का एक जुमला भी इंसान बना नहीं सकता. बेशक इंसान तो कभी नहीं बनाएगा ऐसा कलाम मगर पागल आदमी ऐसा कलाम दिन भर बडबडाया करता है.
सब लोग बराबर होते तो इंसान के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता था, मगर अल्लाह के लिए मुश्किल खडी हो जाती कि उसको ऐसे रसूल कहाँ मयस्सर होते.
कुफ्फर ने तो अपने घरों की छतें, जीनें और कंवाड़े तो चांदी के कर लिए हैं और मुसलमान फ़क़त अल्लाह हू, अल्लाह हू में मुब्तिला है.
"और जो शख्स अल्लाह की नसीहत से अँधा हो जाए, हम इस पर एक शैतान मुसल्लत कर देते हैं, सो वह इनके साथ हो जाता है, और वह इनको राहे हक़ से रोकता है."सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (३७)तो अल्लाह सब के बड़ा शैतान हुवा जो इंसान के पीछे शैतान लगा देता है, जो उसे बुरी राहों पर चलाता है.
मुसलामानों! यक़ीन करो कि तुम्हारा अल्लाह ही शैतान है जो तुमको तरक़क़ी नहीं करने देता.
आयत में दो अल्लाह के वजूद पर गौर करें.
"तो बस अगर हम आप को उठा लें तब भी वह बदला लेने वाला है."सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (४१)मुहम्मद की लगजिश देखिए कि यहाँ पर अल्लाह उनसे कहता है कि "अगर हम आप को उठा लें तब भी वह बदला लेने वाला है" अल्लाह हाज़िर, अल्लाह गायब की बात करता है.
अल्लाह मुहम्मद को ज़बान देता है कि आपके मरने के बाद भी वह उनके दुश्मनों से इन्तेकाम लेगा.गोया मुहम्मद मरने के बाद भी अपना भूत इंसानों पर तैनात कर रहे हैं.
दर अस्ल ऐसी फ़ितरत मुहम्मद की ज़रूर थी."जो हमारी बातों पर ईमान लाए थे? ? ?(उनका अंजाम ये रहा कि तुम देख रहे हो कि - - -बतलाना भूल गया)
"तुम और तुम्हारी बीवियां खुश खुश जन्नत में दाख़िल हो जाओ,
इनके पास सोने की रेकाबियाँ और गिलास ले जाएँगे, और वहाँ हर चीज़ मिलेगी.
जिसको दिल चाहेगा, जिससे आँखों को लज्ज़त होगी,
और तुम यहाँ हमेशा रहोगे
जन्नत है जिसके तुम मालिक बनाए गए, अपने आमाल के एवाज़,
तुम्हारे लिए इसमें बहुत से मेवे हैं जिन में से खा रहे हो."सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (६९-७३)किस अंदाज़ की चिरकुट गुफतुगू है अल्लाह हिकमत वाले की?
क्या औरतों के आमाल का हिसाब किताब नहीं होता? क्या वह अपने शौहरों के आमाल के सिलह में, अपने शौहरों के हमराह जन्नत में दाख़िल होंगी? वैसे मुहम्मद तो उनको मुकम्मल इंसान भी नहीं मानते थे, कहते थे कि एक दिन उनको दोज़ख दिखलाई गई जहाँ कसरत से औरतें थीं.(एक हदीस)
मुहम्मद के झूठे दीन के प्रचारक बारहा इस धरती पर ज़िल्लत की मौत पा चुके है मगर ये अपनी माँ के खसम ओलिमा कुकुरमुत्ते की तरह पैदा होकर फिर से इंसान को बहकाना शुरू कर देते है.
वाकई ये मुहम्मदी दीन काबिले नफ़रत है.
वाकई ये मुहम्मदी दीन काबिले नफ़रत है.
"सो उनको आप शोगल और तफ़रीह में पड़ा रहने दें यहाँ तक कि उनको अपने इस दिन के साबेक़ा वाक़े हो जिसका इनसे वादा किया गया है."सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (८३)बद नियत रसूल कहता है कि इनको मश्गलों में पड़ा रहने दो ताकि हम उनसे बदला ले सकें.कि इसका वादा पूरा हो, जो इसने इंसानियत के साथ किया था.
"और इसको रसूल के इस कहने की भी खबर है कि ऐ मेरे रब ये ऐसे लोग हैं कि ईमान नहीं लाते तो आप इनसे बे रुख रहिए और यूं कह दीजिए कि तुमको सलाम करते हैं तो तुम को भी मालूम हो जायगा."सूरह ज़ुखरुफ़ -४३ - पारा -२५ - आयत (८९)आयत में बेसिर पैर की बातें ही नहीं बे सिर पैर की भाषा भी है.कलामे दीगराँ - - -"इंसान को न बहुत सादा लौह होना चाहिए न बहुत नरम. क्यूँकि सीधे पेड़ काट दिए जाते हैं और टेढ़े मेढ़े खड़े रहते हैं""गरुण पुराण''(हिदू धर्म)
इसे कहते हैं कलाम पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
बहुत बढ़िया.. तारीफ के लिये शब्द नहीं... एक अच्छे कार्य के लिये धन्यवाद..
ReplyDeleteसेवा में
ReplyDeleteभारतीय नागरिक,
आभार - - -