Tuesday 8 February 2011

सूरह मोमिन ४० परा २४ (3)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह मोमिन ४० परा २४ (3)


धर्म और ईमान के मुख़तलिफ़ नज़रिए और माने, अपने अपने हिसाब से गढ़ लिए गए हैं. आज के नवीतम मानव मूल्यों का तकाज़ा, इशारा करता है कि धर्म और ईमान हर वस्तु के उसके गुण और द्वेष की अलामतें हैं. इस लम्बी बहेस में न जाकर मैं सिर्फ़ मानव धर्म और ईमान की बात पर आना चाहूँगा. मानव हित, जीव हित और धरती हित में जितना भले से भला सोचा और भरसक प्रयास किया जा सके वही सब से बड़ा धर्म है और उसी कर्म में ईमान दारी है.
वैज्ञानिक हमेशा ईमानदार होता है क्यूँकि वह नास्तिक होता है, इसी लिए वह अपनी खोज को अर्ध सत्य कहता है. वह कहता है यह अभी तक का सत्य है कल का सत्य भविष्य के गर्भ में है.
मुल्लाओं और पंडितों की तरह नहीं कि आखरी सत्य और आखरी निज़ाम की ढपली बजाते फिरें.
धर्म और ईमान हर आदमी का व्यक्तिगत मुआमला होता है मगर होना चाहिए हर इंसान को धर्मी और ईमान दार, कम से कम दूसरे के लिए. इसे ईमान की दुन्या में ''हुक़ूक़ुल इबाद'' कहा गया है, अर्थात ''बन्दों का हक़'' आज के मानव मूल्य दो क़दम आगे बढ़ कर कहते हैं ''हुक़ूक़ुल मख़लूक़ात '' अर्थात हर जीव का हक़.
धर्म और ईमान में खोट उस वक़्त शुरू हो जाती है जब वह व्यक्तिगत न होकर सामूहिक हो जाता है. धर्म और ईमान, धर्म और ईमान न रह कर मज़हब और रिलीज़न यानी राहें बन जाते हैं. इन राहों में आरंभ हो जाता है कर्म कांड, वेश भूषा, नियमावली, उपासना पद्धित, जो पैदा करते हैं इंसानों में आपसी भेद भाव.
राहें कभी धर्म और ईमान नहीं हो सकतीं. धर्म तो धर्म कांटे की कोख से निकला हुआ सत्य है, पुष्प से पुष्पित सुगंध है, उपवन से मिलने वाली बहार है. हम इस धरती को उपवन बनाने के लिए समर्पित रहें , यही मानव धर्म है. धर्म और मज़हब के नाम पर रची गई पताकाएँ, दर अस्ल अधार्मिकता के चिन्ह हैं.
आप अक्सर तमाम धर्मों की अच्छाइयों(?) की बातें करते हैं यह धर्म जिन मरहलों से गुज़र कर आज के परिवेश में कायम हैं,
क्या यह अधर्म और बे ईमानी नहीं बन चुके है?
क्या यह सब मानव रक्त रंजित नहीं हैं?
इनमें अच्छाईयां है कहाँ? जिनको एक जगह इकठ्ठा किया जाय, यह तो परस्पर विरोधी हैं..मैं आप का कद्र दान हूँ, बेहतर होता कि आप अंत समय में मानव धर्म के प्रचारक बन जाएँ और अपना पाखंडी गेरुआ वेश भूषा और दाढ़ी टोपी तर्क करके साधारण इंसान जैसी पहचान बनाएं.

अब देखिए कि बादशाह फ़िरओन के दरबार में मुहम्मदी अल्लाह क्या क्या नाटक खेल रहा है - - -"दरबारी वज़ीर मोमिन ने अपनी तक़रीर जारी रखते हुए कहा कि ऐ बिरादराने कौम मुझे डर है कि बड़ी बड़ी कौमों जैसी बरबादी का दिन तुम पर भी आ जाएगा, जैसा कि कौम नूह, कौम आद, और कौम सुमूद वालों का हाल बना और उसके बाद भी बहुत से लोग बर्बाद हो चुके, हालांकि अल्लाह अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने का इरादा नहीं रखता. ऐ बिरादराने कौम मुझको तुम पर एक ऐसे दिन के आ पड़ने का खौफ है जब बहुत चीख पुकार करोगे. वह दिन ऐसा होगा कि पीठ फेर कर भागोगे मगर अल्लाह से बचाने वाला तुम को कहीं भी न मिल सकेगा. याद रखो कि जिसे अल्लाह गुमराही में पड़ा रहने दे तो उसको राह पर कोई नहीं ला सकता."सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (३०-३३)
आसानी से समझा जा सकता है कि आयतें मुहम्मद मक्र बयान करती हैं. वह दरबारी मोमिन की आड़ में अपनी बात कर रहे है.



"फ़िरऔन बोला : ऐ हामान! मेरे लिए एक ऊँची इमारत बनाओ ताकि मैं ऊपर के रास्तों पर पहुँच कर देख सकूँ. आसमानों के रस्ते पर जाना चाहता हूँ, ताकि मूसा के माबूद को झाँक कर देख लूं. मैं तो इसे झूटा समझता हूँ. फ़िरऔन की ऐसी बुरी हरकत अपनी निगाह में बहुत अच्छी मालूम पड़ती थी, जिसके सबब सही रस्ते से उसको रोका गया और फ़िरऔन की हर तदबीर बेअसर और बेकार साबित हुई."सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (४०-४२)मुहम्मदी अल्लाह अपनी ज़बान और कलाम का हक़ तक नहीं अदा कर पा रहा, जिसे मुसलमान अल्लाह का कलाम कहते हैं. इसे तमाम उम्र दोहराते रहते हैं.कहता है - - -
"ताकि मैं ऊपर के रास्तों पर पहुँच कर देख सकूँ. आसमानों के रस्ते पर जाना चाहता हूँ, ताकि मूसा के माबूद को झाँक कर देख लूं."ऐसे गाऊदी अल्लाह को मुसलमान ही गले उतार सकते हैं.
मोमिन वज़ीर कहता है - - -
"मेरी बात बहुत जल्द तुम को याद आकर रहेगी.तब बहुत पछताओगे अब मैं अपने मुआमले अल्लाह के सुपुर्द करता हूँ जो बन्दों को देख रहा है. अल्लाह ने उस मोमिन को उनके करीब के चक्कर से बचा लिया और अज़ाब ने आले फ़िरऔन पर बुरी तरह घेरा डाल दिया."
सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (३८-४५)
मुसलमानों! क्या बिकुल नहीं समझ पाते सच्चाई को या फिर सच से तुम्हें परहेज़ है?
ऐसे अल्लाह के चक्कर में मुसलमान कौम पंसी हुई है.



"मरने के बाद इन्हें सुब्ह ओ शाम आग पर पेश किया जाता है और जिस दिन क़यामत कायम होगी, हुक्म होगा कि फ़िरऔन और उसके साथ वालों को सख्त अज़ाब में दाखिल करो. भयानक होगा वह मंज़र जब आग में गिरने के बाद ये लोग आपस में झगड़ रहे होंगे. तब दबा कर रक्खे गए लोग अपने बड़ों से कहेंगे, तुम्हारे कहने पर चलते थे , फिर क्या तुम मुझ पर से इस आग के अज़ाब को कुछ कम करा सकोगे? बड़े कहेंगे हमको तुमको सभी को इस जहन्नम में पड़े रहना है कि अल्लाह अपने बन्दों के दरमियान फैसला कर चुका है. दोज़खी लोग दोज़ख के दरोगा से कहेंगे, अपने रब से दुआ करो कि किसी एक दिन के वास्ते तो हम को इस अज़ाब से हल्का करदे . जवाब में दोज़ख के अफ़सरान बोलेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल इस अज़ाब की चेतावनी देने नहीं आए ? बोलेंगे कि हाँ ! वह तो बराबर हमको डराते रहे . जहन्नम के अफ़सर कहेंगे कि बस अब बात ख़त्म हुई, तुम खुद दुआ कर लो और काफिरों की दुआ कतई कुबूल नहीं होगी."सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (४७-५०)"मरने के बाद इन्हें सुब्ह ओ शाम आग पर पेश किया जाता है"ताकि उन्हें ताज़ा रखा जा सके.

"जब आग में गिरने के बाद ये लोग आपस में झगड़ रहे होंगे."गोया आपस में धक्के मुक्की कर के गंदे पानी में गिरा दिए गए हों.



इस्लाम अपने बड़े बुजुर्गों की बातों को न मानने का पैगाम दे रहा है.
ये आयतें मुसलामानों की घुट्टी में पिलाई हुई है, इन हराम जादे ओलिमा ने जिसे कि एक बच्चा भी तस्लीम करने में बेजारी महसूस करे.

"कयामत आकर रहेगी लेकिन बहुत से लोग ऐसी बेशक खबर पर भी यकीन नहीं करते."
"ऐसी बेशक खबर पर भी यकीन नहीं करते."
उम्मी की बेशक ख़बरें मुसलामानों का ही यकीन हो सकती हैं.


"अल्लाह ने तुम्हारे लिए रात बनाया ताकि तुम इसमें सुकून और राहत हासिल कर सको और दिन इस लिए कि तुमको अच्छी तरह दिखाई दे, बे शक अल्लाह तो लोगों पर फ़ज़ल फ़रमाने वाला है लेकिन बहुत से लोग शुक्र ही नहीं करते."

मुसलामानों! रात और दिन ज़मीन पर सूरज की रौशनी है जो हिस्सा सूरज के सामने रहता है वहाँ दिन होता है, बाकी में रात, इतनी तालीम तो आ ही गई होगी. अब देखने के लिए दिन की ज़रुरत नहीं पड़ती इसे भी तुम रौशन हो चुके हो. अपने दिमागों को भी रौशन करो. मुहम्मदी अल्लाह के दुश्मन कौमों ने रातों को भी दिन से ज़्यादः रौशन कर लिया है. मुहम्मदी अल्लाह की हर बात गलत साबित हो चुकी है. मुसलमान झूट के अंधेरों में मुब्तिला है," वही तो है जो तुम्हारी पैदाइश मिटटी से करता है, फिर उसे फुटकी बूँद बना देता है, फिर उसको लहू के लोथड़े यानि लहू की फुटकी में तब्दील फ़रमाता है, फिर तुमको बच्चा बना कर बाहर निकालता है, फिर तुम हो कि अपनी जवानी तक पहुँचाए जाते हो, फिर बहुत बूढ़े भी हो जाते हो. कुछ तो अपना वक़्त हो जाने पर जवानी या बुढापे के पहले ही मर जाते हैं, और बाकी बहुत से अपने अपने वक़्त तक बराबर पहुँचते रहते हैं. इन हालात को ध्यान में रख कर अक्ल से काम लो."सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (५९-६७)अक्ल से काम लो और उम्मी की जनरल नालेज पर तवज्जो दो.
इंसान की पैदाइश के सिलसिले में ये उम्मी का गया हुवा ये नया राग है.


"जिन लोगों ने कुरआन को झुटला दिया उनको अभी मालूम हुआ जाता है. कि तौक इनके गर्दनों में होंगी और जंजीरें इन्हें घसीटते हुए खौलते पानी में ले जाएँगी, फिर ये खौलते पानी में झोंक दिए जाएँगे, फिर इनसे पूछा जायगा कि ग़ैर अल्लाह कहाँ गए? जिनको तुम शरीक ठहराते थे? और कहेंगे कि वह तो हम से गायब हो गए, बल्कि हम तो इसके क़ब्ल किसी को नहीं पूजते थे. अल्लाह तआला इस तरह काफ़िरों को गलती में फँसाए रहता है. ये सज़ा इसके बदले में है कि तुम दुन्या में नाहक ही खुशियाँ मनाते थे, जहन्नम के दरवाज़ों में अब दाखिल हो जाओ. अपनी बड़ाई हाँकने वालों का क्या ही बुरा ठिकाना है."सूरह मोमिन ४० परा २४ आयत (७२-७६)"अभी मालूम हुआ जाता है"चौदा सौ साल हो गए अभी तक अल्लाह का अभी नहीं आया.

कलामे दीगराँ - - -
"हे प्रभु!
हम इस दुन्या में क़र्ज़ से मुबर्रा, उस दुन्या में क़र्ज़ से मुबर्रा और फिर तीसरी दुन्या में क़र्ज़ से मुबर्रा रहें. हम क़र्ज़ से बरी हो कर उन राहों और उन जहानों में रिहायश करें जहाँ देवता और हमारे पुरखे रहते हैं"

"अथर वेद"(हिन्दू धर्म)




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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