मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ (2)
"तुम अपने काले करतूत करते वक़्त ये तो न करते थे कि अपने कान आँख और खाल से अपनी हरकत छुपा सकते. लेकिन तुम ज़्यादः तर इस गुमान में रहे कि वह बहुत कुछ जो तुम करते रहे अल्लाह को मालूम नहीं."सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ आयत (२२)ए मुहम्मद तेरे अल्लाह ने शर्म से मुँह छुपा लिया था जब तू अपनी बहू जैनब के साथ काले करतूत कर रहा था .
मुहम्मद एक बेवकूफ साजिशी का नाम है, जिसे नादान मुसलमान समझ नहीं पाते.
"और ये बड़ी बा वक़अत किताब है जिसमें गैर वाकई बात न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से. ये अल्लाह हकीम महमूद की तरफ़ से नाज़िल किया गया है और अगर हम इसे अजमी कुरआन बनाते तो यूँ कहते कि इसकी आयतें साफ़ साफ़ क्यूँ बयान नहीं की गईं. ये क्या बात है कि अजमी कुरआन और अरबी रसूल ? आप कह दीजिए कि ये कुरआन ईमान वालों के लिए राह नुमा और शिफ़ा है. और जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है." सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ आयत (४१-४४) बार बार उम्मी अपना तकिया कलाम कुरआन में दोहराते हैं "न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से." अल्लाह का नया नाम किसी तालीम याफ़्ता ने सुझाया "अल्लाह हकीम महमूद" अस्ल में कुरआन तौरेत और यहूदियत की चोरी है मगर इसमें झूट और जिहालत की आमेज़िश कर दी गई.मालूम हो कि जब उस्मान गनी कुरआन को तरतीब देने पर आए तो इसके आगे से, पीछे ऊपर से और नीचे से ५०% आयतें निकल कर कूड़ेदान में डाल दी गईं थी. कि आप की आयतें इन्तेहाई दर्जे हिमाक़त की थी और कराहियत की भी थीं. अरबी और अजमी की बातें कितनी झोलदार हैं.
कितना मामूली फ़िक्र का रसूल है जो कहता है "जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है.""बहुत जल्द हम अपनी निशानियाँ उनके चारो तरफ़ दिखलाएँगे और खुद इनके अन्दर भी, यहाँ तक कि इनके लिए ये इक़रार किए बगैर कोई चारा न होगा कि ये कुरआन हक़ है. क्या तुम्हारे लिए ये काफ़ी नहीं कि तुम्हारा परवर दिगार हर हर चीज़ पर खुद गवाह है . आगाह हो जाओ कि इसने हर चीज़ को अपने घेरे में ले रखा है."सूरह हा मीम सजदा - ४१-पारा २४ आयत (५३-५४)पहली बार मुहम्मद डरा धमका नहीं रहे बल्कि आगाह कर रहे हैं मगर एक झूट के साथ. कुदरत की निशानियाँ तो चारो तरफ़ रौशन हैं जो इन्हें नज़र नहीं आतीं, नज़र कुछ आता है तो किज़्ब और मिथ्य.
कलामे दीगराँ - - -"अच्छे और बुरे कामों के नतीजे परछाइयों की तरह साथ साथ लगे रहते हैं.""शिन्तो "(जापानी मसलक)इसे कहते हैं कलाम पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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