Tuesday, 22 February 2011

सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ (2)


खालिस काफ़िर ले दे के नेपाल या भारत में ही बाक़ी बचे हुए हैं कुफ़्र और शिर्क इंसानी तहज़ीब की दो क़ीमती विरासतें है. इनके पास दुन्या की क़दीम तरीन किताबें हैं जिन से इस्लाम ज़दा मुमालिक महरूम हो गए हैं. इनके पास बेश कीमती चारों वेद मौजूद हैं, जो कि मुख्तलिफ़ चार इंसानी मसाइल का हल हुवा करते थे, इन्हीं वेदों की रौशनी में १८ पुराण हैं. माना कि ये मुबालगों से लबरेज़ है, मगर तमाज़त और ज़हानत के साथ, जिहालत से बहुत दूर हैं. इसके बाद इनकी शाख़ें १०८ उप निषद मौजूद हैं, रामायण और महा भारत जैसी क़ीमती गाथाएँ, गीता जैसी सबक आमोज़ किताबें, अपनी असली हालत में मौजूद हैं. ये सारी किताबें तखलीक़ हैं, तसव्वर की बुलंद परवाज़ें हैं, जिनको देख कर दिमाग हैरान हो जाता है. और अपनी धरोहर पर रश्क होता है. जब बड़ी बड़ी कौमों के पास कोई रस्मुल ख़त भी नहीं था, तब हमारे पुरखे ऐसे ग्रन्थ रचा करते थे. अरबों का कल्चर भी इसी तरह मालामाल था और कई बातों में वह आगे था, जिसे इस्लाम की आमद ने धो दिया. बढ़ते हुए कारवाँ की गाड़ियाँ बैक गेर में चली गई.
माज़ी में इंसानी दिमाग को रूहानी मर्कज़ियत देने के लिए मफ्रूज़ा माबूदों, देवी देवताओं और राक्षसों के किरदार उस वक़्त के इंसानों के लिए अलहाम ही थे. तहजीबें बेदार होती गईं और ज़ेहनों में बलूगत आती गई, काफ़िर अपने ग्रंथो को एहतराम के साथ ताक़ पर रखते गए. ख़ुशी भरी हैरत होती है कि आज भी उनके वच्चे अपने पुरखों की रचनाओं को पौराणिक कथा के रूप में पहचानते हैं.
कुरआन इन ग्रंथों के मुकाबले में अशरे अशीर भी नहीं. ये कोई तखलीक़ ही नहीं है बल्कि तखलीक़ के लिए एक बद नुमा दाग़ है. मुसलमान इसकी पौराणिक कथा की जगह, मुल्लाओं की बखानी हुई पौराणिक हकीकत की तरह जानते हैं और इन देव परी की कहानियों पर यक़ीन और अक़ीदा रखते है. यह मुसलमान कभी बालिग़ हो ही नहीं सकते. एक वक़्त इस्लामी इतिहास में ऐसा आ गया था कि इंगलिस्तान अरबों के क़ब्ज़े में होने को था कि बच गया. इतिहास कार "वर्नियर" लिखता है "अगर कहीं ऐसा हो जाता तो आज आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पैगम्बर मुहम्मद के फ़रमूदात पढाए जा रहे होते."अरब भी मुहम्मद को देखने और सुनने के बाद कहते थे कि "इसका कुरआन शायर के परेशान ख़यालों का पुलिंदा है" इस हक़ीक़त को जिस कद्र जल्दी मुसलमान समझ लें, इनके हक में होगा .
एक ही हल है कि मुसलमान को तर्क-इस्लाम करके, अपने बुनयादी कल्चर को संभालते हुए मोमिन बन जाने की सलाह है. जिसकी तफ़सील हम बार बार अपने मज़ामीन में दोहराते है. कोई भी गैर मुस्लिम नहीं चाहता कि मुसलमान इस्लाम का दामन छोड़े. अरब तरके इस्लाम करके बेदार हुए तो योरप और अमरीका के हाथों से तेल का खज़ाना निकल जाएगा, भारत के मालदार लोगों के हाथों से नौकर चाकर, मजदूर, मित्री और एक बड़ा कन्ज़ियूमर तबक़ा सरक जाएगा. तिजारत और नौकरियों में दूसरे लोग कमज़ोर हो जाएँगे, गोया सभी चाहते है कि दुन्या कि २०% आबादी सोलवीं सदी में अटकी रहे.
ये हैं गुमराही परोसने वाली क़ुरआनी आयतें - - -

"सो आप इस तरह बुलाते रहिए जिस तरह हुक्म हुवा है. मुस्तक़ीम रहिए और उनकी ख्वाहिश पर मत चलिए और आप कह दीजिए कि अल्लाह ने जितनी किताबें नाज़िल फ़रमाई हैं, सब पर ईमान लाता हूँ और मुझको ये इल्म भी हुवा है कि तुम्हारे दरमियान मैं अदल रख्खूँ . अल्लाह हमारा भी मालिक है और तुम्हारा भी मालिक है और हमारे आमाल हमारे लिए और तुम्हारे आमाल तुम्हारे लिए. हमारी तुम्हारी कुछ बहस नहीं . अल्लाह सबको जमा करेगा और उसी के पास जाना है."सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (१५)अल्लाह सुलह पसँद हो रहा है, इसकी गोट मक्का में फँस चुकी है इसी लिए मुहम्मद की शिद्दत पसँद भाषा बदली बदली लगती है. ये विपत्ति इस्लाम पर थोड़े अरसे के लिए ही आई थी इसी आयत को नेता और मुल्ला आज दोहराया करते हैं कि इस्लाम कहता है तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए और हमारा दीन हमारे लिए. इस सँकट के हटते ही मुहम्मद की आयतें फिर हठ धर्मी पर आ गई थीं. पिछले बाब में आपको याद होगा कि सूरह को अल्लाह के नाम से शुरू नहीं किया गया था. क्यूँकि मुहम्मद ने मुआहदा तोडा था.
"याद रख्खो जो लोग क़यामत के बारे में झगड़ते है बड़ी दूर की गुमराही में में हैं""सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (१८)
मुहम्मद की तमाम आयतें जाहिलों के लिए है जिन पर फ़िक्र बार होती है. आग में पड़े हुए लोग हाथा पाई करेंगे?काश की उनके दिमागों में सवालिया निशान उभरे. इसके पहले मुहम्मद ने कहा है कि नफ्सी नफ्सी का आलम होगा.

"आप यूं कहिए कि मैं तुम से कोई मतलब नहीं रखना चाहता बजुज़ रिश्ते दारी की मुहब्बत के.""सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (२३)मुहम्मद रिश्तेदारों को क़त्ल करने के लिए उनसे मतलब रखना चाहते है. जैसा कि जंग बदर नें उन्हों ने किया, तीस करीबी रिश्तेदारों का गला रेत कर.


"क्या वह लोग कहते हैं कि इन्हों ने अल्लाह पर झूठा बोहतान बाँध रख्खा है?
"और अगर अल्लाह दुन्या में सब बन्दों को रोज़ी फ़राख कर देता तो दुन्या में शरारत करने लगते लेकिन जितना रिज़क़ चाहता है अंदाज़ से हार एक के लिए उतार देता है, वह अपने बन्दों को जानने वाला और देखने वाला है."
"सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (24-२७)लोग सौ फीसदी सच कहते थे. तुम्हारे वारिसों के ज़ुल्म ओ सितम ने झूट को सच बना दिया.
अल्लाह कहाँ खूराक मुहय्या कराता है? लाखों लोग अकाल के गाल में चले जाते है. मासूम बच्चों से लेकर अच्छे बन्दे, चरिंदे और परिंदे तक.


"और मिन जुमला इसकी निशानियों के जहाज़ हैं, समंदर में, जैसे पहाड़. अगर वह चाहे तो हवा को ठहरा दे तो वह समन्दर में खड़े के खड़े रह जाएँ. बेशक इस में निशानियाँ हैं. हर साबिर शाकिर के लिए. या इन जहाज़ों को इनके आमाल के सबब तबाह कर दे और बहुत से आदमियों के लिए दर गुज़र कर जाए. और उन लोगों को जो हमारी आयातों में झगडे निकालते हैं मालूम हो जाए कि इनके लिए कहीं बचाओ नहीं.""सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (३५)मुहम्मदी अल्लाह से ज़्यादः जहाज़ की हवाओं को मल्लाहों ने समझा था और उनके लिए उन्हों ने मस्तूल बनाए थे. अल्लाह आलिमुल गैब को इतना भी पता नहीं कि आने वाला वक़्त बगैर हवा के जहाज़ दौड़ेंगे.
मुहम्मद कैसी बेसिर पर की बातें करते है - - -"या इन जहाजों को इनके आमाल के सबब तबाह कर दे" अब आश्याओं के आमाल भी होने लगे. फरिश्तों,जिन्नातों शैतानों और इंसान के बाद अपनी नई मखलूक जहाजों का वजूद भी शामिल ए मखलूक हुवा

"वाकई अल्लाह जालिमों को पसँद नहीं करता और जो अपने ऊपर ज़ुल्म हो चुकने के बाद बराबर का बदला लेले, सो ऐसे लोगों पर कोई इलज़ाम नहीं और जो सब्र करे और मुआफ़ करदे तो ये अलबत्ता बड़े हिम्मत के कामों में से है.""सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (४०-४२)मुहम्मद की कुछ बाते वाजिब लगती हैं, अगर उनके पहले से चला आ रहा हो तो ये उनकी बात नहीं हुई.

"और अल्लाह जिसे गुमराह करे उसे नजात के लिए कोई रास्ता नहीं.""सूरह शूरा - ४२ - पारा २५ आयत (४६)बेशक अल्लाह से बड़ा शैतान तो कोई हो भी कैसे सकता है.कलामे दीगराँ - - -"अगर तुम में से हर कोई अपने भाई को दिल से मुआफ करेगा तो मेरा बाप बहिश्त में जो बैठा है, वह तुम्हारे साथ भी वैसा ही करेगा?""ईसा"इससे कहते हैं कलम पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

 

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