मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह दुखान ४४- परा २५ (2)
बड़ी मान्यताओं में अल्लाह, ईश्वर और गाड आदि की मान्यता हैं. अगर वह इनमें से कोई होता तो यकीनी तौर पर इंसान को छोड़ कर हर जीव किसी न किसी तरह से उसकी उपासना करता. हर जीव पेट भरने के बाद उमंग, तरंग और मिलन की राह पर चल पड़ता है, न कि कुदरत की उपासना की तरफ. कुदरत का ये इशारा भी इंसान को जीने की राह दिखलाता है जिसे उल्टा ये अशरफुल मख्लूकात तआने के तौर पर उलटी बात ही करता है - - -
इंसान हो या हैवान?
छोटी मान्यताएं हैं यह ज़मीन के जिल्दी रोग स्वयंभू औतार, पयम्बर, गुरु, महात्मा और दीनी रहनुमा.
अगर इन छोटी बड़ी मान्यताएं और कदरों से इंसान मुक्त हो जाय तो वह मानव से महा मानव बन सकता है, जिस दिन इंसान महा मानव बन जायगा ये धरती जन्नत नुमा बन जायगी.
छोटी मान्यताएं हैं यह ज़मीन के जिल्दी रोग स्वयंभू औतार, पयम्बर, गुरु, महात्मा और दीनी रहनुमा.
अगर इन छोटी बड़ी मान्यताएं और कदरों से इंसान मुक्त हो जाय तो वह मानव से महा मानव बन सकता है, जिस दिन इंसान महा मानव बन जायगा ये धरती जन्नत नुमा बन जायगी.
दूसरे ख़लीफ़ा उमर के बेटे अब्दुल्ला से रवायत है कि मुहम्मद ने एक शख्स का हाथ अपने हाथों से काटा, जिसका जुर्म था तीन पैसे की मालियत की चोरी.(मुस्लिम - - - किताबुल हुदूद)
ऐसे ही मुहम्मद ने अपने ही क़बीले की एक मुआज्ज़िज़ खातून का हाथ क़लम कर दिया था, बहुत मामूली चोरी पर. ये तो थी इसकी पैगम्बरी की सख्त मिसाल,
हैरत का मुक़ाम ये है कि यही शख्स कहता है कि "जेहाद में मारे जाने वाली बेकुसूर औरतों और बच्चो को मारना जायज़ है क्यूँकि काफ़िर मिन जुमला काफ़िर होते हैं.''
यह तो हदीसों की बातें थीं कि जिन पर मुसलामानों का एक गुमराह तबक़ा अहले हदीस बना हुवा है, अब चलिए देखें क़ुरआन की नसीहतें क्या कहती हैं - - -
जिस रोज़ हम बड़ी सख्त पकड़ पकड़ेंगे, हम बदला लेंगे."सूरह दुखान ४४- परा २५ आयत (९-१६)अल्लाह के रसूल की पुर फरेब बातों को ख़ातिर में लाइए मगर उनकी पैगम्बरी को मद्दे नज़र रखते हुए. क्या इस मक्कारी को पैगम्बरी पाने का हक़ हासिल होना चाहिए?
मुहम्मदी अल्लाह को हलाकुल्लाह कहा जा सकता है.
यातिब्बा का नाम कहीं से सुन लिया होगा अल्लाह के अनपढ़ रसूल ने.
कलामे दीगराँ - - -"जैसे कि भले लोग अपनी जन की कोई परवाह न करके खिदमते-खलक में लगे रहते हैं, वैसे ही बुरे लोग दूसरों को दुःख पहुंचाने में आमादः रहते हैं""विष्णू धमोत्र"इसे कहते हैं कलामे पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
बहुत ही अच्छी लेखमाला है यह, तथा मुझे विश्वास है कि यदि मुस्लिम इस लेखमाला को पढ़ें तो वे वास्तव में अच्छे मनुष्य बन पाने में सफल रहेंगे. इसके लेखक महोदय जी को मेरा हार्दिक धन्यवाद, तथा उन्हें अपने ध्येय में सफलता मिले ऐसी मेरी शुभकामना है.
ReplyDelete- दिनेश प्रताप सिंह
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ReplyDeleteइन पारखी नज़रों को मोमिन का सलाम पहुँचे.
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