Tuesday 10 May 2011

सूरह बुरूज ८५ - पारा ३०

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह बुरूज ८५ - पारा ३०(वस्समाए ज़ाते अल्बुरूज)


ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
 
देखिए कि खालिक ए कायनात को ये कुरआन किस तरह से एक भूके भेडिए की शक्ल देता है - - -"क़सम है बुरजों वाले आसमान की,
और वादा किए हुए दिन की,
और हाज़िर होने वाले की,
और इसकी कि जिसमें हाज़िर होती है,
कि खंदक वाले यअनी कि बहुत से ईधन की आग वाले मलऊन हुए.
जिस वक़्त ये लोग इस के आस पास बैठे हुए थे,
इसको देख रहे थे और वह जो मुसलमानों के साथ कर रहे थे,
और इन काफिरों ने इन मुसलमानों में कोई ऐब नहीं पाया, बजुज़ इसके कि वह अल्लाह पर ईमान लाए थे, जो ज़बरदस्त सज़ा वार हम्द है.
जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बेहशतों में दाखिल कर देंगे, जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इस में रहेंगे, ये बड़ी काम्याबी है.
आपके रब की वारद गीरी बड़ी सख्त है.
वही पहली बार पैदा केरता है, वही दूसरी बार पैदा करेगा, और वही बख्शने वाला है, मुहब्बत करने वाला, और अजमत वाला है.
वह जो कुछ चाहे सब कर गुज़रता है, क्या आपको उन लश्करों का किस्सा पहुँचा है यानी फिरओन और समूद की - - - -
ये काफ़िर तकज़ीब में हैं,
अल्लाह इन्हें इधर उधर से घेरे हुए है,
बल्कि वह एक बाअजमत कुरआन है."
सूरह बुरूज ८५ - पारा ३० (आयत १-२२)नमाज़ियो !कोई तालीम याफ़्ता शख्स अगर बोलेगा तो उसका एक एक लफ्ज़ बा मअनी होगा, चाहे वह ज्यादा बोलने वाला हो चाहे कम. इसके बर अक्स जब कोई अनपढ़ उम्मी बोलेगा, चाहे ज़्यादा चाहे कम, तो वह ऐसा ही होगा जैसा तुमने इस सूरह में देखा. किसी मामूली वाकिए को अधूरा बयान करके वह आगे बढ़ जाता है, ये उम्मी मुहम्मद की एक निकम्मी अदा है. सूरह में लोगों को न समझ में आने वाली बातें या वाक़िया होते हैं. इनकी जानकारी का इश्तियाक तुम्हें कभी कभी आलिमो तक खींच ले जाता है. तुम्हारे तजस्सुस को देख कर आलिम के कान खड़े हो जाते हैं. इस डर से कि कहीं बन्दा बेदार तो नहीं हो रहा है? बाद में वह तुम्हारी हैसियत और तुम्हारे जेहनी मेयार को भांपते हुए तुम से क़ुरआनी आयातों को समझाता है. सवाली उसके जवाब से मुतमईन न होते हुए भी उसका लिहाज़ करता हुवा चला जाता है. उसमें हिम्मत नहीं कि वह आलिम से मुसलसल सवाल करता रहे जब तक कि उसके जवाब से मुतमईन न हो जाए.
वाक़िया है कि आग तापते हुए मुसल्मानो की काफिरों से कुछ कहा-सुनी हो गई थी
तो ये बात क़ुरआनी आयत क्यूं बन गई?
मुहम्मद का दावा है कुरआन अल्लाह हिकमत वाले का कलाम है.
क्या अल्लाह की यही हिकमत है?
आलिम के जवाब पर सवाल करना तुम्हारी मर्दानगी से बईद है. यही बात तुमको दो नम्बरी कौम बने रहने की वजह है.
तुम्हारे ऊपर कभी अल्लाह का खौफ तारी रहता है तो कभी समाज का. तुम सोचते हो .कि तुम खामोश रह कर जिंदगी को पार लगा लो.
इस तरह तुम अपनी नस्ल की एक खेप और इस दीवानगी के हवाले करते हो.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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