Saturday 7 May 2011

सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन ८३ - पारा ३०

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन ८३ - पारा ३०(वैलुल्लिल मुतफ्फेफीन)


ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

देखो, मुहम्मद अल्लाह के नाम पर कैसी कैसी बकवास करता है - - -"बड़ी खराबी है नाप तौल में कमी करने वालों की,
कि जब लें तो पूरा लें,
और जब दें तो घटा कर दें.
क्या उनको यकीन नहीं है कि वह बड़े सख्त दिन में जिंदा करके उठाए जाएँगे,
जिस दिन तमाम आदमी अपने रब्बुल आलमीन के सामने खड़े होंगे,
हरगिज़ नहीं होगा लोगों का नामाए आमाल सजजैन में होगा,
आपको कुछ खबर है कि सजजैन में रक्खा हुवा नामाए आमाल क्या चीज़ है?
वह एक निशान किया हुवा दफ्तर है
इस रोज़ झुटलाने वालों की बड़ी खराबी होगी.
और इसको तो वही झुत्लाता है जो हद से गुजरने वाला हो और मुजरिम हो और इसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाएँ तो यूं कह दे बे सनद बातें है अगलों से मन्कूल चली आ रही हैं,
हरगिज़ नहीं बल्कि उनके आमाल का जंग उन दिलों पर बैठ गया है.
हरगिज़ नहीं बल्कि इस रोज़ ये अपने रब से रोक दिए जाएंगे,
फिर ये दोज़ख में डाले जाएँगे और कहा जाएगा यही है वह जिसे तुम झूट लाते थे.
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन ८३ - पारा ३० आयत (१-१७)
हरगिज़ नहीं नेक लोगों का आमाल इल्लीईन में होगा,
और आपको कुछ खबर है कि ये इल्लीईन में रखा हुवा आमाल नामा क्या होगा,
वह एक निशान लगा दफ्तर है जिसे मुकरिब फ़रिश्ते देखते है,
नेक लोग बड़ी सताइश में होंगे,
मसेह्रियों पर बैठे बहिश्त के अजायब देखते होंगे,
ऐ मुखातिब तू इनके चेहरों में आसाइश की बशारत देखेगा,
और पीने वालों के लिए शराब खालिस सर बमुहर होगी,
और हिरस करने वालों को ऐसी चीज़ से हिरस करना चाहिए,
काफ़िर दुन्या में मुसलमानों पर हँसते थे, अब मुसलमान इन पर हँस रहे होंगे, मसह्रियों पर होंगे, वाकई काफिरों को उनके किए का खूब बदला मिला."
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन ८३ - पारा ३० आयत (१८-३६)नमाज़ियो !मुहम्मद की वज़अ करदा मन्दर्जा बाला इबारत बार बार ज़बान ए उर्दू में दोहराओ, फिर फ़ैसला करो कि क्या ये इबारत काबिले इबादत है? इसे सुन कर लोगों को उस वक़्त हंसी आना तो फितरी बात हुवा करती थी , जिसकी गवाही खुद सूरह दे रही है, आज भी ये बातें क्या तुम्हें मज़हक़ा खेज़ नहीं लगतीं ? बड़े शर्म की बात है इसे तुम अल्लाह का कलाम समझते हो और उस दीवाने की बड़ बड़ की तिलावत करते हो. इससे मुँह मोड़ो ताकि कौम को इस जेहालत से नजात की कोई सूरत नज़र आए. दुन्या की २०% नादानों को हम और तुम मिलकर जगा सकते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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