मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह इन्फितार ८२ - पारा ३०(इज़ा अस्समाउन फ़ितरत)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
अल्लाह आसमान को फाड़ रहा है जैसे मदारी पानी में सूराख करते हैं - - -"जब आसमान फट जाएगा,
जब सितारे टूट कर झड पड़ेगे,
जब सब दरया बह पड़ेंगे,
और कब्रें उखड़ी जाएगी,
हर शख्स अपने अगले और पिछले आमाल को जान लेगा,
ऐ इंसान तुझको किस चीज़ ने तेरे रब्बे करीम के साथ भूल में डाल रख्खा है,
जिसने तुझको बनाया और तेरे आसाब दुरुस्त किए,
फिर तुझको एतदाल पर लाया,
जिस सूरत चाह तुझको तरकीब दे दिया,
हरगिज़ नहीं बल्कि तुम जजा और सज़ा को ही झुट्लाते हो,
और तुम पर याद रखने वाले और मुअज़ज़िज़ लिखने वाले मुक़र्रर हैं,
जो तुम्हारे सब अफ़आल को जानते हैं,
नेक लोग बेशक आशाइश में होंगे,
और बदकार बेशक दोज़ख में होगे,
और आप को कुछ खबर है कि वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
और आप को कुछ खबर है की वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
वह दिन ऐसा है कि किसी शख्स को नफ़ा के लिए कुछ बस न चलेगा,
और तमाम तर हुकूमत उस रोज़ अल्लाह की होगी.(मुकम्मल सूरह)
सूरह इन्फितार ८२ - पारा ३० आयत(१-१९)
जब सितारे टूट कर झड पड़ेगे,
जब सब दरया बह पड़ेंगे,
और कब्रें उखड़ी जाएगी,
हर शख्स अपने अगले और पिछले आमाल को जान लेगा,
ऐ इंसान तुझको किस चीज़ ने तेरे रब्बे करीम के साथ भूल में डाल रख्खा है,
जिसने तुझको बनाया और तेरे आसाब दुरुस्त किए,
फिर तुझको एतदाल पर लाया,
जिस सूरत चाह तुझको तरकीब दे दिया,
हरगिज़ नहीं बल्कि तुम जजा और सज़ा को ही झुट्लाते हो,
और तुम पर याद रखने वाले और मुअज़ज़िज़ लिखने वाले मुक़र्रर हैं,
जो तुम्हारे सब अफ़आल को जानते हैं,
नेक लोग बेशक आशाइश में होंगे,
और बदकार बेशक दोज़ख में होगे,
और आप को कुछ खबर है कि वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
और आप को कुछ खबर है की वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
वह दिन ऐसा है कि किसी शख्स को नफ़ा के लिए कुछ बस न चलेगा,
और तमाम तर हुकूमत उस रोज़ अल्लाह की होगी.(मुकम्मल सूरह)
सूरह इन्फितार ८२ - पारा ३० आयत(१-१९)
नमाजियों !आसमान कोई चीज़ नहीं होती, ये कायनात लामतनाही और मुसलसल है, ५०० किलो मीटर हर रोज़ अज़ाफत के साथ साथ बढ़ रही है. ये आसमान जिसे आप देख रहे हैं, ये आपकी हद्दे नज़र है. इस जदीद इन्केशाफ से बे खबर अल्लाह आसमान को ज़मीन की छत बतलाता है, और बार बार इसके फट जाने की बात करता है,. अल्लाह के पीछे छुपे मुहम्मद सितारों को आसमान पर सजे हुए कुम्कुमें समझते हैं , इन्हें ज़मीन पर झड जाने की बातें करते हैं. जब कि ये सितारे ज़मीन से कई कई गुना बड़े होते हैं..
अल्लाह कहता है जब सब दरियाएँ बह पड़ेंगी. है न हिमाक़त की बात, क्या सब दरिया कहीं रुकी हुई हैं? कि बह पड़ेंगी. बहती का नाम ही दरिया है.
अल्लाह कहता है जब सब दरियाएँ बह पड़ेंगी. है न हिमाक़त की बात, क्या सब दरिया कहीं रुकी हुई हैं? कि बह पड़ेंगी. बहती का नाम ही दरिया है.
तुम्हारे तअमीर और तकमील में तुम्हारा या तुम्हारे माँ बाप का कोई दावा, दख्ल तो नहीं है, इस जिस्म को किसी ने गढ़ा हो, फिर अल्लाह हमेशा इस बात का इलज़ाम क्यूँ लगता रहता है कि उसने तुमको इस इस तरह से बनाया. इसका एहसास और एहसान भी जतलाता रहता है कि इसने हमें अपनी हिकमत से मुकम्मल किया. सब जानते हैं कि इस ज़मीन के तमाम मखलूक इंसानी तर्ज़ पर ही बने हैं, इस सूरत में वह चरिंद, परिन्द और दरिंद को अपनी इबादत के लिए मजबूर क्यूँ नहीं करता?
इस तरह तमाम हैवानों को अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक मुसलमान होना चाहिए. मगर ये दुन्या अल्लाह के वजूद से बे खबर है.
अल्लाह पिछली सूरतों में कह चुका है कि वह इंसान का मुक़द्दर हमल में ही लिख देता है, फिर इसके बाद दो फ़रिश्ते आमाल लिखने के लिए इंसानी कन्धों पर क्यूँ बिठा रख्खे है?
अल्लाह पिछली सूरतों में कह चुका है कि वह इंसान का मुक़द्दर हमल में ही लिख देता है, फिर इसके बाद दो फ़रिश्ते आमाल लिखने के लिए इंसानी कन्धों पर क्यूँ बिठा रख्खे है?
असले-शहूद ओ शाहिद ओ मशहूद एक है,
हैराँ हूँ फिर मुशाहिदा है किस हिसाब का.
(ग़ालिब)
मुहम्मद अल्लाह की ज़बान से कहते हैं "उस दिन तमाम तर हुकूमत अल्लाह की होगी"आज कायनात की तमाम तर हुकूमत किसकी है? क्या अल्लाह इसे शैतान के हवाले करके सो रहा है?
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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