Saturday 7 May 2011

सूरह तक्वीर ८१ - पारा ३०

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह तक्वीर ८१ - पारा ३०(इजा अशशम्सो कूवरत)


ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.



अब देखो, बाज़मीर होकर कि तुम अपने नमाज़ों में क्या पढ़ते हो - - -"जब आफ़ताब बेनूर हो जाएगा,
जब सितारे टूट कर गिर पड़ेगे,
जब पहाड़ चलाए जाएँगे,
जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,
जब वहशी जानवर सब जमा जमा हो जाएगे,
जब दरिया भड़काए जाएंगे,
और जब एक किस्म के लोग इकठ्ठा होंगे,
और जब ज़िन्दा गडी हुई लड़की से पूछा जाएगा
कि वह किस गुनाह पर क़त्ल हुई,
और जब नामे आमाल खोले जाएँगे,
और जब आसमान फट जाएँगे,
और जब दोज़ख दहकाई जाएगी,
तो मैं क़सम खता हूँ इन सितारों की
जो पीछे को हटने लगते हैं,
और क़सम है उस रात की जब वह ढलने लगे,
और क़सम है उस सुब्ह की जब वह जाने लगे,
कि कलाम एक फ़रिश्ते का लाया हुवा है.
जो कूवत वाला है
और जो मालिक ए अर्श के नजदीक ज़ी रुतबा है,
वहाँ इसका कहना माना जाता है,"
सूरह तक्वीर ८१ - पारा ३० आयत (१-२०)अपने कलाम में नुदरत बयानी समझने वाले मुहम्मद क्या क्या बक रहे हैं कि जब पहाड़ो में चलने के लिए अल्लाह पैर पैदा कर देगा, वह फुद्केंगे, लोग अचम्भा और तमाशा ही देखेगे, मुहम्मद ऊंटों और खजूरों वाले रेगिस्तानी थे, गोया इसे भी अलामाते क़यामत तसुव्वर करते हैं कि "जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी" छुट्टा घूमे या रस्सियों में गाभिन हो अभागिन, ऊंटनी ही नहीं तमाम जानवर हमेशा आज़ाद ही घूमा फिरा करेंगे. दरिया सालाना भड़कते ही रहते हैं. ये कुरआन की फूहड़ आयतें जिनकी कसमें अल्लाह अपनी तख्लीक़ की नव अय्यत को पेशे नज़र रख कर खाता है तो इसपर यकीन तो नहीं होता, हाँ, हँसी ज़रूर आती है.मुसलामानों! क्या सुब्ह ओ शाम तुम ऐसी दीवानगी की इबादत करते हो?


"और वह तुम्हारे साथ रहने वाले मजनू नहीं हैं.
उन्हों ने फ़रिश्ते को आसमान पर भी देखा है
और ये पैगम्बर की बतलाई हुई वह्यी क़ी बातों में बुख्ल करने वाले नहीं.
और ये कुरान शैतान मरदूद की कही हुई बातें नहीं हैं,
तो तुम लोग किधर जा रहे हो,
बस कि ये दुन्या जहान के लिए एक बड़ा नसीहत नामा है
और ऐसे लोगों के लिए जो तुम में सीधा चलना चाहे,
और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते.
सूरह तक्वीर ८१ - पारा ३० आयत(२१-२९)कहाँ उसका कहना नहीं माना जाता? उसके हुक्म के बगैर तो पत्ता भी नहीं हिलता. ये वही फ़रिश्ता है जिसे वह रोज़ ही देखते हैं जब वह अल्लाह की वहयी लेकर मुहम्मद के पास आता है, फिर उसकी एक झलक आसमान पर देखने की गवाही कैसी?
क़यामत के बाद जब ये दुन्या ही न बचेगी तो नसीहत का हासिल?
कुरआन पर हजारों एतराज़ ज़मीनी बाशिदों के है, जिसे ये ओलिमा मरदूद उभरने ही नहीं देते.भोले भाले ऐ नमाज़ियो!
सबसे पहले गौर करने की बात ये है कि ऊपर जो कुछ कहा गया है, वह किसी इंसान के मुंह से अदा किया गया है या कि किसी ग़ैबी अल्लाह के मुंह से?
ज़ाहिर है कि ये इंसान के मुंह से निकला हुवा कलाम है जो कि बद कलामी की हदों में जाता है. क्या कोई खुदाई हस्ती इरशाद कर सकती है कि ".जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,"अरबी लोग कसमें ज्यादा खाते हैं. शायद कसमें इनकी ही ईजाद हों. मुहम्मद अपनी हदीसों में भी कुरान की तरह ही कसमे खाते हैं. इस्लाम में झूटी कसमें खाना आम बात है, इनको अल्लाह मुआफ करता रहता है. अगर इरादतन क़सम खा लिया तो किसी यतीम या मोहताज को खाना खिला दो. बस. गौर करने की बात है कि जहाँ झूटी कसमें रवा हों वहां झूट बोलना किस क़दर आसन होगा? ये कुरान झूट ही तो है. क़यामत, दोज़ख, जन्नत, हिसाब-किताब, फ़रिश्ते, जिन और शैतान सब झूट ही तो हैं.

क्या तुम्हारे आईना ए हयात पर झूट की परतें नहीं जम गई हैं?
ये इस्लाम एक गर्द है तुमको मैला कर रहा है. अपने गर्दन को एक जुंबिश दो, इस जमी हुई गर्द को अपनी हस्ती पर से हटाने के लिए.
अल्लाह कहता है
"और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते."तो फिर दुन्या में कहाँ कोई बन्दा गुनाहगार हो सकता है, सिवाए अल्लाह के.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment