Thursday, 26 May 2011

सूरह बय्येनह ९८ - पारा ३०

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह बय्येनह ९८ - पारा ३०
(लम यकुनेल लज़ीना कफ़रू)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
पाकिस्तान की वेबसाइट्स पर जिंसी बेराह रवी की सबसे ज़्यादः भरमार है. किसी भी मज़मून की साइट्स खोलें, धीरे धेरे जिन्स के दरवाजे खुल जाते हैं. जिन्स के ऐसे ऐसे उन्वान कि पढके सर शर्म से झुक जाता है. ऐसा कल्चर इस मुल्क में फ़ैल रहा है जहाँ इंसानी रिश्ते तार तार हो रहे हैं. ये ख़तरनाक वेब मुहिम माँ, बहेन और बेटियों की इज्ज़त उनके रखवाले ही लूटने लगेंगे, तब कहाँ ले जायगा कौम को इसका अंजाम ? इसका कुसूर वार इस्लाम हो सकता है जहां ज़ानियों को सजाए मौत दी जाती है. शायद ये कल्चर इस बेराह रवी के सहारे, फर्सूदा निजाम का जवाब हो.
दूसरी तरफ जेहादियों की दीवानगी भी अपने उरूज पर है. हर रोज़ उनके कारनामे हुकूमत को चिढाते रहते हैं. पाकिस्तान बेबस, न इस्लाम को निगल पा रहा है, न उगल पा रहा है.

देखिए कि बदतरीन खलायक का अल्लाह क्या कहता है - - -

"लोग अहले किताब और और मुशरिकों में से हैं, काफ़िर थे, वह बाज़ आने वाले न थे, जब तक कि इन लोगों के पास वाजेह दलील न आई,
एक अल्लाह का रसूल जो पाक सहीफ़े सुनावे,
जिनमें दुरुस्त मज़ामीन लिखे हों,
और जो लोग अहले किताब थे वह इस वाज़ह दलील के आने के ही मुख्तलिफ़ हो गए,
हालाँकि इन लोगों को यही हुक्म हुवा कि अल्लाह की इस तरह इबादत करें कि इबादत इसी के लिए खास रहें कि इबादत इसी के लिए खास रखें . यकसू होकर और नमाज़ की पाबन्दी रखें और ज़कात दिया करें.
और यही तरीका है इस दुरुस्त मज़ामीन का. बेशक जो लोग अहले किताब और मुशरिकीन से काफ़िर हुए, वह आतिश ए दोज़ख में जाएँगे. जहाँ हमेशा हमेशा रहेगे. ये लोग बद तरीन खलायक हैं.
बेशक जो लोग ईमान ले और अच्छे काम किए, वह बेहतरीन खलायक हैं.,
इनका सिलह इनके परवर दिगार के नज़दीक हमेशा रहने की बेहिश्तें हैं, जिनके नीचे नहरें जारी होंगी. अल्लाह इन से खुश होगा, ये अल्लाह से खुश होंगे, ये उस शख्स के लिए है जो हमेशा अपने रब से डरता है."
सूरह बय्येनह ९८ - पारा ३० (आयत (१-८)

नमाज़ियो!
सूरह में मुहम्मद क्या कहना चाहते हैं ? उनकी फितरत को समझते हुए मफहूम अगर समझ भी लो तो सवाल उठता है कि बात कौन सी अहमयत रखती है? क्या ये बातें तुम्हारे इबादत के क़ाबिल हैं ?क्या रूस, स्वेडन, नारवे, कैनाडा, यहाँ तक की कश्मीरियों के लिए घरों के नीचे बहती अज़ाब नहरें पसंद होंगी? आज तो घरों के नीचे बहने वाली गटरें होती हैं. मुहम्मद अरबी रेगिस्तानी थे जो गर्मी और प्यास से बेहाल हुवा करते थे, लिहाज़ा ऐसी भीगी हुई बहिश्त उनका तसव्वुर हुवा करता था.
ये कुरान अगर किसी खुदा का कलाम होता या किसी होशमंद इंसान का कलाम ही होता तो वह कभी ऐसी नाकबत अनदेशी की बातें न करता.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. मुझे नहीं पता की एक हिन्दू होने के नाते आपके ब्लॉग पर मुझे कमेन्ट करना चाहिये या नहीं...लेकिन देख कर आश्चर्य होता है की एक भी मुश्लिम भाई आपके ब्लॉग पैर कमेन्ट नहीं कर रहा है...कम से कम उन्हें पढ़ कर जो आप सुधार का काम कर रहे है उसे साप्पोर्ट करना ही चाहिये...ईश्वर आपको शक्ति दे...

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