मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
और हमने आप पर से आपका बोझ उतार दिया,
जिसने आपकी कमर तोड़ रक्खी थी,
और हमने आप की खातिर आप की आवाज़ बुलंद किया,
सो बेशक मौजूदा मुश्किलात के साथ आसानी होने वाली है,
तो जब आप फारिग हो जाया करेंतो मेहनत करें,
और अपने रब की तरफ़ तवज्जो दें."
सूरह इन्शिराह ९४ - पारा ३० आयत(१-८)
क्या क्या न सहे हमने सितम आप की खातिर
नमाज़ियो!
सूरह इन्शिराह ९४ - पारा ३०
(अलम नशरह लका सद्रका)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
दुन्या की सब से बड़ी ताक़त कोई है, यह बात सभी मानते हैं चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक उसकी मान्यता सर्व श्रेष्ट है. उसका सम्मान सभी करते हैं, वह किसी को नहीं सेठ्ता. एक मुहम्मद ऐसे हैं जो उस सर्व शक्ति मान से अपनी इज्ज़त कराते हैं. अल्लाह मुहम्मद को सम्मान जनक शब्दों से ही संबोधित करता है.वह मुहम्मद को आप जनाब करके ही बात करता है. इसका असर ये है की मुसलमान मुहम्मद को मान सम्मान अल्लाह से ज्यादह देते है, वह इस बात को मानें या न मानें, मगर लाशूरी तौर पर उनके अमल बतलाते हैं की वह मुहम्मद को अल्लाह के मुकाबिले में ज्यादा मानते है. मुहम्मद की शान में नातिया मुशायरे हर रोज़ दुन्या के कोने कोनों में हुवा करते है, मगर अल्लाह की शान में "हम्दिया" मुशायरा कहीं नहीं सुना गया. अल्लाह की झलक तो संतों और सूफियों की हदों में देखने को मिलती है.
देखिए कि अल्लाह अपने आदरणीयमुहम्मद को कैसे लिहाज़ के साथ मुखातिब करता है - - -
"क्या हमने आपकी खातिर आपका सीना कुशादा नहीं कर दिया,देखिए कि अल्लाह अपने आदरणीयमुहम्मद को कैसे लिहाज़ के साथ मुखातिब करता है - - -
और हमने आप पर से आपका बोझ उतार दिया,
जिसने आपकी कमर तोड़ रक्खी थी,
और हमने आप की खातिर आप की आवाज़ बुलंद किया,
सो बेशक मौजूदा मुश्किलात के साथ आसानी होने वाली है,
तो जब आप फारिग हो जाया करेंतो मेहनत करें,
और अपने रब की तरफ़ तवज्जो दें."
सूरह इन्शिराह ९४ - पारा ३० आयत(१-८)
क्या क्या न सहे हमने सितम आप की खातिर
नमाज़ियो!
धर्म और मज़हब का सबसे बड़ा बैर है नास्तिकों से जिन्हें इस्लाम दहेरया और मुल्हिद कहता है. वो इनके खुदाओं को न मानने वालों को अपनी गालियों का दंड भोगी और मुस्तहक समझते हैं. कोई धर्म भी नास्तिक को लम्हा भर नहीं झेल पाता. यह कमज़र्फ और खुद में बने मुजरिम, समझते हैं कि खुदा को न मानने वाला कोई भी पाप कर सकता है, क्यूंकि इनको किसी ताक़त का डर नहीं. ये कूप मंडूक नहीं जानते कि कोई शख्सियत नास्तिक बन्ने से पहले आस्तिक होती है और तमाम धर्मों का छंद विच्छेद करने के बाद ही क़याम पाती है. वह इनकी खरी बातों को जो फ़ितरी तकाज़ा होती हैं, उनको ग्रहण कर लेता है और थोथे कचरे को कूड़ेदान में डाल देता है. यही थोथी मान्यताएं होती हैं धर्मों की गिज़ा. नास्तिकता है धर्मो की कसौटी. पक्के धर्मी कच्चे इंसान होते हैं. नास्तिकता व्यक्तित्व का शिखर विन्दु है.
एक नास्तिक के आगे बड़े बड़े धर्म धुरंदर, आलिम फाजिल, ज्ञानी ध्यानी आंधी के आगे न टिक पाने वाले मच्छर बन जाते हैं. पिछले दिनों कुछ टिकिया चोर धर्मान्ध्र नेताओं ने एलक्शन कमीशन श्री लिंग दोह पर इलज़ाम लगाया थ कि वह क्रिश्चेन हैं इस लिए सोनिया गाँधी का खास लिहाज़ रखते हैं. जवाब में श्री लिंगदोह ने कहा था,"मैं क्रिश्चेन नहीं एक नास्तिक हूँ और इलज़ाम लगाने वाले नास्तिक का मतलब भी नहीं जानते." बाद में मैंने अखबार में पढ़ा कि आलमी रिकार्ड में "आली जनाब लिंगदोह, दुन्या के बरतर तरीन इंसानों में पच्चीसवें नंबर पर शुमार किए गए हैं. ऐसे होते हैं नास्तिक.
फिर मैं दोहरा रहा हूँ कि दुन्या की ज़ालिम और जाबिर तरीन हस्तियाँ धर्म और मज़हब के कोख से ही जन्मी है. जितना खूनी नदियाँ इन धर्म और मज़ाहब ने बहाई हैं, उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. और इसके सरताज हैं मुहम्मद अरबी जिनकी इन थोथी आयतों में तुम उलझे हुए हो.
जागो मुसलामानों जागो.
एक नास्तिक के आगे बड़े बड़े धर्म धुरंदर, आलिम फाजिल, ज्ञानी ध्यानी आंधी के आगे न टिक पाने वाले मच्छर बन जाते हैं. पिछले दिनों कुछ टिकिया चोर धर्मान्ध्र नेताओं ने एलक्शन कमीशन श्री लिंग दोह पर इलज़ाम लगाया थ कि वह क्रिश्चेन हैं इस लिए सोनिया गाँधी का खास लिहाज़ रखते हैं. जवाब में श्री लिंगदोह ने कहा था,"मैं क्रिश्चेन नहीं एक नास्तिक हूँ और इलज़ाम लगाने वाले नास्तिक का मतलब भी नहीं जानते." बाद में मैंने अखबार में पढ़ा कि आलमी रिकार्ड में "आली जनाब लिंगदोह, दुन्या के बरतर तरीन इंसानों में पच्चीसवें नंबर पर शुमार किए गए हैं. ऐसे होते हैं नास्तिक.
फिर मैं दोहरा रहा हूँ कि दुन्या की ज़ालिम और जाबिर तरीन हस्तियाँ धर्म और मज़हब के कोख से ही जन्मी है. जितना खूनी नदियाँ इन धर्म और मज़ाहब ने बहाई हैं, उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. और इसके सरताज हैं मुहम्मद अरबी जिनकी इन थोथी आयतों में तुम उलझे हुए हो.
जागो मुसलामानों जागो.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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