मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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अंत भला तो सब भला
हिन्दू विद्वान् अपने भगवानों का अंतिम काल को घोट जाते हैं.
चक्र धारी भगवन कृष्ण अपने पैर में चुभा हुवा कांटा लिए,
कैसे बस्ती के किनारे आम के एक पेड़ के नीचे पहुंचे,
इसका खुलासा कहीं नहीं मिलता.
बहरहाल भगवन के अंतिम अट्ठारह दिन बहुत ही दर्दनाक थे.
उनके पैर में कांटा चुभा हुवा था जिसकी वजह से शरीर में ज़हर बाद फ़ैल गया था.
वह बेयार व मददगार अटठारह दिनों तक एक आम के पेड़ के नीचे पड़े रहे,
और एडियाँ रगड़ते मर गए.
कोई उनकी मदद के लिए न आया.
महा भारत का महा रथी युद्ध ख़त्म होने के बाद,
इस रचे हुए युद्ध का मुजरिम किसी प्रशाशन की दी गई सजा भुगत रहा था
या कोई और बात थी?
गीता के उपदेशक भगवन की मर्यादा और सुदर्शन चक्र सभी गुम थे.,
भगवान का भग्वत्व गायब था.
वह अछूत हो गए थे.
लोग उनको दूर से ही देखते थे.
भूक प्यास और बीमारी के कारण रिस रिस कर दम तोड़ने वाले भगवान् को इस हाल में किसने डाला था,
मुझे आज तक मालूम न हो सका.
इस गाथा का ज्ञान अगर किसी को हो तो मुझे भी अवगत कराए.
बहुतरे कृष्ण भक्त भी मेरी बात को पहली बार पढ़ रहे होंगे.
कुछ लोग इस सन्दर्भ में मुझसे साक्ष मांगेंगे?
किताब का नाम जिसको ?
लेखक का नाम?
पृष्ट नंबर?
अध्याय?
तो क्षमा करे मैं ज़ाकिर नाइक नहीं हूँ ,
न ही मेरा उद्देश किसी की आस्था को ठेंस पहुँचाना है.
मेरा उददेश है लोग समझदार बन कर भगवान् मुक्त जीवन पाएं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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