Monday 2 January 2017

Soorah Qamar 54

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह क़मर ५४-पारा २७


  मुहम्मद नें जो बातें हदीसों में फ़रमाया है, उन्ही को कुरआन में गाया है.
अल्लाह के रसूल खबर देते हैं कि क़यामत नजदीक आ चुकी है, और चाँद फट चुका है..
मूसा और ईसा की तरह ही मुहम्मद ने भी दो मुअज्ज़े (चमत्कार) दिखलाए, ये बात दीगर है कि जिसको किसी ने देखा न गवाह हुआ, सिवाय अल्लाह के या फिर जिब्रील अलैहस्सलाम के जो मुहम्मद के दाएँ  बाएँ हाथ है.
 एक मुअज्ज़ा था सैर ए कायनात जिसमे उन्हों ने सातों आसमानों पर कयाम किया, अपने पूर्वज पैगम्बरों से मुलाक़ात किया, यहाँ तक कि अल्लाह से भी गुफ्तुगू की. उनकी बेगम आयशा से हदीस है कि उन्होंने  अल्लाह को देखा भी.
दूसरा मुअज्ज़ा है कि मुहम्मद ने उंगली  के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए, जिनमें से एक टुकड़ा मशरिक बईद में गिरा और दूसरा टुकड़ा मगरिब बईद में जा गिरा.(पूरब और पच्छिम के छोरों पर)
इन दोनों का ज़िक्र कुरआन और हदीसों, दोनों में है. इस की इत्तेला जब खलीफ़ा उमर को हुई तो रसूल को आगाह किया कि ऐसी बड़ी बड़ी गप अगर आप छोड़ते रहे तो न आपकी रिसालत बच पाएगी और न मेरी खिलाफत. बस फिर रसूल ने कान पकड़ा, कि मुअज्ज़े अब आगे न होंगे.
उनके मौत के बाद उनके चमचों ने अपनी अपनी गवाही में मुहम्मद के सैकड़ों मुअज्ज़े गढ़ डाले. 

मुहम्मद अल्लाह की ज़बान से फरमाते हैं - - -
"क़यामत नजदीक आ चुकी है और चाँद में डराड़ पद चुकी है"
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (१)

मुहम्मद ने चाँद तारों को आसमान के बड़े बड़े कुमकुमे ही माना है जो आसमान की रौनक हैं, उनके हिसाब से बड़ा कुमकुमा फट चुका है,) जिस को कि खुद उन्होंने फाड़ा है). इस लिए क़यामत आने के आसार हैं.
चौदह सौ साल गुज़र गए हैं, इंसान चाँद पर क़याम करके वापस आ गया है, ईमान वाले अभी तक क़यामत के इंतज़ार में हैं.
मुसलमानों ! अरबी के झूट आप की अपनी ज़बान में है, इसे सच्चाई के साथ झेलिए - - -
"और ये लोग अगर कोई मुअज्ज़ा देखते हैं तो टाल देते हैं और कहते हैं ये जादू है जो अभी ख़त्म हो जाएगा, इन लोगों ने झुटला दिया."
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (२

मुहम्मद कहते है ये मुअज्ज़ा मैंने मक्का में कर दिखाया था, बहुत से लोगों ने इसे देखा था मगर जादू कह कर टाल गए. मक्का में जब लोग इन्हें सिड़ी सौदाई  कहते थे, तभी की बात है. मगर मक्का में इस झूट की कोई गवाह मुहम्मद को नहीं मिला जिसका नाम लेते.

"और इन लोगों के पास खबरे इतनी पहुँच चुकी हैं कि इनमें इबरत यानी आला दर्जे की दानिश मंदी है, सो खौफ दिलाने वाली चीजें इनको कुछ फ़ायदा ही नहीं देतीं. तो आप इनकी तरफ से कोई ख़याल न कीजिए."
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (४-६)

मुहम्मद लाशऊरी तौर पर सच बोल गए कि लोग उनसे ज़्यादः आगाह है कि इन की बातों में आते ही नहीं न इससे डरते ही हैं.

"जिस रोज़ इनको बुलाने वाला फ़रिश्ता एक नागवार चीज़ की तरफ बुलाएगा,  इनकी आँखें झुकी हुई होंगी. क़ब्रों से यूँ निकल  रहे होंगे जैसे टिड्डी फ़ैल जाती हैं. बुलाने वाले की तरफ दौड़ते चले जा रहे होंगे. काफ़िर कहते होंगे ये बड़ा सख्त दिन है."
मुहम्मद की गढ़ी हुई क़यामत का मंज़र हर बार बदलता रहता है. उनको याद नहीं नहीं रहता कि इसके पहले की क़यामत कैसे बरपा की थी. इनको प्राफिट  आफ दूम कहा गया है.
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (७-८)

"क्या तुम में जो काफ़िर हैं उनमें इन लोगों से कुछ फ़ज़ीलत है या तुम्हारे लिए आसमानी किताबों में कुछ माफ़ी है. या ये लोग कहते हैं हमारी ऐसी जमाअत है जो ग़ालिब ही रहेगे. अनक़रीब ये जमाअत शिकस्त खाएगी.और पीठ फेर के भागेगी. बल्कि क़यामत इनका वादा है और क़यामत बड़ी सख्त और नागवार चीज़ है. और ये मुजरिमीन बड़ी ग़लती और बे अक्ली में हैं. जिस रोज़ ये अपने मुँहों के बल जहन्नम में घसीटे जाएंगे तो इन से कहा जायगा कि दोज़ख से लगने का मज़ा चक्खो."
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (४३-४८)

"हमने हर चीज़ को अंदाज़े से पैदा किया है और हमारा हुक्म यक बारगी ऐसा हो जाएगा जैसे आँख का झपना और हम तुम्हारे हम तरीका लोगों को हलाक कर चुके है. और जो कुछ भी ये लोग करते हैं, सब  आमाल नामें में है और हर छोटी बड़ी बात लिखी हुई है. परहेज़ गार लोग बागों में और नहरों में होगे, एक अच्छा मुक़ाम है क़ुदरत वाले बादशाह के पास."
सूरह क़मर ५४-पारा २७- आयत (४९-५४)

जैसे अनाड़ी हर काम को अंदाज़े से ही करता है, मुहम्मद खुद को अल्लाह होने की शहादत देते हैं कि जैसे ना तजरबे  कार इंसान अगर है तो अकली गद्दा मारता है. कुदरत तो इतनी हैरत  नाक रचना करता है कि दिमाघ काम नहीं करता. इंसान का जिस्म हो कि हैरत नाक रचना है या ज़मीन की गर्दिश कि साल में एक सेकण्ड का फर्क नहीं पड़ता.

किसी जाहिल और अहमक की कुछ उलटी सीधी बातें इस कौम का निज़ाम ए हयात बन चुकी है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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