ज़िंदगी क्या चीज़ थी और क्या समझा किए
मैं आभारी हूँ उन तमाम पाठकों का जो सही मअनों में मुझे समझ सके हैं .
इस दुन्या को बहुत जल्दी एक नईं सोच की जरूरत है,
बहुत जल्द मैं इस लिए लिख रहा हूँ कि सदियों से रेंगती हुई दुन्या में,
बीसवीं सदी में वैज्ञानिक इन्कलाब आया है,
सब कुछ बहुत तेज़ी से बदल रहा है.
नए नए मानव मूल्य हर रोज़ वजूद में आ रहे हैं.
मज़हब और धर्म के आधार पर जहाँ भी निज़ाम क़ायम रहेगा,
नई सोच और बेहतर अनजाम से वहां लोग बंचित रहेगे.
बंचित ही नहीं इनके बंधक और ग़ुलाम रहेंगे.
जगी हुई दुन्या नए नए सय्यारों पर बसने लगेगी और हमारी नस्लें सजदों में पड़े रहेगे, या शंकर जी का घंटा बजाते रहेगे.
सदियों से रेंगती दुन्या 21 वीं सदी में नित नए स्वारूप ले रही है.
हमें धार्मिक आस्थाओं को कठोरता के साथ नकारना पड़ेगा.
यही नहीं इतिहास को भी ताक़ पर रखना होगा,
जब कभी इसकी टेक्नीकल ज़रुरत हो ताक़ से उतार कर देख लें.
हम पूरी ज़िन्दगी लड़ाई झगडे में इस लिए गुज़ार देते है कि तुम्हारे पूर्वजों ने हमारे पूर्वजों को मारा था,
मारा होगा, मारने की भी कुछ वजह रही होगी.
सब पुराने मुआमले हमें भूल जाना चाहिए.
इसके बाद दुन्या का जो स्वारूप बनेगा वह ग़ैर ज़रूरी फुज़ूल के ख़ारजी मुआमलों से भार मुक्त होगा, जो वर्तमान को जिएगा और भविष्य को तलाश करेगा.
एक नया परिवेश आपके सामने होगा जहाँ अपनी धरती ही ईश्वर स्वरूप नजर आएगी जिसके अंश ही हम सब है.
धरती को बचाना, इसे सजाना संवारना, इस पर बसी बनस्पति को सुलझाना,
इस पर हर जीव से कुछ समझौते के साथ इन्साफ करना ही हमारा लक्ष होगा.
हम अशरफ़ुल मख़लूक़ात इस लिए हैं
कि इंसान ही ऐसी हसती है जिसे कुदरत ने मनन और चिंतन अता किया है
जो अनजाम कार आज पेड़ों और गुफाओं से निकल कर दूसरे ग्रहों पे जा पहुंचा है.
भैसें पागुर करते हुए वजूद में आई थीं, आज भी पागुर कर रही हैं.
आज दुन्या के लिए इस्लाम खंजर की तरह है
मनुवाद खास कर भारत के लिए जोंक की तरह.
इस्लाम इंसान को क़त्ल व् गारत करके मिटा रहा है,
मनुवाद अहिंसा प्रीय है,
इंसान को मारता नहीं बल्कि पूरी उम्र उसका खून चूसता रहता है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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