Tuesday 31 January 2017

Hindu Dharm Darsha 38

देह दान
दोसतो ! 
देह दान के विषय में मेरी कल की post पर बहुत से COMENTS आए, 
आप लोगों ने पसंद किया, अच्छा लगा. 
कुछ लोगों ने भावुक होकर मुझे सलाम, नमन और salute किया है, 
मुझे शर्म और संकोच का आभास हो रहा है. मै अति जन साधारण हूँ.
आप सभी लोग मेरी तरह हैं, कुछ मुझ से बेहतर भी होंगे. 
दर अस्ल हम लोग परिवेश को दासता करते हैं, 
माँ बाप और बुजुर्गों के असर में उनकी तरह ही सोचते हैं. 
इसी को मुनासिब मानते हैं. 
कुछ जात-पात और धर्म के शिकार बन जाते है,
तो कुछ सियासत के शिकार. 
यह मुनासिब नहीं है.आपकी आज़ादी का तक़ाज़ा है कि 
आप पहले अपने वजूद को पहचानिए, अपने निजता में आइए, 
तमाम बंधनों से मुक्त होकर खुद को पहचानिए. 
"आप्पो दोपो भवः" का मन्त्र जपिए , 
आपके सामने माक़ूलयत (वास्तु स्थिति) खड़ी होगी.
माँ बाप और बुज़ुरगों की सेवा और पालन पोषण फ़र्ज़ हैं 
न कि उनकी पौराणिकता को ढोना. 
जैसे कि इन्ही पोस्टों में अक़ील अंसारी एक नमूने हैं.
याद रखें खुद को पा जाने के बाद आपका जीवन भार हीन हो जाएगा.
तो देरी किस बात की ?
शुरुआत करिए 'देह दान' के शुभ काम से, 
आप की रूचि देखकर मैं आपका मार्ग दर्शन के लिए तैयार हूँ.  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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