मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह तह्रीम ६६
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सूरह तह्रीम ६६
अन्ना हज़ारे का इन्क़लाब आया और चार दिन में पूरे मुल्क को हिला कर चला गया. इस इन्क़लाब में गांधी के साथ कोई 'अबुल कलाम' नहीं था. मुसलामानों का कहीं दूर दूर तक अता पता नहीं था.
शबाना आज़मी ज़रूर थी जिसको आलिमान इस्लाम " नचनियाँ,गवैया और नापाक औरत से नवाज़ते हैं. शबाना एक अज़ीम फ़न्कारह ही नहीं, एक अज़ीम इंसान भी है, जिसकी पहचान आक्सफोर्ड का एवार्ड है जो इसे मिला. ऐसी ही कुछ फ़िल्मी हस्तियाँ हैं जिनका मेल भारतीयता से खता है.
अन्ना की हवा में जो जमाअत इस्लामी ने हिस्सा लिया वह 'मेहमान नाज़ेबा' थे उनकी तंजीम तो इस्लामी इन्कलाब की मुन्तजिर है. वह इंसानी मसायल से बेबहरे है.चाहते हैं कि देश में तमाम रहनुमाओं की तस्वीरें उतार कर अल्लाह की तस्वीर लगा दी जाए, जैसे अभी मिस्र में देखा गया कि होस्नी मुबारक की तस्वीर हटा कर हवा का बुत, यानी अल्लाह का तोगरा लगा दिया गया.
बरेली के तथा कथित आला हज़रात ने उन मुसलामानों को कुफ्र का फतुवा दिया था जो गाँधी जी की अर्थी में शरीक हुए थे. फिर भी उनके नाम की आला हजरत एक्सप्रेस चलाई जा रही है और मुसलमान सुब्ह ओ शाम उसका गुणगान करते हैं.
इस्लाम की घुट्टी मुसलमानों को दुन्या में कहीं सुर्ख रू नहीं होने देगी, ये जहाँ भी दूसरी कौमों के साथ रहते हैं अपने आप में ज़लील खवर रहते हैं. जहाँ ये काबिज़ हैं, हर रोज़ अपनी जेहादी मौत के नावाला आपस में होते रहते हैं. इस्लाम ने इंसानों को ऐसा ज़हरीला नशा पिलाया है जिसकी काट अभी तक तो पैदा नहीं हुवा है.
फिर मैं कहूँगा कि मुसलमान इस्लाम से तौबा करके मुस्लिम से ईमान दार मोमिम हो जाएँ, एक एलान के साथ. उनका कुछ न छिनेगा, न बदलेगा, न नाम, न तहजीब ओ तमद्दुन, न रख रखाव और न किसी दूसरे धर्म की पैरवी . धर्मांतरण का मतलब होगा चूहे दानों की अदला बदली. धर्म के नए मानी हैं धाँधली जिस दिन इस बात को समझ कर कोई गाँधी, कोई अन्ना पैदा होंगे उस दिन हिदुस्तान में मुकम्मल इन्कलाब आएगा.
देखो कि तुम अपनी नमाज़ों में क्या पढ़ते हो - - -
"ऐ नबी जिस चीज़ को अल्लाह ने आप के लिए हलाल किया है, आप उसे क्यूँ हराम फ़रमाते हैं.
अपनी बीवियों की खुशनूदी हासिल करने के लिए?
और अल्लाह बख्शने वाला है."
मुहम्मद ज़रा सी बात पर बीवियों को तलाक़ देने पर आ गए जिसे उनका अल्लाह हलाल फ़रमाता है बल्कि समझाता है कि आप जनाब तलाक़ को क्यूँ हराम समझते हैं?
हमारे ओलिमा डफ्ली बजाया करते है कि तलाक़ अल्लाह को सख्त ना पसन्द है.
कुरान में ऐसा कहीं है तो यहाँ पर तलाक़ इतना आसान क्यूँ?
दोहरा और मुतज़ाद हुक्म मुहम्मदी अल्लाह क्यूँ फ़रमाता रहता है?
"जब पैगम्बर ने एक बात चुपके से फरमाई, फिर जब बीवी ने वह बात दूसरी बीवी बतला दी और पैगम्बर को अल्लाह ने इसकी खबर देदी व् पैगम्बर ने थोड़ी सी बात जतला दी और थोड़ी सी टाल गए.जतलाने पर वह कहने लगी, आपको किसने खबर दी? आपने फ़रमाया मुझको बड़े जानने वाले, खबर रखने वाले ने खबर दी." (यानी अल्लाह ने)
वाक़ेआ यूं है- मुहम्मद की एक बीवी ने उनको शहद पिला दिया था , उन्हों ने इस शर्त पर पिया कि दूसरी किसी बीवी को इसकी खबर न हो,
मगर उसने अपनी सवतन को बतला दिया कि उनको बात ज़ाहिर न करना.
दूसरी ने तीसरी को कहा आज राजा इन्दर आएँ तो कहना,
क्या शहेद पिया है कि बू आ रही है? यही मैं भी कहूँगी. मज़ा आएगा.
मुहम्मद दूसरी के यहाँ गए तो उसने उनसे पुछा,"क्या शहेद पिया है कि बू आ रही है? वह इंकार करते हुए टाल गए.
फिर तीसरी ने भी उनसे यही सवाल दोराय .क्या शहेद पिया है कि बू आ रही है?"
मुहम्मद सनके कि जिसके यहाँ शहद पिया थ ये उसकी हरकत है सब बीवियों से उसने गा दिया .
बस इतनी सी बात पर पैगम्बर अपनी बीवियों पर बरसे कि अल्लाह ने उनको सारी खबर देदी.
गोया अल्लाह ने उनकी बीवियों में चुगल खोरी करता फिरा.
मैं मुहम्मदी अल्लाह को ज़ालिम, जाबिर, चाल चलने वाला, और मुन्ताकिम के साथ साथ चुगल खोर भी कहता हूँ. जो अपने बन्दों को आपस में लड़ता है.
और सभी ९ बीवियों को तलाक़ देने की धमकी देने लगे.
"ऐ दोनों बीवियों ! अगर तुम अल्लाह के सामने तौबा कर लो तो तुम्हारे दिल मायल हो रहे हैं और अगर पैगम्बर के मुकाबले में तुम दोनों कार रवाईयाँ करती रहीं तो याद रखो पैगम्बर का रफ़ीक़ अल्लाह है और जिब्रील है और नेक मुसलमान हैं और इनके अलावा फ़रिश्ते मददगार हैं."
मुहम्मद दो बे सहारा और मजबूर औरतो के लिए अल्लाह की, फरिश्तों की और इंसानों की फ़ौज खडी कर रहे हैं, इससे ही इनकी कमजोरी का अंदाजः किया जा सकता है.
"अगर पैगम्बर तुम औरतों को तलाक़ देदें तो उसका परवर दिगार बहुत जल्द तुम्हारे बदले इनको तुम से अच्छी बीवियाँ दे देगा जो इस्लाम वालियाँ, ईमान वालियाँ, फरमा बरदारी करने वालियाँ, तौबा करने वालियाँ, इबादत करने वालियाँ और रोजः रखने वालियाँ होंगी. कुछ बेवा और कुछ कुंवारियाँ होंगी."
ऐसे रसूल पर ग़ैरत वालियों की लअनत .
"ऐ ईमान वालो तुम अपने आप को और अपने घरों को आग से बचाओ जिसका ईंधन आदमी और पत्थर है, जिस पर तुन्दखू फ़रिश्ते हैं, जो अल्लाह की नाफ़रमानी नहीं करते, किसी बात में, जो उनको हुक्म दिया जाता है और जो कुछ उनको हुक्म दिया जाता है उसको बजा लाते है."
मुसलमानों! क्या ऐसी बातें तुम्हारी इबादत और तिलावत के लायक हैं जो वज्द में आकर तुम बकते हो. बड़े शर्म की बात है. सोचो, अल्लाह की बात में कोई बात तो हो.
"ऐ नबी कुफ्फर से और मुनाफिकीन से जेहाद कीजिए और उनका ठिकाना दोज़ख है और बुरी जगह है"
किसी इंसान का खून किसी हालत में भी जायज़ नहीं हो सकता, चाहे वह कितना बड़ा मुजरिम ही क्यूँ न हो, क़ातिल ही क्यूँ न हो. क़त्ल के मुजरिम को अल्म नाक ज़िन्दगी गुज़ारने की सज़ा हो ताकि वह आखिरी साँसों तक सज़ा काटता ही मरे मगर हाँ !जेहादियों को देखते ही गोली मार देनी चाहिए जो इंसानी खून के बदले सवाब पाते हों.
"अल्लाह काफिरों के लिए नूह की बीवी और लूत कि बीवी का हाल बयान फ़रमाता है. वह दोनों हमारे खास में से खास दो बन्दों के निकाह में थीं. सो उन औरतों दोनों बन्दों का हक ज़ाया किया . दोनों नेक बन्दे अल्लाह के मुकाबिले में उनके ज़रा भी काम न आ सकेऔर उन दोनों औरतों को हुक्म हो गया और जाने वालों के साथ तुम भी दोज़ख में जाओ."
अल्लाह का मुकाबिला किस्से हुवा था? ऐ पागल क्या बक रहा है. ?
कमज़ोर इंसान ! अपनी बीवियों को किस नामर्दी के साथ धमका रहा है.
सूरह तह्रीम ६६ पारा २८ आयत (१-१०)
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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