Saturday 4 February 2017

Hindu Dharm Darsha 39


यथा राजा तथा प्रजा  

60 के दशक में कानपुर में  फूल बाग़ के मैदान में एक पांडे जी हुवा करते थे. घोर नास्तिक. हिदू धर्म की बखिया उधेड़ते .
उनके गिर्द सौ डेढ़ सौ जनता इकठ्ठा हो कर बैठ जाती, 
अनोखी बातें पांडे जी के मुखर विन्दु से फूटतीं 
जिसको जनता नकार तो नहीं सकती थी मगर पचा भी न पाती. 
वह कहते जंग में चीन ने भारत के एक हिस्से पर अधिकार कर लिया, क्यूँ न पवन सुत हनुमान उड़कर आए ? 
क्यों न अपनी गदा से  चीनियों का सर न फोड़ दिया?? 
उनकी बातें सुनकर कुछ लोग हनुमान भक्त आँख बचा कर उन पर कंकड़ी मार देते, 
जैसे मुसलमान हाजी मक्का में जाकर शैतान को कंकड़ी मरते हैं .
वह हंस कर कहते यह तुम्हारा दोष नहीं तुम्हारे धार्मिक संस्कारों का दोष है कि तुम अभी तक सभ्य इंसान भी नहीं बन सके.

उनके जवाब में थोड़ी दूर पर एक मौलाना इस्लाम की तबलीग़ करते, वही घिसी पिटी बातें कि अल्लाह ने कुरआन में फ़रमाया है - - - 
उनके पास भी दस पांच लोग इकठ्ठा होते.

उसी ज़माने में एक कालिया मदारी हुवा करता था 
जिसकी लच्छेदार बातें सुनने के लिए 5-6 सौ लोग घेरा बना कर खड़े हो जाते. 
अपने वर्णन कला पर उसको पूरा कमांड होता कि वह ग्रीस को मरहम बना कर और काली रेत को मंजन बना कर बेच लेता, 
वह भीड में मूर्खों को ताड लेता उनको मंजन मुफ्त जैसे बाँट कर फंसा लेता फिर उनसे बातों की चोट से पैसे निकलवा लेता.
महफ़िल बर्खास्त होने से पहले अपने शिकारों को मुखातिब करके बतलाता कि 
तुममे कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हों ने कल रत अपनी माँ के साथ ज़िना किया होगा , वह तुसे कहेगे कि फंस गए बेटा.
कभी कभी मोदी का भाषण सुनकर एकदम मुझे कालिया मदारी याद आता है और उसके श्रोता गण.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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