वेद दर्शन - - -7
ऋग वेद -प्रथम मंडल
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
खेद है कि यह वेद है . . .
दूध भरे स्तनों वाली रंभाती हुई गाय के समान बिजली गरजती है.
गाय जिस प्रकार बछड़े को चाटती है, उसी प्रकार बिजली मरूद गणों की सेवा करती है. इसी के फल स्वरूप मरूद गणों ने वर्षा की है.
(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 3)(8)
पोंगा पंडित की मंतिक़ देखिए , रंभाती गाय बिजली गरजती है तो मरूद गण वर्षा करते हैं. कुत्ते के भौंकने से मरूद गणों की हवा खिसकती होगी.
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हे अश्वनी कुमारो ! सागर तट पर स्थित तुमहारी नौका, आकाश से भी विशाल है. धरती पर गमन करने के लिए तुम्हारे पास रथ हैं,
तुम्हारे यज्ञ कर्म में सोमरस भी सम्लित रहता है.
(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 46)(8)
कल्पित देवताओं के कल्पित कारनामों को पुरोहित देवताओं को याद दिला दिला कर अपने बेवकूफ यजमान को प्रभावित करता है. जैसे कि वह उनके हर कामों का चश्म दीद गवाह हो.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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