Tuesday 7 February 2017

Hindu Dharm Darsha 40



मुझे हिन्दुत्व अज़ीज़ है, 

हिंदुत्व मेरी पहली पसंद ही नहीं, मेरा ईमान भी है. 
हर हिदुस्तानी को मेरी तरह ही हिन्दुत्व प्रेम होना चाहिए, 
ख्वाह वह किसी जाति या धर्म का हो.
सिर्फ हिन्दुस्तान में ही नहीं ,
दुन्या के हर भूभाग का अपना अपना कलचर होता है, 
तहजीबें होती हैं और रवायतें होती हैं. हिदुस्तान का कलचर अधिक तर हिंसा रहित है. मारकाट से दूर , मान मोहक नृत्य और गान के साथ. 
जब धर्म और मज़हब कलचर में घुसपैठ बना लेते हैं तो, 
वहां के लोगों को जेहनी कशमकश हो जाती है 
जो बाद में विरोध और झगडे का कारण बन जाते हैं. 
मुझे हिन्दुत्व इस लिए पसंद है कि हम कभी सोच भी नहीं सकते कि 
शादी ब्याह में मेरी बेटी के तन पर अरब के सफेद जोड़े में रुखसत हो, 
आलावा सुर्ख लिबास के दूसरा कोई रंग मुझे गवारा नहीं. 
मुझे बदलते मौसम के हर त्यौहार पसंद हैं, 
जो मेले ठेले के रूप में होते है, मेरा दिल मोह लेते हैं 
जब मेले जाती हुई महिलाएं  रवायती गीत गाती हैं. 
जब मुख्तलिफ जातियां शादी बारात में अपने अपने पौराणिक कर्तव्य दिखलाती हैं. मुझे रुला देता है वह पल जब बेटी अपने माँ बाप को आंसू भरी आँखों से विदा होती है. मैं अन्दर ही अन्दर नाचने लगता हूँ 
जब कोई कबीला अपने आबाई रूप में तान छेड़ता है. 
मैं ही नहीं अमीर ख़ुसरो, रहीम, रसखान और नजीर बनारसी जैसे 
मुसलमान भी  हिन्दुत्व पर नहीं बल्कि अपनी सभ्यता पर जान छिड़कते थे.
धर्मों ने आकर सभ्यताओं,में दुर्गन्ध भर दी है, 
खास कर इस्लाम ने इसे गुनाह करार दे दिया हैं. 
इस्लाम की शिद्दत इतनी रही कि बारात में नाचने गाने को हराम करार दिया है, 
वह कहता है कि इन मौकों पर दरूद शरीफ 
(सय्यादों यानी मुहम्मद के पुरखों का गुनगान) 
पढ़ते हुए चलो. 
मनुवाद ने नाचने गाने की आज़ादी तो दी है मगर हर मौके पर अपने किसी आत्मा को घुसेड दिया है कि इनकी पूजा भी ज़रूरी हो गई है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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