Tuesday 1 January 2019

सूरह ज़ारियात = 51= سورتہ الذاریات (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह ज़ारियात = 51= سورتہ الذاریات
(मुकम्मल)

"क़सम है उन हवाओं की जो ग़ुबार वग़ैरह उडाती हैं."
"फिर उन बादलों की क़सम जो बोझ को उठाते हैं."
"फिर उन कश्तियों की क़सम जो नरमी से चलती हैं."
"फिर उन फ़रिश्तों की क़सम जो चीज़ें तक़सीम करते हैं."
"क़सम है आसमान की जिसमें रास्ते हैं कि 
तुम से जो वादा किया गया है, वह सच है."
"तुम क़यामत के बारे में मुख़तलिफ़ गुफ़्तुगू में हो, 
इससे वही फिरता है जो फिरने वाला है. ग़ारत हो जाएँगे बे सनद बातें करने वाले."
"पूछते हैं कि रोज़े-जज़ा का दिन कब है?"
"जिस रोज़ तुम आग पर रखे जाओगे फिर कहा जाएगा, 
अपनी इस सज़ा का मज़ा चक्खो जिसकी तुम जल्दी मचा रहे थे."
सूरह ज़ारियात 51 आयत (1-14)

क़यामत मुहम्मद का सबसे बड़ा हथियार रहा है. वह इस शोब्दे को लेकर काफ़ी क़ला बाज़ियाँ खाते हैं. लोगो ने इनकी चिढ़ बना ली थी, जब सामने पड़ते लोग तफ़रीह के मूड में आ जाते और उनसे पूछते कि "मियाँ अल्लाह के रसूल क़यामत कब आएगी?" और उनका बड़बड़ाना शुरू हो जाता. 
हैरत है कि आज ये बड़बड़ तिलावत और इबादत बन गई है.
देखा गया है, झूठा और बेवक़अत इंसान ही क़समें खाता है, 
जब अपने झूट में ख़ुद उसकी निगाह जाती है तो क़समें खाकर ख़ुद से मुँह छुपता है. अब भला ग़ुबार उठाने वाली हवाओं की क़सम क्या वज़न रखती है? 
या बदल कौन से मुक़द्दस हैं? 
ये नरमी से चलने वाली कशतियां क्या होती हैं? 
फ़रिश्ते चीज़ें कब बाँटते है? 
आसमान में रास्ता, गली और सड़क कब और कहाँ है? 
कठमुल्ले अल्लाह की बात को लाल बुझक्कड़ी दिमाग़ से साबित कर सकते हैं 

"कि आज जो जहाज़ों के रास्ते फ़िज़ा में बनाए गए हैं, इसकी भविष्य बाणी हमारे  क़ुरआन में पहले से ही है. 
ऐसे बहुत से अहमक़ाना मिसालें देखने और सुनने में आती हैं. ऐसी बहुत सी नजीरें हैं.

"जब कि वह इनके पास आए, इनको सलाम किया 
इब्राहीम ने भी कहा सलाम, 
अंजान लोग हैं, 
फिर अपने घर की तरफ़ चले और एक फ़रबा बछड़ा लाए
 और इसको उनके सामने रक्खा, 
कहने लगे आप लोग खाते क्यूँ नहीं,
 तो इनसे दिल में खौ़फ़ ज़दा हुए. 
उनसे कहा डरो मत और एक फ़रज़न्द की बशारत दी, 
जो बड़ा आलिम होगा. 
इतने पर इनकी बीवी बोली, 
आएँ !
 फिर माथे पर हाथ मारा,
 कहने लगी बुढिया बाँझ?
 फ़रिश्ते कहने लगे तुम्हारे परवर दिगार ने ऐसा ही फ़रमाया है. 
कुछ शक नहीं कि वह बड़ा हिकमत वाला है. 
इब्राहीम कहने लगे कि अच्छा तो तुमको बड़ी मुहिम क्या दर पेश है?
 ऐ फरिश्तो! 
फ़रिश्तों ने कहा हम एक मुजरिम क़ौम की तरफ़ भेजे गए हैं 
ताकि हम इनके ऊपर मिटटी के पत्थर बरसाएँ, 
जिस पर आप के रब के पास ख़ास निशानियाँ भी हैं, 
हद से गुज़रने वालों के लिए. 
और हमने जितने ईमान वाले थे वहां पर, उनको निकाल कर अलाहिदा कर दिया है, 
सो बजुज़ एक मुसलमान के और कोई घर हमने नहीं पाया. 
और हमने इस वाक़ेए में ऐसे लोगों के लिए एक इबरत रहने दी 
जो दर्द नाक अजाब से डरते है."   

ये आयतें तौरेती वाक़िए की बेहूदा शक्लें हैं. 
चूँकि मुहम्मद  क़ुरआन में शायरी गढ़ते हैं 
तो ज़बान नज़्म की रह जाती है न नस्र की. 
गोया मतलब शेर का बर बतने-शायर रह गया.
इन आयतों में आलिमों ने तफ़सीर और इस्लाह करके इसे  क़ुरआन बना दिया है. 
ज़रुरत इस बात की है कि आप समझें कि क़ुरआन की हैसियत क्या है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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