Friday 25 January 2019

सूरह मुमतहा- 60 - سورتہ الممتحنہ(मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह मुमतहा- 60 - سورتہ الممتحنہ

(मुकम्मल)

  क़ुरआन कहता है - - -

"ऐ ईमान वालो ! तुम मेरे दुश्मनों और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाओ कि इनकी दोस्ती का इज़हार करने लगो, हालाँकि तुम्हारे पास जो दीन ए हक़ आ चुका है, वह इसके मुनकिर है. रसूल को और तुमको इस बिना पर कि तुम अपने परवर दिगार पर ईमान ले आए, शहर बदर कर चुके हैं. अगर तुम मेरे रस्ते पर जेहाद करने की ग़रज़ से , मेरी रज़ामंदी ढूँढने की ग़रज़ से निकले हो. तुम इनसे चुपके चुपके बातें करते हो , हालाँकि मुझको हर चीज़ का इल्म है. तुम जो कुछ छिपा कर करते हो और जो ज़ाहिर करते हो. और तुम में से जो ऐसा करेगा, वह राहे रास्त से भटकेगा."
सूरह मुमतहा 60 आयत (1)

  मुहम्मद के साथ मक्का से मदीना हिजरत करके आए हुए लोगों को अपने ख़ूनी रिश्तों से दूर रहने की सलाह अल्लाह के नबी बने मुहम्मद दे रहे हैं. 
मुसलमानों का इनसे मेल जोल मुहम्मदी अल्लाह को पसंद नहीं. 
हर चुगल खो़र की इत्तेला अल्लाह की आवाज़ का काम करती है. 
 क़ुरआन ख़ूनी रिश्तों को दर किनार करते हुए कहता है - - -

"अपने अज़ीज़ों से बे तअल्लुक़ ही नहीं, बल्कि उनके दुश्मन बन जाओ, और ऐसे दुश्मन कि उनको जेहाद करके क़त्ल कर दो."

इंसानियत के ख़िलाफ़ इस्लामी ज़हर को समझें. जिसे आप पिए हुए हैं.
मुहम्मद और इस्लामी काफ़िरों का एक समझौता हुवा था कि अगर क़ुरैश में से कोई मुसलमान होकर मदीना चला जाए तो उसको मदीने के मुसलमान पनाह न दें, 
इसी तरह मदीने से कोई मुसलमान मुर्तिद होकर मक्का में पनाह चाहे तो 
उसे मदीना पनाह न दें. 
इस मुआह्दे के बाद एक क़ुरैश ख़ातून जब मुसलमान होकर मदीना आती हैं तो मुहम्मदी अल्लाह फिर एक बार मुआहदा शिकनी करके उसे पनाह दे देता है. मुहम्मद फिर एक बार वह्यी का खेल खेलते हैं, अल्लाह कहता है कि अगर उसके शौहर ने उसका महर अदा किया हो तो वह उसे अपने शौहर को वापस करके मदीने में रह सकती है.
यह हुवा करती थी मुहम्मदी अल्लाह की ज़बान और पैमाने.

"जो मुसलमान अपने बाल बच्चों को छोड़ कर मदीने आए हैं, अपनी काफ़िर बीवियों से तअल्लुक़ ख़त्म कर लें और मुसलमान बीवियाँ जो मक्का में फँसी हुई है, इनके शौहर का हर्ज खर्च देकर कुफ़्फ़ार इनको अपनी मिलकियत में लेलें और इसी तरह मुसलमान इनकी बीवियों का हर्जाना अदा करदें."
सूरह मुमतहा 60 आयत (10)

ग़ौर  तलब है की मुहम्मद की नज़र में क्या क़द्र  ओ क़ीमत थी औरतों की ? मवेशियों की तरह उनकी ख़रीद फ़रोख्त करने की सलाह देते है सल्ललाह. 
कितना मज़लूम और बेबस कर दिया था पैग़ामबर बने मुहम्मद ने.
माज़ी में इंसान मजबूर और बेबस था ही, कोई इस्लाम ही जाबिर नहीं था, 
मगर वह माज़ी आज भी ईमान के नाम पर ज़िन्दा है. 
अरब में आज भी औरतों के दिन नहीं बहुरे हैं, 
सात परदे के अन्दर हरमों में मुक़य्यद यह ख़ुदा की मख़लूक़  पड़ी हुई है. 
झूठे और शैतान ओलिमा कहते हैं कि इस्लाम औरतों को बराबर के हुक़ूक़ देता है.
मुसलमान औरतें जो मक्का से आती हैं उनकी खासी छानबीन हुवा करती थी, कहीं वह काफ़िरों से हामला होकर तो मदीने में दाख़िल नहीं हो रही?
 क्या होने वाला बच्चा भी काफ़िर ही पैदा होगा? ईमान लाई माँ की तरबियत क्या उसे काफ़िर बना देगी? 
मुहम्मद को इतनी भी अक़्ल  नहीं थी.
सूरह मुमतहा 60 आयत  (10) ?

ये औरतें बोहतान की औलादें साथ में लेकर न आएंगी जिनको कि अपने हाथों और पाँव के दरमियान बना लें - - -
सूरह मुमतहा 60 आयत (12)
यह किसी अल्लाह की आवाज़ हो सकती है ???  
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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