Wednesday 2 January 2019

सूरह तूर - 52 -سورتہ الطور (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह तूर - 52 -سورتہ الطور
(मुकम्मल)

पूरी दुन्या की तमाम मस्जिदों में नमाज़ से पहले अज़ानें होती हैं होती हैं. 
 हर नमाज़ी नमाज़ की नियत बांधने के साथ साथ अज़ान को दोहराता है.
अज़ान का एक जुमला होता है - - -
अशहदों अन ला इलाहा इल्लिल्लाह.
(मैं गवाही देता हूँ कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है)
दूसरा जुमला है - - -
अशहदो अन्ना मुहम्मदुर ररूलअल्लाह 
(मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं)
गवाही का मतलब होता है आँखों से देखा और कानों से सुना हो.
कोई बतलाए कि कोई कैसे दावा कर सकता है कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है? इस बात पर यक़ीन हो सकता है कि इस कायनात को बनाने वाली कोई एक ताक़त है मगर इस बात की गवाही नहीं दी जा सकती.
सवाल ये उठता है कि हज़ारों मुअज़्ज़न और लाखों नमाज़ियों ने ये कब देखा और कब सुना कि अल्लाह मुहम्मद को अपना रसूल (दूत) बना रहा था?
हर इंसान के लिए ये अज़ान आलमी झूट की तरह है 
जिसे मुसलमान आलमी सच मानते है और अज़ान देते हैं.
राम चंद परम हंस ने अदालत में झूटी गवाही दी कि 
"मैंने अपनी आँखों से कि गर्भ गृह से राम लला हो पैदा होते हुए देखा."
जिसे अदालत ने झूट करार दिया. 
साधू की गवाही झूटी सही मगर थी गवाही ही.
मुसलमानों की झूटी गवाही तो गवाही ही नहीं है, 
पहली जिरह में मुक़दमा ख़ारिज होता है कि मुआमला चौदह सौ साल पुराना है और मुल्लाजी की उम्र महेज़ चालीस साल की है, उन्हों ने कब देखा और सुना है कि इनके नबी अल्लाह के रसूल बनाए गए? 
मुसलमानों की पंज वक्ता गवाही 
उनकी ज़ेहनी पस्ती की अलामत ही कही जाएगी.
जिस तरह मुहम्मदी अल्लाह झूटी गवाही और शहादत को पसंद करता है, 
उसी तरह झूटी क़सम भी उसकी पसंद है.
 देखिए उसकी क़समें कौन कौन सी चीज़ों को मुक़द्दस बनाए हुए है  - -  

 "क़सम है तूर पहाड़ की और इस किताब की जो कोरे काग़ज़ पर लिखी हुई है, और क़सम है  बैतुल उमूर की और ऊँची छत की और दरियाए शोर की जो पुर है कि बेशक तुम्हारे रब का अज़ाब होकर रहेगा."
सूरह तूर 52 आयत (1-7)
* तूर पर्बत अरब में है, तौरेती रिवायात है कि अल्लाह ने मूसा को अपनी एक झलक तूर पर दिखलाई थी जिसके तहेत तूर पर्बत अल्लाह की झलक पड़ते ही जल कर सुरमा बन गया जो लोगों में आँख की रौशनी बढ़ता है.
*कोई किताब कोरे काग़ज़ पर ही लिखी जाती है, 
लिखे हुए पर काग़ज़ पर नहीं. 
है न हिमाक़त की बात?
* कहते हैं कि बैतुल उमूर सातवें आसमान पर एक काबा है जिसमें सिर्फ़ फ़रिश्ते हज करने जाते हैं. उसमें हर साल सत्तर हज़ार (मुहम्मद की पसंद दीदा गिनती) फ़रिश्ते ही हज कर सकते है. बाक़ी फ़रिश्ते वेटिंग लिस्ट में र्सहते हैं.
* ऊँची छत से मुराद है सातवाँ आसमान . 
फिल हाल अभी तक साबित नहीं हुवा कि आसमान है भी या नहीं? 
पहले, दूसरे छटें और सातवें की छत काल्पनिक है.
*दरिये शोर, अहमक़ रसूल समंदर को दर्याय शोर ही कहा करते थे,
इसे भरा हुवा कहते है ग़रज़ ये भी एक हिमाक़त है.
झूठे रसूल अपनी बात सच साबित करने के लिए इन चीजों की क़समें खाते हैं, मुसलमानों को यक़ीन दिलाते है कि अज़ाब होकर रहेगा. 
जैसे अल्लाह कोई तौफ़ा देने का वादा कर रहा हो.

"कोई इसे टाल नहीं सकता. जिस रोज़ आसमान थरथराने लगेंगे, और पहाड़ हट जाएँगे, जो लोग झुटलाने वाले हैं, जो मशगला में बेहूदी के साथ लगे रहते हैं, इनकी इस रोज़ कमबख़ती आ जायगी. जिस रोज़  इन्हें आतिशे दोज़ख़ की तरफ़ धक्के मार कर लाएँगे, . . ये वही दोज़ख़ है जिसे तुम झुट्लाते थे, फिर क्या सेहर है या तुमको नज़र नहीं आ रहा."
सूरह तूर 52 आयत (8-15)
"मुत्तक़ी लोग बिला शुबहा बागों और सामान ए ऐश में होंगे.
ख़ूब खाओ पियो अपने आमालों के साथ.
तकिया लगाए हुए तख़्तों पर बराबर बिछाए हुए हैं.
हम उनका गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वालियों से ब्याह करा देंगे.
और हम उनको मेवे और गोश्त, जिस क़िस्म का मरगू़ब हो रोज़े अफ़जूँ  देते रहेंगे.
वहाँ आपस में जाम ए शराब में छीना झपटी करेंगे, इसमें न बक बक लगेगी.और न कोई बेहूदा बात होगी.
इनके पास ऐसे लड़के आएँगे, जाएँगे जो ख़ास इन्हीं के लिए होंगे,
गोया वह हिफ़ाज़त में रखे मोती होंगे वह एक दूसरे की तरफ़ मुतवज्जो होकर बात चीत करेंगे.
ये भी कहेगे की हम तो इससे पहले अपने घर में बहुत डरा करते थे, सो अल्लाह ने बड़ा एहसान किया.  
सूरह तूर 52 आयत (17-27)
सामान ए ऐश के लिए गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वालियां होंगी,
शराब क़बाब के दौर चलेंगे, धींगा मुश्ती होगी,
तख़्तों पर जन्नती बे खटके बेशर्मी करेंगे.
वहाँ न किसी क़िस्म की हरकत नाज़ेबा न होगी और इज्तेमाई अय्याशी रवा होगी. सभी जन्नती एक दूसरे की नकलों हरकत देख कर मह्जूज़ हुवा करेंगे. 
मन पसंद गोश्त और मेवे शराब के साथ बदर्जा स्नैक्स होंगे, जिसे ऐसे लड़के लेकर आएँगे, जाएँगे जो ख़ास इन्हीं जन्नातियों के लिए वक्फ़ होगे, वह चाहें तो उनका हाथ खींच कर उन्हें अपने तख़्त पर लिटा लें.
सारी हदें पार करते हुए मुहम्मद जन्नातियों को लौंडे बाज़ी की दावत देते है. 
वहाँ कोई काम न करना पडेगा, न ही नमाज़ रोज़ा न वज़ू की पाकीज़गी की ज़रुरत होगी.
बस कि जिनसे-लतीफ़ और जिनसे-गलीज़ की जन्नत में हर वक़्त डूबे रहिए.

मुहम्मद का तसव्वर ग़ौर तलब है. कहते है कि जन्नती ये भी कहेंगे - - -
"ये भी कहेगे की हम तो इससे पहले अपने घर में बहुत डरा करते थे, सो अल्लाह ने बड़ा एहसान किया."
शर्म! शर्म!!शर्म!!!
ये नापाक बातें किसी नापाक किताब में ही दीन के नाम पर मिलती होंगी. 
अय्यास मुसव्विर का तसव्वुर मुलाहिजा हो - --

"आप समझाते रहिए क्यूँकि आप बफ़ज़्लही तअला न काहन हैं न मजनूँ हैं, हाँ क्या ये लोग कहते हैं कि ये शायर है? हम इनके वास्ते हादसा ए मौत का इंतज़ार करते हैं."
हाँ क्या वह लोग कहते हैं की  क़ुरआन को इसने ख़ुद गढ़ लिया है, बल्कि तस्दीक नहीं करते तो ये लोग इस तरह का कोई कलाम ले आएँ."
सूरह तूर 52 आयत (30-33

मुहम्मद काश कि काहन या मजनू होते तो बेहतर होता, आज उनकी एक उम्मत न तैयार होती, जो मौत और ज़ीस्त में मुअल्लक़ है.
मुहम्मद शायर तो कतई नहीं थे मगर मुतशयर (तुक्बन्दक) ज़रूर थे क्यूँकि पूरा  क़ुरआन एक फूहड़ तरीन तुकबंदी है.

"हम इनके वास्ते हद्साए मौत का इंतज़ार करते हैं." 
ये बात अल्लाह कह रहा है जो हुक्म देता है तो पत्ता हिलता है, 
और इतना मजबूर कि इंसान की मौत का मुताज़िर है. 
ये कमबख़्त मरे तो हम इसको दोज़ख़ का मज़ा चखाएं.

"क्या ये लोग बदून ख़ालिक़ के ख़ुद ब ख़ुद पैदा हो गए? हैं या ये लोग ख़ुद अपने ख़ालिक़ हैं? या उन्हों ने आसमान आर ज़मीन को पैदा किया है? बल्कि ये लोग यक़ीन नहीं लाते. क्या इन लोगों के पास तुम्हारे रब के खज़ाने हैं? या ये लोग हाकिम हैं? क्या इनके पास कोई सीढ़ी है? कि इस पर चढ़ कर बातें सुन लिया करते हैं- - - "
सूरह तूर 52 आयत (38)

ये तमाम बातें तो आप पर ही लागू होती है,
 ऐ अल्लाह के मुजरिम, नकली रसूल ! !

"वह आसमान का कोई टुकड़ा अगर गिरता हुवा देखें तो यूं कहेंगे की ये तो तह बहुत जमा हुवा बादल है ."
सूरह तूर 52 आयत (44)
इसका अंदाज़ा ख़ुद मुहम्मद ने ही लगाया होगा क्यूँकि उनकी सोच यही कहती है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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