Wednesday 9 January 2019

सूरह रहमान-55 -سورتہ الرحمان (क़िस्त 1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह रहमान-55 -سورتہ الرحمان  
(क़िस्त  1)

सूरह रहमान को मेरी नानी बड़े ही दिलकश लहेन में पढ़ती थीं. 
उनकी नक़ल में मैं भी इसे गाता था. 
उनके हाफिज़ जी ने उनको बतलाया था कि इस सूरह में अल्लाह ने अपनी बख़्शी  हुई नेमतों का ज़िक्र  किया है .
सूरह को अगर अरबी गीत कहें, तो उसका मुखड़ा यूँ था,
"फबेअय्या आलाय रबबोकमा तोकज्ज़ेबान " 
यानी
"सो जिन्न ओ इंसान तुम अपने रब के कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे"
जब तक मेरा शऊर बेदार नहीं हुवा था मैं अल्लाह की नेमतो का मुतमन्नी रहा कि उसने हमें अच्छे और लज़ीज़ ख़ाने का वादा किया होगा, बेहतरीन कपड़ों  का, शानदार मकानों का और दर्जनों ऐशों का ख़याल दिल में आता बल्कि हर सहूलत का तसव्वुर ज़ेहन में आता कि अल्लाह के पास क्या कमी होगी जो हमें न नसीब होगा ? इसी लालच में मैंने नमाज़ें पढ़ना शुरू कर दिया था.
जब मैंने दुन्या देखी और उसके बाद क़ुरआनी कीड़ा बन्ने की नौबत आई तो पाया की अल्लाह की बातों में मैं भी आ गया.
इस सूरह को क़ुरआन की कुल्लियात कहा जा सकता है 
जो अज़ाबों और सवाब पर मुश्तमिल है.
* सूरह पर मेरा यही तबसरा है मगर आपसे गुज़ारिश है कि सूरह का पूरा तर्जुमा ज़रूर पढ़ें.
नेमतों में ज़्यादः हिस्सा क़यामतें हैं, 
बे शऊर उम्मी की फ़िक्र पर मातम कीजिए.
  "रहमान ने, (1)
क़ुरआन की तालीम दी, (2)
 इसने इंसान को पैदा किया,  (3)
 इसको गोयाई सिखलाई,   (4)
सूरज और चाँद हिसाब के साथ हैं, (5)
और बे तने के दरख़्त और तने दार दरख़्त मती (क़ैदी) है, (6)
 और इसी ने आसमान को ऊँचा किया और इसी ने तराज़ू रख दी, (7)
 ताकि तुम तौलने में कमी बेश न करो, (8)
और इन्साफ़ और हक़ के साथ वज़न को ठीक रक्खो और तौल को घटाओ मत. (9)
इसी ने खिलक़त के वास्ते ज़मीन को रख दिया, (10)
 कि इसमें मेवे हैं और खजूर के दरख़्त हैं जिन पर गिलाफ़ होता है, (11)
और ग़ल्ला है जिसमें भूसा होता है और गिज़ा की चीज़ है,  (12)
सो जिन्न और इन्स! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे? (13)
सूरह रहमान  55 आयत (1-13)
 {रहमान की 13 नेमतें}

इसी ने इंसान को ऐसी मिटटी से जो ठीकरे की तरह बजती थी, से पैदा किया, जिन्नात को आग से. {नेमत14}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"वह  मग़रिब ओ मशरिक़ दोनों का मालिक है, {नेमत15}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत16}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत17}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं,  {नेमत18}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत19}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी से सब ज़मीन और आसमान वाले मांगते हैं, वह हर वक़्त किसी न किसी काम में रहता है.{नेमत20}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
ऐ दोनों बोझल काफ़िले वालो ! हम बहुत जल्द तुम्हारे हिसाब निमटा देंगे. .{नेमत21}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
ऐ जिन्नों और इंसानों अगर तुम से हो सके तो आसमानों और ज़मीन की सरहदों से बाहर निकल जाओ, नहीं निकल सकोगे मगर इसके लिए तुम्हें बड़ा ज़ोर लगाना पडेगा. .{नेमत22}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
तुम पर अगर आग के शोले और पिघला हुवा तांबा छोड़ा जाए कि उसका मुक़ाबिला नहीं कर सकोगे. .{नेमत23}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?
जब आसमान फट जाएगा और गरम तेल की तलछट की तरह गुलाबी हो जाएगा..{नेमत24}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?" 
 वह दिन ऐसा ह्प्गा कि किसी इंसान और जिन्न से उसके गुनाह के बारे में ज़्यादः पूछने की ज़रुरत न होगी. .{नेमत25}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
मुजरिमों को उनके चेहरों से पहचान लिया जाएगा और उनकी पेशानी और दोनों पाँव पकड़ कर जहन्नम में झोंक दिया जाएगा.  .{नेमत26}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"जहन्नम में उबलते खुलते पानी के लावे में उनको फेरे लगाने पड़ेंगे..{नेमत27}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?" 
"वह  मगरिब ओ मशरिक़ दोनों का मालिक है, {नेमत28} 
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत29} 
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत30}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
"इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं,  {नेमत31}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"
मुसलमानों! 
तुम्हारे लिए मुहम्मदी अल्लाह का यही वरदान है जो सूरह रहमान में है. 
हिम्मत करके इस अनचाहे वरदान को क़ुबूल करने से इंकार कर दो,
क्यूँक तुम्हारी नस्लें इस बात की मुन्तज़िर हैं कि 
उनको इस वहशी अल्लाह से नजात मिले.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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