Tuesday 14 April 2020

खेद है कि यह वेद है (45)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (45)

उषा को जानते हुए जो मेघावी अग्नि कांतदर्शियों के मार्ग पर जाते हुए जगे थे, 
वही परम तेजस्वी अग्नि देवों को चाहने वाले लोगों द्वारा प्रज्वलित होकर अज्ञान के जाने के द्वार खोलते हैं.
तृतीय मंडल सूक्त 5 (1)
अग्नि की हमारी बस इतनी सी पहचान है कि यह हिन्दुओं को मालामाल करती है और मुसलमानों को दोज़ख़ में तडपा तडपा कर भूनती है. 
पंडित इस अग्नि महिमा को गाकर हलुवा पूरी उड़ाते हैं 
और मुल्ले इसके तुफैल में मुर्ग मुसल्लम डकारते हैं. 
यह दोनों जीव अग्नि के और कोई रूप जानते भी नहीं.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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