Sunday 5 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (49)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (49)

अध्याय ग्यारा में भगवन कृष्ण के विराट और विचित्र रूप का चित्रण है 
जिसमे कहानी कार ने अलौकिकता की हदें पार करदी हैं.  
उस धूर्त ने भविष्य की कल्पना भी नहीं की कि एक युग ऐसा भी आएगा कि जनता उसकी तरह ही शिक्षित हो जाएगी, तब उस पर धिक्कार की वर्षा होगी. 
 दुःख इस बात का है कि प्रजा शिक्षित तो हो चुकी है मगर राजा अलौकिकता को पचाए हुए है. 
आज भी इन कपोल कल्पित कथाओं को हाथों में लेकर इनकी शपत ली जाती है. अदालत एलानिया अंधी होती है , संविधान पर चलती है जो राजा का होता है.

अर्जुन पूछते हैं - - - 
हे पुरोशोत्तम ! 
हे परमेश्वर !! 
यद्यपि आप को मैं अपने समक्ष आपके द्वारा वर्णित आपके वास्तविक रूप में देख रहा हूँ, किन्तु मै यह देखने का इच्छुक हूँ कि आप इस दृश्य जगत में किस प्रकार प्रविष्ट हुए हैं. मैं आपके उसी रूप का दर्शन करना चाहता हूँ. 
** हे प्रभु ! 
हे योगेश्वर !! 
यदि आप सोचते हैं कि मैं आपके विश्व रूप को देखने में समर्थ हो सकता हूँ, तो कृपा करके मुझे अपना असीम विश्व रूप दिखलाइए.
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>किन्तु तुम मुझे अपनी इन आँखों से नहीं देख सकते. 
अतः मैं तुम्हें दिव्य आँखे दे रहा हूँ. अब मेरे योग ऐश्वर्य को देखो.
>>अर्जुन ने उस विश्व रूप में असंख्य मुख असंख्य नेत्र तथा असंख्य आश्चर्यमय दृश्य देखे. ये रूप अनेक  दैवी आभुश्नों से आलंकृत था और अनेक दैवी हथियार उठाए हुए था. यह दैवी मालाएँ तथा वस्त्र धारण किए था 
और उस पर अनेक दिव्य सुगन्धियाँलगी थीं. सब कुछ आश्चर्य मय, तेज मय, असीम तथा सर्वत्र व्याप्त था.
>>>यदि आकाश में हजारों सूर्य एक साथ उदय हों, 
तो उनका प्रकाश शायद परम पुरुष के इस विश्व रूप तेज की समता कर सके. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -11  - श्लोक -3 +4 + 10 11 +12+++++
>मैंने अपनी इन दिव्य आँखों से देखा कि भगवान् के शरीर पर रखे बड़े बड़े हौदों के आकार में रख्खी थालियों में सजे स्वादिष्ट व्यंजन, हजारों तोंद्यल बरहमन जनेऊ चढ़ाए अपने उदर में टून्स ठूंस कर भर रहे थे. वहीँ दूसरी ओर वंचित, दलित और शोषित प्रजा कीमती और सुगन्धित पकवान को देख देख कर और सूंघ सूंघ कर ही आनंदित हो रही थी और तालियाँ बजा रही थी.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>''वह ऐसा है कि उसने ज़मीन को फैलाया और उसमे पहाड़ और नहरें पैदा कीं और उसमे हर किस्म के फलों से दो दो किस्में पैदा किए. रात से दिन को छिपा देता है. इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है. और ज़मीन में पास पास मुख्तलिफ़ टुकड़े हैं और अंगूरों के बाग़ है और खेतयाँ हैं और खजूरें हैं जिनमें तो बअजे ऐसे है कि एक तना से जाकर ऊपर दो तने हो जाते हैं और बअज़े में दो तने नहीं होते, सब को एक ही तरह का पानी दिया जाता है और हम एक को दूसरे फलों पर फौकियत देते हैं इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (३-४)

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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