Friday 24 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा.(55)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा.(55)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>जो व्यक्ति प्रकृति जीव तथा प्रकृति के गुणों को अंतः क्रिया से संबंधित इस विचार धारा को समझ लेता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति सुनिश्चित है. 
उसकी वर्तमान स्थिति चाहे जैसी हो, 
यहाँ पर उसका पुनर जन्म नहीं होगा. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -13   श्लोक -24  
*अधूरा सत्य . यहाँ तक तो ठीक है कि जो व्यक्ति प्रकृति जीव तथा प्रकृति के गुणों को अंतः क्रिया से संबंधित इस विचार धारा को समझ लेता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति सुनिश्चित है. उसकी वर्तमान स्थिति चाहे जैसी हो, 
इंसान इतना समझदार हो जाए तो ज़िन्दगी की तमाम हकीक़तें अफसाना ही तो होती हैं, जो जीवन में घटता है, हम उसके गवाह मात्र हो जाएँ तो समझदारी है, 
ग़ैर ज़रूरी अशांति से मुक्त हो सकते हैं. 
मगर यह पुनरजन्म अजीब मंतिक है जिसे हिन्दू धर्म गढे हुए है. 
पुनरजन्म पंडो का कथा श्रोत है. 
न पुनरजन्म होता हैं न पूर्व जन्म. 
बेटा इंसान का पुनरजन्म हैं तो बाप उसका पूर्व जन्म. 
हर जानदार का यही सच है, बाक़ी सब झूट और मिथ्य.  
और क़ुरआन कहता है - - - 
>ऐसे कुरान से जो मुँह फेरेगा वह रहे रास्त पा जायगा और उसकी ये दुन्या संवर जायगी. वह मरने के बाद अबदी नींद सो सकेगा कि उसने अपनी नस्लों को इस इस्लामी क़ैद खाने से रिहा करा लिया.
रूरह ताहा २० _ आयत (१०१-११२)
इंसान को और इस दुन्या की तमाम मख्लूक़ को ज़िन्दगी सिर्फ एक मिलती है, सभी अपने अपने बीज इस धरती पर बोकर चले जाते हैं और उनका अगला जनम होता है उनकी नसले और पूर्व जन्म हैं उनके बुज़ुर्ग. साफ़ साफ़ जो आप को दिखाई देता है, वही सच है, बाकी सब किज़्ब और मिथ्य है. कुदरत जिसके हम सभी बन्दे है, आइना की तरह साफ़ सुथरी है, जिसमे कोई भी अपनी शक्ल देख सकता है. इस आईने पर मुहम्मद ने गलाज़त पोत दिया है, आप मुतमईन होकर अपनी ज़िन्दगी को साकार करिए, इस अज्म के साथ कि इंसान का ईमान ए हाक़ीकी ही सच्चा ईमन है, इस्लाम नहीं. इस कुदरत की दुन्या में आए हैं तो मोमिन बन कर ज़िन्दगी गुज़ारिए,आकबत की सुबुक दोशी के साथ.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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