Friday 17 April 2020

खेद है कि यह वेद है (48)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (48)

हे बनस्पति निर्मित यूप ! 
यज्ञं में देवों की अभिलाषा करते हुए 
अध्वर्यु आदि देव संबंधी घी में तुम्हें भिगोते हैं. 
तुम चाहे ऊंचे खड़े रहो अथवा इस धरती माता की गोद में निवास करो, 
पर तुम हमें धन प्रदान करो.  
तृतीय मंडल सूक्त  8 (1) 
धन लोभी पुजारी के पैरोकार हिन्दू समाज भी धन के लिए तमाम मानव मूल्यों को रौंदता हुवा अपने लक्ष को पता है. इनके मंदिरों के पास इतना धन है कि देश की अर्थ व्योस्था इनके आगे हाथ जोड़े खडी रहती है. यह पापी असहाय मानुस को अपना हिस्सा और अपना हक मांगने पर इन्हें नक्सली और माओ वादी कह कर गोलियों से भून देते हैं.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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