Sunday 19 April 2020

खेद है कि यह वेद है (50)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (50)

हे यज्ञकर्ताओं में श्रेष्ट अग्नि ! यज्ञ में देवों की कामना करने वाले यजमानों के कल्याण के लिए देवों की पूजा करो. होता एवं यजमानों को प्रसन्नता देने वाले, तुम अग्नि शत्रुओं को पराजित करके करके सुशोभित होते हो. 
तृतीय मंडल सूक्त 10(7)
इन मुर्खता पूर्ण मन्त्रों का अर्थ निकलना व्यर्थ है. 
एक लालची नव जवान सिद्ध बाबा के दरबार में गया जिनके बारे में नव जवान ने सुन रख्का था कि उनके पास पारस ज्ञान है. नव जवान ने बाबा की सेवा में अपने आप को होम दिया. छः महीने बाद बाबा ने पूछा - 
कौन हो ? कहाँ से आए हो ? मुझ से क्या चाहते हो ? 
नव जवान की लाट्री लग गई. वह बाबा के पैर पकड़ कर बोला
 बाबा ! मुझे परस ज्ञान देदें. 
बाबा ने हंस कर कहा, बस इतनी सी बात ? 
बाबा ने विसतर से नव जवान को परस गढ़ने का तरीका बतलाया, 
जिसे किसी धातु में स्पर्श मात्र से धातु सोना बन जाती है. 
बाबा ने कहा अब तुम जा सकते हो. 
नव जवान का दिल ख़ुशी से बल्लियों उछल गया. 
जाते हुए उसे बाबा ने रोका कि ज़रूरी बात सुनता जा. 
खबरदार ! 
पारस गढ़ने के दरमियान बन्दर का ख्याल मन में नहीं लाना. 
वह तमाम उम्र पारस बनता रहा और बन्दर की कल्पना को भूलने की कोशिश करता रहा.
इसी तरह कुछ मित्रों ने मुझे राय दिया है कि वेद की व्याख्या करते समय, 
सत्य को बीच में न लाना. 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
हे अग्नि ! 
समस्त देव तुम्हीं में प्रविष्ट हैं, 
इस लिए हम यज्ञों में तुम से समस्त उत्तम धन प्राप्त करें .
तृतीय मंडल सूक्त 11(9)
यह कैसा वेद है जो हर ऋचाओं में अग्नि और इंद्र आदि देवों के आगे कटोरा लिए खड़ा रहता है. कभी अन्न मांगता है तो कभी धन. क्या वेद ज्ञान ने लाखों लोगों को निठल्ला नहीं बनाता है? धर्म को तो चाहिए इंसान को मेहनत मशक्कत और गैरत की शिक्षा दे, वेद तो मानव को मुफ्त खोर बनता है.
कौन सा चश्मा लगा कर वह पढ़ते है जो मुझे राय देते हैं कि इसे समझ पाना मुश्किल है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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