Saturday 18 April 2020

खेद है कि यह वेद है (49)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (49)

हे ऋत्वजो !
पवित्र प्रकाश वाले, लकड़ियों पर सोने वाले 
एवं शोभन यज्ञ युक्त अग्नि में हवन करो 
एवं यज्ञ कर्म में व्याप्त, देवों के दूत, शीघ्रा गामी, 
पुरातन स्तुति योग्य एवं दीप्त संपन्न अदनी की शीघ्र पूजा करो .   
तृतीय मंडल सूक्त  9 (8) 
विद्योत्मा से हारे हुए पंडितों ने मूरख कालिदास को पकड़ा 
और उसे यकीन दिलाया कि तेरी शादी राजकुमारी से करा दें, तो कैसा रहेगा. कालिदास के मुंह में पानी आ गया, 
बोला पंडितो ! तुम्हारी जय. 
पंडितों ने शर्त रखी कि तुम उसके सामने मुंह न खोलना, 
इशारा चाहे जैसा कर देना. 
विद्योत्मा ज्ञान का सागर थी, मुकाबिले में महा मूरख कालिदास था. 
विद्योत्मा ने इशारे में ही कालिदास से मुकाबला शुरू किया, 
उसने एक उँगली उठा कर "एक परमात्मा के स्तित्व स्वीकारने का सवाल किया"
मूरख समझा विद्योत्मा मेरी एक आँख फोड़ने की धमकी दे रही है. 
जवाब में उसने अपनी दो उँगलियां विद्योत्मा को आँखों के सामने कर दिया. 
गोया "मैं तुम्हारी दोनों आँखें फोड़ दूंगा." 
शाश्त्रार्थ समाप्त हुवा. पंडितों ने विद्योत्मा को कायल कर दिया कि परमात्मा के साथ आत्मा का भी स्तित्व होता है.
वेद के अधिकतर मन्त्र कालिदास के संकेत हैं 
जिसमे चतुराई माने और मतलब भर करती है.
वेद मन्त्र तब तक कूड़ेदान के हवाले नहीं होंगे, 
जब तक कि भारत के अवाम महा मुरख कालिदास से महा कवि कालिदास 
नहीं बन जाते. तब तक विद्योत्मा ठगाती रहेगी, पांडित्व ठगता रहेगा.  
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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