Saturday 4 April 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (48)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (48)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>यही नहीं , हे अर्जुन ! मैं समस्त सृष्टि का जनक बीज हूँ. 
ऐसा चर अचर कोई भी प्राणी नहीं जो मेरे बिना जीवित रह सके.
**तुम जान लो कि सारा ऐश्वर्य, सौन्दर्य तथा तेजस्वी सृष्टियाँ 
मेरे तेज के एक स्फुलिंग मात्र से उद्भूत हैं.
***किन्तु हे अर्जुन ! 
इस सारे विषद ज्ञान की आवश्यकता क्या है ? 
मैं तो अपने एक अंश मात्र से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में
 व्याप्त होकर इसको धारण करता हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -10  श्लोक - 39 +41+42 
> गीता ज्ञान नहीं, अज्ञान है. इसके नायक की लफ्फाजी में कोई ज्ञान की बात है ? कोई विज्ञान का विन्दु है ? चतुर भृगु अक्षर ज्ञान और काव्य विधा में निपुण, जनता को धर्म का बंधक बनाता है. 
शिक्षा का दुरुपयोग करता है. 
उस समय शिक्षित होना ही बड़ी बात हुवा करती थी जब गीता की संरचना हुई. 
अशिक्षि त समाज में शिक्षित की बात ही मुसतनद मानी जाती थी. 
गीता रच कर रचैता ने मनुवाद को अंतिम रूप दिया है.  
जब इन्ही बातों को हवा की निरंकार मूर्ति अर्थात अल्लाह क़ुरान में बयान करता है तो गीता भक्तों के तन मन में आग लग जाती है, 
ऐसे ही मुसलमान गीता श्लोकों को कुफ्र कहता है. 
अस्ल में दोनों ही धर्म के धंधे हैं, दोनों मानव समाज को ज़हर परोसते हैं. 
और क़ुरआन कहता है - - - 
>उम्मी (निरक्षर) मुहम्मद सदियों पहले अंध वैश्वासिक युग में हुए. 
उन्होंने इर्तेक़ा (रचना क्रिया) के पैरों में ज़ंजीर डाल कर युग को और भी सदियों पीछे ढकेल दिया. इस्लाम से पहले अरब योरोप से आगे था, खुद इसे योरोपियन दानिश्वर तस्लीम करते हैं और अनजाने में मुस्लिम आलिम भी मगर मुहम्मद ने सिर्फ अरब का ही नहीं दुन्या के कई टुकड़ों का सर्व नाश कर दिया.
युग का अँधेरा दूर हो गया है, धरती के कई हिस्सों पर रातें भी दिन की तरह रौशन हो गई मगर मुहम्मद का नाज़िला (प्रकोपित) अंधकार मय इस्लाम अपनी मैजिक आई लिए मुसलमानों को सदियों पुराने तमाशे दिखा रहाहै.
 
आइए अब अन्धकार युग के मैजिक आई कि तरफ़ चलें . . . 
''और हम ही हवाओं को भेजते हैं जो कि बादलों को पानी से भर देती हैं फिर हम ही आसमान से पानी बरसते हैं फिर तुम को पीने को देते हैं और तुम जमा करके न रख सकते थे और हम ही ज़िन्दा करते मारते हैं और हम ही रह जाएँगे.
सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२१-२३)
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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