Monday 4 May 2020

खेद है कि यह वेद है (55)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (55)
हे अग्नि ! 
विस्तीर्ण तेज द्वारा अत्यंत दीप्त,
 तुम हमारे शत्रुओं तथा रोग रहित राक्षसों का विनाश करो. 
मैं सुखदाता, महान एवं उत्तम आह्वान अग्नि की सुरक्षा में रहूँगा.  
तृतीय मंडल सूक्त 15 (1)
पंडित रोगी, रोग रहित राक्षसों का विनाश चाहता है. ईश्वर ने तो दोनों के कर्म को देख कर ही उन पर परिणाम थोप दिया है, अब इन मन्त्रों से तो ईश परिणाम बदलने से रहे. पंडित और मुल्ला खुद अपने दांतों से अपने नस्लों के लिए  कब्र खोदते हैं.  
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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