Friday 15 May 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (64)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (64)

अर्जुन ने कहा - - -
> हे महाबाहु ! मैं त्याग का उद्देश्य जानने का इच्छुक हूँ  और 
हे  केशिनिषूदन !
हे हरिकेश !
मैं त्यागमय जीवन (संन्यास आश्रम) का भी उद्देश्य जानना चाहता हूँ.
>>भगवान् ने कहा --- भौतिक इच्छा पर आधारित कर्मों के परित्याग को विवान लोग संन्यास कहते हैं. और समस्त कर्मों के फल त्याग को बुद्धिमान लोग त्याग कहते हैं. 
>>>हे भारत श्रेष्ट ! अब त्याग के विषय में मेरा निर्णय सुनो.
हे नरशार्दूल !
शास्त्रों में त्याग तीन प्रकार का बतलाया गया है.
>>>यज्ञ दान तथा तपश्या के कर्मों का कभी परित्याग नहीं करना चाहिए, उन्हें आवश्य संपन्न करना चाहिए. निःसंदेह  य ज्ञ दान तथा तपश्या महात्माओं को भी शुद्द बनाते हैं. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -18   श्लोक -1-2-4\5-   
 *इन संदेशों से जनता जनार्दन को क्या सन्देश मिलता है, 
सिवाय महान आत्माओं के ? 
महान आत्माएं क्या मेहनत कश किसान और मज़दूर के बिना ज़िन्दा बच सकते हैं ? मगर जनता जनार्दन इन महानों के बिना जी सकते है, 
बल्कि बेहतर जी सकते है, 
इस लिए कि इनके मेहनत का फल उनके हिस्से में बिना मेहनत के चला जाता है.

***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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