Sunday 3 May 2020

खेद है कि यह वेद है (54)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (54)

हे अग्नि ! 
अन्न और निर्माण करने वाली उषा तथा निशा तुम्हारे समीप जाती हैं. 
तुम भी वायु रूपी मार्ग से उनके समीप जाओ. 
क्योंकि ऋत्वज हवि द्वारा तुझ प्राचीन अग्नि को सीचते हैं. 
जुवे की तरह परस्पर मिली हुई उषा और निशा हमारी यज्ञ शाला में बराबर रहें.
तृतीय मंडल सूक्त 14 (2)

कहा इनका यह अपने आप समझें या खुदा समझे . 
मज़ा कहने का जब इक कहे और दूसरा समझे .
अगर हो सत्य वाणी , हर किसी के दिल को छूती है ,
पढ़े  मंतर जो अगर पंडित तो कोई चूतिया समझे .
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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