Saturday 23 May 2020

खेद है कि यह वेद है (61)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (61)

हे मित्र स्तोताओ ! 
तुन इंद्र के अतरिक्त किसी की स्तुति मत करो. 
तुम क्षीण मत बनो.
सोम रस निचुड़ जाने पर एकत्र होकर 
अभिलाषा पूर्वक इंद्र की स्तुति करते हुए बार बार स्तोत्र बोलो 

आठवाँ मंडल 
सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
वेद में सैकड़ों देव है जिनकी स्तुति वेद कराता है. यहाँ पर सिर्फ इंद्र देव के अतरिक्त किसी दूसरे की स्तुति करने से रोकता है ? 
भक्त गण कान बंद करके मन्त्र को सुनते हैं और मंत्रमुघ्त होते हैं. 
शूद्रों को वेद मन्त्र सुनना वर्जित है , कारण ? सुन लें तो उनके कानों में पिघला हुवा शीशा पिलाने का हुक्म है. यह इस लिए कि अनपढ़ शूद्र इन मंत्रो को सुन कर पंडितों की मूर्खता पर क़हक़हे लगा सकता है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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