Wednesday 27 May 2020

खेद है कि यह वेद है (64)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (64)

परम सेवनीय अग्नि की उत्तम कृपा मनुष्यों में उसी प्रकार परम पूजनीय है , 
जिस प्रकार दूध की कामना करने वाले देवों के लिए 
गाय का शुद्ध, तरल एवं गरम दूध 
अथवा गाय मांगने वाले मनुष्य को दुधारू गाय.
चतुर्थ मंडल 
सूक्त 6 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
वेद कर्मी सदा ही लोभ से ओत-प्रोत रहते हैं. 
इनमें मर्यादा की कोई गरिमा कहीं नज़र नहीं आती. 
इनके देव भी लोभी और 
परम देव भी लोभी , 
एक कटोरा दूध के लिए इन देवों की राल टपकती रहती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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