Wednesday 2 March 2011

सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ (1)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ (1)






"यह किताब अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाले की तरफ़ से भेजी गई है."सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ आयत (२)ज़बरदस्त यानी जब्र करने वाला, जो ज़बरदस्त हो वह अल्लाह कैसे हो सकता है? इंसानी हिकमतो से अल्लाह बे ख़बर है, वरना मुहम्मद को ऐसी सज़ा देता की पैगम्बरी छोड़ कर वह बकरियाँ चराने वापस चले जाते दाई हलीमा के पास. अल्लाह अगर है तो शफीक़ बाप की मानिंद होगा.

"जो लोग काफ़िर हैं, उनको जिस चीज़ से डराया जाता है, वह उससे बे रुखी करते हैं"सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ आयत (3)सबसे बड़ा काफ़िर मुसलमान होता है जो खुदा की मख्लूक़ को काफ़िर, मुशरिक, मुकिर और मुल्हिद समझता है. इरतेकाई मरहलों को पार करता हुवा कारवाँ पुर फरेब वहदानियत के चपेट में आकर मुसलमान बना तो दुन्या की तमाम बरकतें उस पर हराम हो गई.. जिन्होंने बे रुखी बरती वह सुर्खरू हैं.

"आप कहिए कि ये तो बताओ कि जिस चीज़ की तुम अल्लाह को छोड़ कर, इबादत करते हो, मुझको दिखलाओ कि उन्होंने कौन सी ज़मीन पैदा की है? या उसका आसमान के साथ कुछ साझा है. मेरे पास कोई किताब जो पहले की हो, या कोई मज़मून मनकूल लाओ अगर तुम सच्चे हो?" और जब हमारी खुली खुली आयतें उन लोगों के सामने पढ़ी जाती हैं तो ये मुनकिर लोग उसकी सच्ची बात की निस्बत, जब कि ये उन तक पहुँचती है, ये कहते हैं, ये सरीह जादू है."सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ आयत (४-७)ज़मीन ओ आसमान को पैदा करने वाली कोई भी ताक़त हो मगर मुहम्मदी अल्लाह जैसा अहमक लाल बुझक्कड़ नहीं हो सकता. मुहम्मद अपनी किताबे-वाहियात को दुन्या के बड़े बड़े ग्रंथों के आगे रख कर पशेमान तो न हुए मगर इसको रटने वाले आज मिटटी के मोल हो रहे है, पस्मान्दा कौम का नाम इनको दिया जा रहा है. इसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के साझीदार मुहम्मद पर आती है. 
"क्या ये लोग कहते हैं कि इसको इसने अपनी तरफ़ से बना लिया है? कह दीजिए कि इसको अगर मैंने अपनी तरफ़ से बना लिया है तो तुम लोग मुझे अल्लाह से बिलकुल नहीं बचा सकते. वह खूब जानता है कि तुम कुरआन में जो बातें बता रहे हो, मेरे और तुम्हारे दरमियान वह काफ़ी गवाह है, और वह मग्फ़िरत वाला और रहमत वाला है."सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ आयत (८)ये आयत मुहम्मद का मेराजे अय्यारी है.

"और आप कह दीजिए कि तुम मुझको ये तो बताओ कि ये कुरआन मिन जानिब अल्लाह हो और तुम इसके मुनकिर हो और बनी इस्राईल में से कोई गवाह इस जैसी किताब पर गवाही देकर ईमान ले आवे और तुम तकब्बुर में ही रहो. बेशक अल्लाह बे इन्साफ़ लोगों को हिदायत नहीं करता."सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ आयत (१०)दो एक लाखैरे यहूदी मुसलमान हो गए थे तो उनको को बुनियाद बना कर खुद को अल्लाह का रसूल साबित करना चाहते हैं. मुहम्मद की बकवास किताब को न तस्लीम करना लोगों की बे इंसाफी ठहरी? आज भी इन बातों को पढ़ कर उम्मी रसूल से सिर्फ़ नफ़रत बढ़ती है. उस वक़्त लोग पागल समझ कर टाल जाया करते थे.


"और हमने इंसान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है. इसकी माँ ने इसको बड़ी मशक्क़त के साथ पेट में रख्खा है, और बड़ी मशक्क़त के साथ इसको जना और इसका दूध छुड़ाना तीस महीने में है, यहाँ तक कि जब वह अपनी जवानी तक पहुँच जाता है और चालीस बरस को पहुँचता है तो कहता है, ऐ मेरे परवर दिगार मुझ को इस पर हमेशगी दीजे कि मैं आपकी इन नेमतों का शुक्र अदा किया करूँ जो आपने मुझको और मेरे माँ बाप को अता फ़रमाई."सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ आयत (१५)अल्लाह हमल से लेकर चालीस साल की उम्र तक इंसान से मुहम्मद के प्रोग्रामिंग के हिसाब से जिलाता है, साथ में उसकी हिदायतें भी उनके सबक में हैं. क्या आयतें किसी सनकी की बकवास नहीं लगती?
कलामे दीगराँ - - -"ज़्यादः रौशनी इंसान को अँधा बना देती है, अलफ़ाज़ बहरा बना देते हैं, लज्ज़तें ज़बान को बे ज़ायक़ा कर देती हैं और क़ीमती अश्या लालच में डाल देती हैं, इस लिए समझदार लोग ज़मीर की तरफ़ मुतावज्जो होते हैं, न कि नफ्स की तरफ़""ताओ"इसे कहते हैं कलाम


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. पिछल पोस्‍ट पर मेरी टिप्‍पणी के जवाब में आपकी प्रतिक्रिया पढ़ी जीम मोमिन जी, सादर धन्‍यवाद. मैं आपकी पीड़ा समझ सकता हूँ जैसा कि आपने लिखा है कि "इनमें जो समझ बूझ रखने वाले हैं, वह समाज पर काबिज़ मज़हबी गुंडों से खौफ ज़दा बुज़दिल हैं", और यह देखते हुए निस्‍संदेह आपका प्रयास साहसी है. मुझे प्रसन्‍नता है कि आपका लिखने का तरीका इतना सधा हुआ है कि कोई भी समझदार मुस्लिम इसमें व्‍यक्‍त गुस्‍से में छुपी हुई संवेदनशीलता तथा सहानुभूति को समझ सकता है, नासमझों का तो ईश्‍वर भी मालिक नहीं होता.

    आप ठाकुर हैं जानकर अच्छा लगा, हालांकि मैं जाति के बंधनों से सख्‍त ऐतराज करता हूँ क्‍योंकि पहले ही विभिन्‍न धर्मों के खांचों में बंटी दुनिया में यह और खांचे पैदा करती हैं. वैसे भी मैं मानता हूँ कि जाति प्रथा प्रारंभ की गई थी व्‍यक्ति के कर्म के आधार पर, और मेरी निजी सोच के हिसाब से शूद्र वे हैं जो भ्रष्‍टाचार, चोरी, डकैती, खून-खराबा, लूटमार, गरीबों का उत्‍पीड़न, अत्‍यधिक स्‍वार्थपरता तथा सबसे बढ़कर धार्मिक वैमनस्‍य या कट्टरता फैलाते हैं.

    मुझे आपकी एक बात से ऐतराज है कि आप स्‍वयं को "इन दोनों के बीच मुअललक़ (टंगा हुआ) फ़क़त इंसान बन कर रह गया" मानते हैं, जबकि मेरे हिसाब से आप इन दोनों धर्मरूपी बेडि़यों से मुक्‍त भाग्‍यशाली मनुष्‍य हैं. हिन्‍दू धर्म में सामान्‍यतया इस तरह की बेडि़यों से परे रहना ज्‍यादा मुश्किल नहीं होता जैसे कि अगर मैं जीवन भर न मंदिर में जाऊँ न पूजा-पाठ करूँ तो भी मैं अपने धर्म से बाहर नहीं हूँ, हालांकि इस्‍लाम में स्थितियां ठीक इसके विपरीत हैं और बस यहीं से गड़बड़ शुरू हो जाती है. श्रीराम के लिए तो उनके जीवन काल में भी एक धोबी ने जो हिन्‍दू ही था, कुछ ऐसा कह दिया था जिसकी सजा उनके साथ-साथ निर्दोष सीता जी को भी भोगनी पड़ी, लेकिन मुहम्‍मद साहब के गुजर जाने के 1400 वर्ष बाद भी यदि कोई मुस्लिम उनके द्वारा खुले तौर पर फैलाई गई नफरत तथा रक्‍त की प्‍यासी हिंसा का विरोध करता है तो उसे मौलवियों द्वारा जान से मारने की धमकियां दी जाती हैं, यही इस धर्म की सबसे बड़ी समस्‍या है, यही इस धर्म के मानने वालों के पिछड़ेपन, जाहिली, गरीबी और दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण है और मुझे लगता है कि कालांतर में यही इस दुनिया से इस्‍लाम के विनाश और मुहम्‍मद के नाम के पूरी तरह समाप्‍त हो जाने का भी कारण बनेगा.

    फिर भी मानवता के धर्म का पालन न करना अगर किसी धर्म की शिक्षा के अनुसार पाप नहीं है तो वह धर्म मेरी नजर में किसी उपयोग का नहीं है, और अफसोस है कि अभी तक किसी भी धर्म के ग्रंथ में मैंने यह बुनियादी संदेश नहीं पढ़ा कि इस धरती पर जन्‍म लेने का एकमात्र उद्देश्‍य हमारे जीवन भर इसे एक बेहतर स्‍थान बनाने का प्रयास करना होता है, कम से कम उस समय की तुलना में जब हमने यहां पर जन्‍म लिया था.

    आपकी कविता पढ़ी, यदि मात्र मुस्लिम राजपूत ही नहीं बल्कि भारतवर्ष में रहने वाले सभी मुस्लिम इसे पढ़ें क्‍योंकि उन सभी के पूर्वज हिन्‍दू धर्म से परिवर्तित होकर ही मुस्लिम बने थे, तो उनका कल्‍याण होगा.

    मैं आयु में आपसे काफी छोटा हूँ [आपने लिखा कि आप अपनी बेटियों का विवाह कर चुके हैं जबकि मैं अभी स्वयं अविवाहित हूँ :) ], अत: यदि मुझसे कोई त्रुटि हुई तो क्षमा कीजिएगा तथा उसके संबंध में मेरा ध्‍यान अवश्‍य आकृष्‍ट कीजिएगा.

    सादर,

    दिनेश प्रताप सिंह

    ReplyDelete
  2. ये क्या पागलपन है एक तो जाकिर नाइक जिसके दिमाग में भूसा भरा है और ये दूसरा असरफअली है जिनका भी कोई स्क्रू ढीला लगता है एक को संस्कृत ठीक से नहीं आती और एक को अरबी का मतलब करना नहीं आता दोनों ही अपने अपने नाम का प्रचार करने में लगे है में कोई इस्लाम या मुसलमानों का विरोधी नहीं हूँ लेकिन ऐसे लोगो का विरोधी हूँ जो की किसी भी धर्म ग्रन्थ का अपमान करके अपने आप को बड़ा चतुर और समजदार बताते है इन लोगो की आदत होती है ये किसी भी धर्म ग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया करते लेकिन ये धर्म ग्रन्थ इस लिए पढ़ते है की उसमे से कुछ ऐसा मसाले दार मतलब निकला जाये कि दुनिया अचंभित हो जाये ये सब दया के पात्र है और इनका साथ देनेवाले विकृत मनो विचार वाले कहलायेंगे (अगर जाकिर नाइक को संस्कृत और असरफ को अरबी उर्दू सीखनी है तो में सिखाने के लिया तैयार हु बिलकुल निःशुल्क ) चाणक्य के अनुसार मूर्खो से कोई भी सम्बन्ध रखने वाला अंत में संकट ही पाता है तो असरफ अली और जाकिर नाइक ये दोनों को एक दुसरे पर कीचड़ उछालना है तो उछाले लेकिन इनके पास खड़े रह कर अपने ऊपर भी किचल उचालेंगा ये तय है तो इनसे दूर ही रहा जाये यही बुध्धिमानी है असरफ अली मुस्लिम हो कर मुस्लिम के उपास्यो को निचा दिखा रहा है तो क्या ये दुसरे धमो की इज्जत करेगा ? इनसे पूछो की फिर किसकी उपासना की जाये? क्या तुम लोगो की ? इससे पूछना भी बेकार होगा की, तुम्हारे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के बारेमे क्या विचार है? या तो गरीब नवाज़ के बारे में क्या विचार है? विवेकानंद के बारेमे या तो सूफी संत निजामुदीन के बारेमे? कबीर, तुलसीदास, मीराबाई के बारे में ?क्यों की ये दोनों बकवास ही करने वाले है. मैं तो हिन्दू, जैन, बुद्ध, सिख, इसाई और सबको इनसे दूर ही रहने की सलाह देता हूँ . - श्री दासअवतार

    ReplyDelete