Saturday 5 March 2011

सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६
मुहम्मदी अल्लाह की छल कपट की आयतें पेश है - - -

"बेशक हमने आप को खुल्लम खुल्ला फ़तह दी, ताकि अल्लाह तअला आप की अगली पिछली सभी खताएँ मुआफ़ कर दे. और आप पर अपने एहसानात की तकमील कर दे. और आप को सीधे रस्ते पर ले चले. अल्लाह आपको ऐसा ग़लबा दे जिस में इज्ज़त ही इज्ज़त हो."सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६, आयत (१-३)गौर तलब है कि अल्लाह ने मुहम्मद को इस लिए खुल्लम खुल्ला फ़तह दी कि उनकी ख़ताएँ उसको मुआफ़ करना था. उसे अपने एहसानात की तकमील करने की जल्दी जो थी, मक्र की इन्तेहा है. मुहम्मद का माफ़ीउज़ज़मीर इस बात की गवाही देता है कि वह ख़तावार थे जिसे अनजाने में खुद वह तस्लीम करते हैं. मुहम्मद को तो मुहम्मदी अल्लाह ने मुआफ़ कर दिया मगर बन्दे मुहम्मद को कभी मुआफ़ नहीं करेंगे.
फ़तह के नशे में चूर मुहम्मद खुल्लम खुल्ला अल्लाह बन गए थे, इसबात की गवाह उनकी बहुत सी आयतें हैं.

"मगर वह अल्लाह ऐसा है जिसने मुसलमानों के दिलों में तहम्मुल पैदा किया है ताकि इनके पहले ईमान के साथ, इनका ईमान और ज़्यादः हो और आसमानों और ज़मीन का लश्कर सब अल्लाह का ही है और अल्लाह बड़ा जानने वाला, बड़ी हिकमत वाला है, ताकि अल्लाह मुसलमान मरदों और मुसलमान औरतों को ऐसी बहिश्त में दाख़िल करे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, जिनमें हमेशा को रहेंगे, और ताकि इनके गुनाह दर गुज़र कर दे. और ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है. और ताकि अल्लाह मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों को, और मुशरिक मर्दों और मुशरिक औरतों को अज़ाब दे जो अल्लाह के साथ बुरे बुरे गुमान रखते थे. उन पर बुरा वक़्त पड़ने वाला है और अल्लाह उन पर गज़ब नाक होगा."सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६, आयत (४-६)"ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है." इस जुमले पर गौर किया जाए कि वह अल्लाह जो अपनी कायनात में पल झपकते ही जो चाहे कर दे बस "कुन" कहने की देर है, उसके नज़दीक फ़तह मक्का बड़ी कामयाबी है. मुहम्मद अन्दर से खुद को अल्लाह बनाए हुए हैं.
इस फ़तह के बाद मुसलमानों का ईमान और पुख्ता हो गया कि वह सब्र वाले लुटेरे बन गए और लूट का माल मुहम्मद के हवाले कर दिया करते थे और जो कुछ वह उन्हें हाथ उठा कर दे दिया कयते उसी में वह सब्र कर लिया करते. मुहम्मद मुसलामानों को अल्लाह का लश्कर करार देते हैं और यक़ीन दिलाते है कि उनकी तरह ही अल्लाह के सिपाही आसमानों पर हैं.
जब तक मुसलमान अपने अल्लाह की इन बातों पर यक़ीन करते रहेंगे तालीम ए जदीद भी उनका भला नहीं कर सकती.



"जो लोग आपसे बैत कर रहे हैं, वह अल्लाह से बैत कर रहे हैं. अल्लाह का हाथ उनके हाथ पर है. फिर जो शख्स अहेद तोड़ेगा ,इको इसका वबाल इसी के सर होगा, जो पूरा करेगा उसको अल्लाह अनक़रीब बड़ा उज्र देगा.सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६, आयत (१०)आखिर बंदे मुहम्मद ने इशारा कर ही दिया कि वह ही पाक परवर दिगार है, मगर एक धमकी के साथ."अगली दस आयातों में जंगों से मिला माले ग़नीमत पर अल्लाह का हुक्म मुहम्मद पर नाज़िल होता रहता है. दर अस्ल इस जंग में देहाती नव मुस्लिमों ने शिरकत करने से आनाकानी की थी. उनको उम्मीद नहीं थी कि मुहम्मद मक्का पर फ़तेह पाएँगे, बिल खुसूस कुरैशियों पर. अगर फ़तेह हो भी गई तो वह अपने कबीले पर रिआयत बरतेंगे और उनको लूटेंगे नहीं. ग़रज़ उनको इस जंग से माले ग़नीमत का कोई खास फायदा मिलता नज़र नहीं आया, इस लिए जंग में शिरकत से वह बचते रहे. मगर मुहम्मद को मिली कामयाबी के बाद वह मुसलमानों का दामन थामने लगे कि अल्लाह से इनके हक में वह दुआ करें. अल्लाह दिलों का हाल जानने वाला? अपने रसूल से कहता है कि इनको टरकाओ, ये तो मुसलामानों के ख़िलाफ़ बद गुमानी रखते थे. अंधे, लंगड़े और बीमारों को छोड़ कर बाकी किसी को जंग से जान चुराने की इजाज़त नहीं थी. मुहम्मद ऐसे लोगों पर फ़ौरन लअन तअन शुरू कर देते, दोज़ख उसके सामने लाकर पेश कर देते."सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६, आयत (११-१५)"जो लोग पीछे रह गए थे वह अनक़रीब जब (तुम खैबर) की गनीमत लेने चलोगे, कहेगे कि हम को भी इजाज़त दो कि हम तुम्हारे साथ चलें. वह लोग यूँ चाहते हैं कि अल्लाह के हुक्म को बदल डालें. आप कह दीजिए कि हरगिज़ हमारे साथ नहीं चल सकते. अल्लाह तअला ने पहले से यूँ फ़रमा दिया था. इनके पीछे रहने वाले देहातियों से कह दीजिए कि तुम लोग लड़ने के लिए बुलाए जाओगे, जो सख्त लड़ने वाले होंगे,"सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६, आयत (१६)मुलाहिजा हो मुहम्मद कहते हैं "जब (तुम खैबर) की गनीमत लेने चलोगे" ये है मुहम्मद की जंगी फ़ितरत, लगता है जैसे खैबर में ग़नीमत की अशर्फियाँ इनके बाप दादे गाड कर आए हों. ये शख्स कोई इंसान भी नहीं जिसको ओलिमा हराम जादे मशहूर किए हुए हैं, मोह्सिने इंसानियत. जंगों से हजारो घर तबाह ओ बरबाद हो जाते हैं, उम्र भर की जमा पूँजी लुट जाती है, बस्तियों में खून की नदियाँ बहती हैं. मुहम्मद के लिए ये मशगला ठहरा,
क्या मुहम्मदी अल्लाह की कोई हक़ीक़त हो सकती है कि घुटे मुहम्मद की तरह वह साज़ बाज़ की बातें करता है.



"अल्लाह ने तुम से बहुत सी गनीमातों का वादा कर रखा है, जिनको तुम लोगे. सरे दस्त ये दे दी है. और लोगों के हाथ तुम से रोक दिए हैं, और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर दाल दे"सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६, आयत (२०)मुसलमानों! समझो कि तुम्हारा नबी दीन के लिए नहीं लड़ता लड़ाता था, बल्कि अवाम को लूटने के लिए अल्लाह के नाम पर लोगों को उकसाता था.
अल्लाह का पैगम्बर लड़ाकुओं को समझा रहा है कि जो कुछ मिल रहा है, रख लो. उनसे रसूल बना गासिब, अल्लाह का वादा दोहराता है, मुस्तकबिल में मालामाल हो जाओगे. सब्र और किनाअत को मक्कारी के आड़ में छिपाते हुए कहता है "और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर दाल दे"एक बड़ी आबादी को टेढ़ी और बोसीदा सड़क पर लाकर, उनके साथ खिलवाड़ कर गया.



"और अगर तुम से ये काफ़िर लड़ते तो ज़रूर पीठ दिखा कर भागते, फिर इनको कोई यार मिलता न मदद गार. अल्लाह ने कुफ्फार से यही दस्तूर कर रखा है जो पहले से चला आ रहा है, आप अल्लाह के दस्तूर में कोई रद्दो-बदल नहीं कर सकते."सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६, आयत (२३)जंग हदीबिया में मुहम्मद ने मक्का के जाने माने काफिरों को रिहा कर दिया जिसकी वजह से इन्हें मदनी मुसलमानों की मुज़ाहमत का सामना करना पड़ा, बस कि मुहम्मद पर अल्लाह की वह्यियों का दौरा पड़ा और आयात नाज़िल ही.
अल्लाह के दस्तूर के चलते मुस्लमान आज दुन्या में अपना काला मुँह भी दिखने के लायक़ नहीं रह गए, कुफ्फारों की पीठ देखते देखते.



*ऐ मज़लूम कौम! क्या ये क़ुरआनी आयतें तुमको नज़र नहीं आतीं जो मुहम्मद की छल-कपट को साफ़ साफ़ दर्शाती हैं. ?
*अपने पड़ोस पकिस्तान के अवाम की जो हालत हो रही है कि मुल्क छोड़ कर गए हुए लोग आठ आठ आँसू रो रहे हैं, इन्हीं आयतों की बेबरकती है उन पर, क्या इस सच्चाई को तुम समझ नहीं पा रहे हो?
पूरी दुन्या में मुसलामानों को शको शुबहा की नज़र से देखा जा रहा है, क्या सारी दुन्या गलत है और तुम ही सहीह हो?
*मुल्क और गैर मुमालिक में मुसलमानों की रोज़ी रोटी तंग हुई जा रही है, क्या तुम्हारे समझ में नहीं आता?
*तुम्हारे समझ में सब आता है कि तुम सबसे पहले इंसान हो, बाद में मुसलमान, हिन्दू और ईसाई वगैरा. तुमको हक शिनासी नहीं दे रहे हैं ये 'अपनी माओं के ख़सम', आलिमान दीन औए उनके मज़हबी गुंडे.
**वक़्त आ गया है कि अब आँखें खोलो, जागो और बहादर बनो. तुम्हारा कुछ भी नहीं बदलेगा, बस बदलेगा ईमान कि अल्लाह, उसका रसूल, उसकी किताब, मफरूज़ाराजे हश्र, वह मफरूज़ा जन्नत दोज़ख
ये सब फिततीन मुहम्मद की ज़ेहनी पैदावार है. इनकी भरपूर मुखालिफत ही आज का ईमान होगा.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. सदा की तरह एक बेहद सधी हुई, पैनी तथा सीधे लक्ष्‍य को भेदती हुई पोस्‍ट!! जीम मोमिन जी, पूरी सच्‍चाई से मेरा दिल कहता है कि आज भले ही मुस्लिम अधिक संख्‍या में आपकी बातों को ध्‍यान से न सुन रहे हों, लेकिन एक दिन आएगा जब एक से दो, दो से चार और चार से आठ होते हुए मुस्लिम आपकी दिखाई हुई रोशनी में इस संसार को एक नई दृष्टि से देखेंगे और उस दिन एक जीम मोमिन नहीं बल्कि सैकड़ों हजारों जीम मोमिन पिछले 1400 सालों से लगातार चल रहे मुहम्‍मदी इस्‍लाम नामक इस भयानक गोरखधंधे के ताबूत में आखिरी कीलें ठोंकने की ओर बढ़ेंगे... आप यूँ ही लगे रहिए, आखिर जब लगे रहने पर मुहम्‍मद साहब की इन बेसिर पैर की बातों ने भी अपना असर दिखाया तो सच्‍ची लगन रखने पर आपकी सच्‍ची और आंखें खोल देने वाली बातें एक न एक दिन तो अपना रंग दिखाएंगी ही, और वह ईश्‍वर नाम की सत्ता अगर वह वास्‍तव में है तथा हम सब के परम पिता स्‍वरूप ही है, तो मेरी उससे प्रार्थना है कि आपको आपके लक्ष्‍य प्राप्ति में सफलता दे...

    दिनेश प्रताप सिंह

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  2. दिनेश साहब!
    हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया.
    मेरा लक्ष है सदाक़त, अर्थात सदभाव. मैं प्रकृति के दर्पण में सत्य को हर समय देख लेता हूँ.
    मुझ तक अल्लाह यार है मेरा, मेरे संग संग रहता है,
    तुम तक अल्लाह एक पहेली, बूझे और बुझाए हो..
    जिस वक्त भारत के हिदू और मुसलमान इस चेतना को परखने लगेंगे, भारत दुन्या का सर्व श्रेष्ट हिस्सा बन जायगा.
    मैं मोमिन हूँ जिसका धर्म है ईमान. बे ईमानों से मेरा कोई सम्झुता नहीं.

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