Tuesday, 1 March 2011

सूरह जासिया -४५-परा - २५ (2)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह जासिया -४५-परा - २५ (2)


 
क़ुदरत ने ये भूगोल रुपी इमारत को वजूद में लाने का जब इरादा किया तो सब से पहले इसकी बुनियाद "सच और ख़ैर" की कंक्रीट से भरी. फिर इसे अधूरा छोड़ कर आगे बढती हुई मुस्कुराई कि मुकम्मल इसको हमारी रख्खी हुई बुनियाद करेगी. वह आगे बढ़ गई कि उसको कायनात में अभी बहुत से भूगोल बनाने हैं. उसकी कायनात इतनी बड़ी है कि कोई बशर अगर लाखों रौशनी साल (light years ) की उम्र भी पाए तब भी उसकी कायनात के फासले को तय नहीं कर सकता, तय कर पाना तो दूर की बात है, अपनी उम्र को फासले के तसव्वुर में सर्फ़ करदे तो भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाएगा .
कुदरत तो आगे बढ़ गई इन दो वारिसों "सच और ख़ैर" के हवाले करके इस भूगोल को कि यही इसे बरक़रार रखेंगे जब तक ये चाहें. .भूगोल की तरह ही क़ुदरत ने हर चीज़ को गोल मटोल पैदा कीया कि ख़ैर के साथ पैदा होने वाली सादाक़त ही इसको जो रंग देना चाहे दे. क़ुदरत ने पेड़ को गोल मटोल बनाया कि इंसान की "सच और ख़ैर" की तामीरी अक्ल इसे फर्नीचर बना लेगी, उसने पेड़ों में बीजों की जगह फर्नीचर नहीं लटकाए. ये ख़ैर का जूनून है कि वह क़ुदरत की उपज को इंसानों के लिए उसकी ज़रुरत के तहत लकड़ी की शक्ल बदले.
तमाम ईजादें ख़ैर(परोकार) का जज्बा ही हैं कि आज इंसानी जिंदगी कायनात तक पहुँच गई है, ये जज़्बा ही एक दिन इंसानों को ही नहीं बल्कि हैवानों को भी उनके हुकूक दिलाएगा.
जो सत्य नहीं वह मिथ्य है. दुन्या के हर तथा कथित धर्म अपने कर्म कांड और आडम्बर के साथ मिथ्य है, इससे मुक्ति पाने के बाद ही क़ुदरत का धर्म अपने शिखर पर आ जाएगा और ज़मीन पाक हो जाएगी.

अब देखिए बेईमान के इरशादात - - -

"आप ईमान वालों से फ़रमा दीजिए कि उन लोगों से दर गुज़र करें जो खुदा के मुआमलात का यक़ीन नहीं रखते ताकि अल्लाह तअला एक कौम को इनके आमल का सिला दे.सूरह जासिया -४५-पारा - २५ आयत (१५)मजहबे इस्लाम में इतने पोलखाते हैं कि दलायल गढ़ने वाला अल्लाह पल भर भी किसी बहस मुबाहिसे वाली महफ़िल में टिक नहीं सकता, इस लिए इसका हल पेश कर रहा है कि मुसलमान बुद्धि जीवयों का शिकार न बने और उनकी संगत से बहार आ जाएं. उम्मी मुहम्मद ने मुसलामानों की किस क़दर घेरा बंदी की है, इसकी गवाही पूरे कुरान में देखी जा सकरी है. मुल्ला जी दानिश वरों की महफ़िल से उठ कर खिसक लेते हैं.
ये वाही ज़माना है जब मुहम्मद दीवाने पागल की तरह हर जगह अपनी आयतें गाते फिरते थे और अवामी रद्दे अमल को खुद बयान करते है. क्या आज भी ऐसे शख्स के साथ यही सुलूक नहीं किया जायगा. मगर माज़ी की इस कहानी को जानते हुए आज मुसलमान उसकी बातों पर यक़ीन करने लगे.


बुद्धि हाथों पे सरसों उगाती रही,
बुद्धू कहते रहे कि चमत्कार है.

मगर वहाँ तो कोई बुद्धि ही नहीं है, बस बुद्दू ही बुद्धू हैं.


"मुनकिर लोग कहते हैं कि बजुज़ हमारी इस दुनयावी हयात के और कोई हयात नहीं है. हम मरते हैं न जीते हैं और हमको सिर्फ ज़माने की गर्दिश से मौत आ जाती है, और उन लोगों के पास कोई दलील नहीं है, महज़ अटकल हाँक रहे है. और जिस वक़्त इन लोगों के सामने हमारी खुली खुली आयतें पढ़ी जाती हैं तो इनका बजुज़ इसके कोई जवाब नहीं होता कि हमारे बाप दादों को ज़िदा करके लाओ."
सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (२५-४४)
देखिए कि उस ज़माने में भी ऐसे साहिबे फ़िक्र थे जिन्होंने ज़िन्दगी को समझने की कोशिश की थी. उनकी फ़िक्र की गहराई देखें" बजुज़ हमारी इस दुनयावी हयात के और कोई हयात नहीं है. हम मरते हैं न जीते हैं और हमको सिर्फ ज़माने की गर्दिश से मौत आ जाती है" उनको जवाब में मुहम्मद की "खुली खुली आयतें" हैं जिन की उरयानियत मुसलामानों को मुँह चिढ़ाती हैं.

"और हमने बनी इस्राईल को किताब और हिकमत और नबूवत दी थी और हमने उनको नफ्से-नफ़ीस चीजें खाने को दी थीं और हमने उनको दुन्या जहान वालों पर फ़ौक़ियत दी थी और हमने उनको दीन के बारे में खुली खुली दलीलें दीं, सो उन्हों ने इल्म के आने के बाद बाहम एख्तेलाफ़ किया बवजेह आपस की ज़िद्दा ज़िद्दी. आप का रब इनके आपस में बैर रखने का क़यामत के रोज़ इन उमूर में फ़ैसला करेगा जिसके लिए इन में बाहम इख्तेलाफ़ किया करते थे, फिर हमने आप को दीन का एक तरीक़ा दिया, सो आप तरीके पर चलते जाइए, और इन जाहिलों की ख्वाहिश पर मत चलिए."सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (१६-१८)मुहम्मद ने जितना बनी इस्राईल के बारे में जाना है, बयान कर दिया. जबकि इनकी बुनयादी अक़ीदे को जानते भी नहीं. इस्रईलयों के खुदा ने इन्हें आशीर्वाद और वचन दिया हुआ है क़ि तुम ही पूरी दुन्या के हाकिम रहोगे और दुन्या की तमाम कौमें तुम्हारे तुफ़ैल में ज़िन्दगी जिएँगी. उन्हीं के वंशज आर्यन हिदुस्तान में ब्रहमिन यानि इब्राहीमी अपने ब्राहम्मा यानी अब्राहम का वरदान लिए हिंदुस्तान में आज भी सुपरमैन बने हुए है. आज भी पूरी दुन्या में यही यहूदी सबसे ज़्यादः दौलत मंद और साइंस दान मौजूद हैं, मगर ये भी क़रारा सच है क़ि दुश्मने इंसानियत होने की वजेह से अपनी ही जाति की बड़ी कुर्बानी दी है. इनका बड़ा गुनाह ये है क़ि अमरीका के मालिक रेड इंडियन का इन्हों ने सफ़ा-ए-हस्ती से मिटा दिया. भारत के असली बाशिंदों पाँच हज़ार साल से ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी जीने को मजबूर किए हुए हैं.
ये दुन्या अभी भी रचना काल में है और शायद हमेशा रचना काल में रहेगी. इसकी रचना में बाधा बन कर कभी मूसा पैदा होते हैं, कभी ब्राह्मन तो कभी मुहम्मद.
जब तक धरती पर धर्म के धंधे बाज़ ज़िंदा हैं, इंसानियत कभी फल फूल नहीं सकती.

कलामे दीगराँ - - -"जो जवानी में ऐसा नरम नहीं जैसा बच्चों को होना है, जो बुढ़ापे में ऐसा काम नहीं कर पाया जो अगली नस्लों के लिए मुफीद हो, जो बुढापे तक सिर्फ जीता ही रहा, ऐसा इंसान महामारी है""कानफियूशस Kung Fu Tzu"(चीनी धर्म गुरु)इसे कहते हैं कलाम पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. एक बार फिर से एक बेहतरीन पोस्‍ट जीम मोमिन जी, आपका लिखा हुआ एक-एक शब्‍द आने वाले समय में सराहा जाएगा क्‍योंकि भारतीय मुस्लिमों को जन्‍मजात अँधेरे से निकालने के लिए हमारी अपनी राष्‍ट्रभाषा में किया जा रहा यह इकलौता और अनूठा प्रयास है. इसे आप सदा जारी रखने की कृपा करें.

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