मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह ज़ारियात ५१ -पारा २६
"फिर उन बादलों की क़सम जो बोझ को उठाते हैं."
"फिर उन कश्तियों की क़सम जो नरमी से चलती हैं."
"फिर उन फरिश्तों की क़सम जो चीज़ें तक़सीम करते हैं."
"क़सम है आसमान की जिसमें रास्ते हैं कि तुम से जो वादा किया गया है,
वह सच है."
"तुम क़यामत के बारे में मुख्तलिफ गुफ्तुगू में हो, इससे वही फिरता है जो फिरने वाला है. ग़ारत हो जाएँगे बे सनद बातें करने वाले."
"पूछते हैं कि रोज़े-जज़ा का दिन कब है?"
"जिस रोज़ तुम आग पर रखे जाओगे फिर कहा जाएगा, अपनी इस सज़ा का मज़ा चक्खो जिसकी तुम जल्दी मचा रहे थे."सूरह ज़ारियात ५१ -पारा २६- आयत(१-१४)क़यामत मुहम्मद का सबसे बड़ा हथियार रहा है. वह इस शोब्दे को लेकर काफी क़ला बाज़ियाँ खाते हैं. लोगो ने इनकी चिढ बना ली थी, जब सामने पड़ते लोग तफ़रीह के मूड में आ जाते और उनसे पूछ बैठते कि
अल्लाह के रसूल क़यामत कब आएगी?
और उनका बडबडाना शुरू हो जाता.
हैरत है कि आज ये बडबड तिलावत और इबादत बन गई है.
देखा गया है, झूठा और बेवक़अत इंसान ही कसमें खाता है जब अपने झूट में खुद उसकी निगाह जाती है तो कसमें खाकर खुद से मुँह छुपता है.
देखा गया है, झूठा और बेवक़अत इंसान ही कसमें खाता है जब अपने झूट में खुद उसकी निगाह जाती है तो कसमें खाकर खुद से मुँह छुपता है.
अब भला ग़ुबार उठाने वाली हवाओं की क़सम क्या वज़न रखती है?
या बदल कौन से मुक़द्दस हैं?
ये नरमी से चलने वाली कशतियां क्या होती हैं?
फ़रिश्ते चीज़ें कब बाँटते है?
आसमान में रास्ता, गली और सड़क कब और कहाँ है?
कठमुल्ले अल्लाह की बात को लाल बुझक्कड़ी दिमाग़ से साबित कर सकते हैं
"कि आज जो जहाज़ों के रास्ते फ़िज़ा में बनाए गए हैं, इसकी भविष्य बाणी हमारे कुरआन में पहले से ही है"
"कि आज जो जहाज़ों के रास्ते फ़िज़ा में बनाए गए हैं, इसकी भविष्य बाणी हमारे कुरआन में पहले से ही है"
ऐसे बहुत से अहमक़ाना मिसालें देखने और सुनने में आती हैं. ऐसे बहुत सी नजीरें हैं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
No comments:
Post a Comment