Friday 4 March 2011

सूरह मुहम्मद -४७- पारा -२६

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह मुहम्मद -४७- पारा -२६


इस्लामी तरीक़े चाहे वह अहम् हों चाहे ग़ैर अहम्, इंसानों के लिए गैर ज़रूरी तसल्लुत बन गए हैं. उनको क़ायम रखना आज कितना मज़ाक बन गया है कि हर जगह उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है. उन्हीं में एक एक थोपन है पाकी, यानी शुद्ध शरीर. कपडे या जिस्म पर गन्दगी की एक छींट भी पड़ जाए तो नापाकी आ जाती है . मुसलमान हर जगह पेशाब करने से पहले पानी या खुश्क मिटटी का टुकड़ा ढूँढा करता है कि वह पेशाब करने के बाद इस्तेंजा (लिंग शोधन) करे.आज के युग में ये बात कहीं कहीं कितनी अटपटी लगती है, खास कर नए समाज की खास जगहों पर.
कपडे साफ़ी हो जाएँ मगर इसमें पाकी बनी रहे.
इसी तरह माँ बाप बच्चों को सिखलाते है सलाम करना, उसके बाद मुल्ला जी समझाते हैं कि दिन में जितनी बार भी मिलो सलाम करो, शिद्दत ये कि घर में माँ बाप से हर हर मुलाक़ात पर सलाम करो. ये जहाँ लागू हो जाता है, वहां सलाम एक मज़ाक़ बन जाता है. इसी पर कहा गया है
"लोंडी ने सीखा सलाम, सुब्ह देखा न शाम."


मुहम्मदी अल्लाह के दाँव पेंच इस सूरह में मुलाहिज़ा हो - - -

"जो लोग काफ़िर हुए और अल्लाह के रस्ते से रोका, अल्लाह ने इनके अमल को क़ालअदम (निष्क्रीय) कर दिए. और जो ईमान लाए, जो मुहम्मद पर नाज़िल किया गया है, अल्लाह तअला इनके गुनाह इनके ऊपर से उतार देगा और इनकी हालत दुरुस्त रक्खेगा."सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१-२)मुहम्मद की पयंबरी भोले भाले इंसानों को ब्लेक मेल कर रही है. इस बात को मानने के लिए मजबूर कर रही है कि जो गैर फ़ितरी है. क़ुदरत का क़ानून है कि नेकी और बदी का सिला अमल के हिसाब से तय है, ये इसके उल्टा बतला रही है कि अल्लाह आपकी नेकियों को आपके खाते से तल्फ़ कर देगा. कैसी बईमान मुहम्मदी अल्लाह की खुदाई है? किस कद्र ये पयंबरी झूट बोलने पर आमादः है.

"सो तुम्हारा जब कुफ़फ़ार से मुकाबला हो जाए तो उनकी गर्दनें मार दो, यहाँ तक कि जब तुम इनकी ख़ूब खूँरेजी कर चुको तो ख़ूब मज़बूत बाँध लो, फिर इसके बाद या तो बिला माव्ज़ा छोड़ दो या माव्ज़ा लेकर, जब तक कि लड़ने वाले अपना हथियार न रख दें, ये हुक्म बजा लाना. अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम लेलेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे. जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाते हैं, अल्लाह इनके आमाल हरगिज़ ज़ाया नहीं करेगा."सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (३-४)
ऐसे अल्लाह और ऐसी पैगम्बरी पर आज इक्कीसवीं सदी में लअनत भेजिए. जो अज़हान इक्कीसवीं सदी तक नहीं पहुँचे वह इस नाजायज़ अल्लह की नाजायज़ औलादें तालिबानी हैं. ऐसे जुनूनियों के साथ ऐसा सुलूक जायज़ होगा कि नाजायज़ अल्लाह का क़ानून उसकी औलादों पर नाफ़िज़ हो. इस्लामी अल्लाह के अलावा कोई खुदा ऐसा कह सकता है क्या " अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम ले लेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे." मुसलामानों! ऐसे अल्लाह और ऐसे रसूल की राहें जिस क़द्र जल्द हो सके छोड़ दो .

"ऐ ईमान वालो! अगर तुम अल्लाह की मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दम जमा देगा. और जो लोग काफ़िर हैं उनके लिए तबाही है और इनके आमल को अल्लाह तअला ज़ाया कर देगा, ये इस सबब से हुवा कि उन्हों ने अल्लाह के उतारे हुए हुक्म को ना पसंद किया,सो अल्लाह ने उनके आमाल को अकारत किया."सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (७-९)दुन्या का हर हुक्मराँ जंग में सब जायज़ समझ कर ही हुकूमत कर पाता है. अशोक महान ने अपनी हुक्मरानी में एक लाख इंसानी जानों की कुर्बानी दी थी, जंग को जीत जाने के बाद उसके एहसास ए हुक्मरानी ने शिकस्त मान ली कि क्या राजपाट की बुनन्यादों में हिंसा होती है? उसे ऐसा झटका लगा कि वह बैरागी हो गया, बौध धर्म को अपना लिया. वह कातिल हुक्मरान से महात्मा बन गया और इस्लामी महात्मा को देखिए कि क़त्ल ओ खून का पैगाम दे रहे हैं, वह भी अल्लाह के पैगम्बर बन कर.

"बेशक अल्लाह तअला उन लोगों को जो ईमान लाए और उनहोंने अच्छे काम किए, ऐसे बाग़ों में दाखिल कर देगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी. और जो लोग काफ़िर हैं वह ऐश कर रहे हैं और इस तरह खाते हैं जैसे चौपाए खाते हैं और जहन्नम जिनका ठिकाना है."सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१२)"और इस तरह खाते हैं जैसे चौपाए खाते हैं "
इंसान और चौपाए के खाने में भी मुहम्मद को फर्क नज़र आता है? क्या मुसलमानों के खाने का तरीक़ा इस्लाम लाने के बाद कुछ बदल जाता है? भूका प्यासा हर इंसान चौपाया बन जाता है ख्वाह हिदू हो या मुसलमान. नक़ली पैगम्बर बे सर पैर की बात ही पूरे कुरआन में बकते हैं.


"जिस जन्नत का मुत्ताकियों से वादा किया जाता है, उसकी कैफ़ियत ये है कि इसमें बहुत सी नहरें तो ऐसे पानी की हैं कि जिसमें ज़रा भी तगय्युर नहीं होगा और बहुत सी नहरें दूध की हैं जिनका ज़ाएकः ज़रा भी बदला हुवा नहीं होगा और बहुत सी नहरें शराब की हैं जो पीने वालों को बहुत ही लज़ीज़ मालूम होंगी और बहुत सी नहरे शहद की जो बिलकुल साफ़ होगा और इनके लिए वहाँ बहुत से फल होंगे."सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१५)
मुसलामानों! तुमको तालीम ए नव दावत दे रही है कि एयर कंडीशन फ्लेट्स में रहो, बजाए बाग़ में रहने के. क़ुरआनी तालीम तुम्हें दिक्क़त तलब सम्त में ले जा रही है.
अगर शौकीन हो तो शराब भी अपनी मेहनत की कमाई से पी पाओगे जो लज़ीज़ तो बहर हाल नहीं होगी मगर उसका सुरूर बा असर होगा.
मुहम्मद जन्नत में मिलने वाले दूध की सिफत बतलाते हैं कि "जिनका ज़ाएकः ज़रा भी बदला हुवा नहीं होगा " तो दुन्या और जन्नत के दूध का क्या फर्क हुवा ?
पानी, दूध शराब और शहद की नहरें अगर बहती होंगी तो बे लुत्फ होंगी कि जिसमें आप नहाना भी पसँद नहीं करेंगे, पीना तो दर किनार .


"बअज़े आदमी ऐसे हैं जो आप की तरफ़ कान लगाते हैं, यहाँ तक कि जब वह लोग आपके पास से बाहर जाते हैं तो दूसरे अहले-इल्म से कहते हैं कि हज़रत ने अभी क्या बात फ़रमाया ? और जो ईमान वाले हैं वह कहते हैं कि कोई सूरत क्यूँ न नाज़िल हुई ? सो जिस वक़्त कोई साफ़ साफ़ सूरह नाज़िल होती है तो और इसमें जेहाद का भी ज़िक्र आता है, तो जिन लोगों के दिलों में बीमारी होती है तो आप उन लोगों को देखते हैं कि वह आप को किस तरह देखते हैं, कि जिस पर मौत की बेहोशी तारी हो, सो अनक़रीब इनकी कमबखती आने वाली है. इनकी इताअत और बात चीत मालूम है, पस जब सारा काम तैयार हो जाता है तो अगर ये लोग अल्लाह के सच्चे रहते तो उनके लिए बहुत ही बेहतर होता, सो अगर तुम कनारा कश रहो तो . . . . क्या तुमको एहतेमाल भी है कि तुम दुन्या में फ़साद मचा दो.सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (२०-२२)
मुहम्मद अपनी दास्तान उस वक़्त की बतला रहे हैं जब उनकी पैगम्बरी की लचर बातों से लोग बेज़ार हुवा करते थे वह अपनी बकवास किया करते थे और लोग कान भी नहीं धरते थे. पुर अमन माहौल में जब वह जंग की आयतें अपने अल्लाह से उतरवाते तो लोग बेज़ार हो जाते. लोग रसूल को नफ़रत और हिक़ारत की नज़र से दखते कि जिसे वह खुद बयान कर रहे है. खुद दुन्या में फ़साद बरपा करके कहते हैं " क्या तुमको एहतेमाल भी है कि तुम दुन्या में फ़साद मचा दो"

"ये लोग हैं जिनको अल्लाह तअला ने अपनी रहमत से दूर कर दिया, फिर इनको बहरा कर दिया और फिर इनकी आँखों को अँधा कर दिया तो क्या ये लोग कुरआन में गौर नहीं करते या दिलों में कुफल लग रहे हैं. जो लोग पुश्त फेर कर हट गए बाद इसके कि सीधा रास्ता इनको मालूम हो गया , शैतान ने इनको चक़मा दे दिया और इनको दूर दूर की सुझाई है."सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (२३-२५)
जब अल्लाह तअला ने उन लोगों को कानों से बहरा और आँखों से अँधा कर दिया और दिलों में क़ुफ्ल डाल दिया तो ये कुरआन की गुमराहियों को कैसे समझ सकते हैं? वैसे मुक़दमा तो उस अल्लाह पर कायम होना चाहिए कि जो अपने मातहतों को अँधा और बहरा करता है और दिलों पर क़ुफ्ल जड़ देता है मगर मुहम्मदी अल्लाह ठहरा जो गलत काम करने का आदी है. शैतान मुहम्मद बनी ए नव इंसान को चकमा दे गया कि कौम पुश्त दर पुश्त गारों में गर्क़ है.

"और अगर तुम ईमान और तक्वा अख्तियार करो तो अल्लाह तुमको तुम्हारा उज्र अता करेगा और तुम से तुम्हारे माल तलब न करेगा. अगर तुम से तुम्हारे मॉल तलब करे, फिर इन्तहा दर्जे तक तुम से तलब करता रहे तो तुम बुख्ल करने लगो. और अल्लाह तअला तुम्हारी नागवारी ज़ाहिर करदेगा, हाँ तुम लोग ऐसे हो कि तुम्हें अल्लाह की राह में खर्च करने के लिए बुलाया जा रहा है. सो बअज़े तुम में ऐसे हैं जो बुख्ल करते हैं. जो बुख्ल करता है सो वह खुद अपने से बुखल करता है और अल्लाह तो किसी का मोहताज नहीं और तुम सब मोहताज हो. और अगर तुम रू-ग़रदानी करोगे तो अल्लाह तअला तुम्हारी जगह कोई दूसरी कौम पैदा कर देगा."सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (३७-३८)मुहम्मद अल्लाह तअला बने हुए है अपने बन्दों को समझा रहे हैं किअगर मैं हद से ज़्यादः तलब करूँ तो तुम बुखालात करो. मगर अगले पल ही अल्लाह की राह बतलाते हैं की जिस पर मुसलामानों को चलना है.
और बुखल करने वालों को तअने देते हैं.
मुहम्मद अल्लाह की राह में रक़म तलब करते हैं ताकि जेहाद के लिए फण्ड इकठ्ठा किया जा सके.

जंग मुहम्मद की ज़ेहनी गिज़ा थी जिसमें लूट पाट करके इस्लाम को बढाया है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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