मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ (2)
क़ुदरत ने जन्नत बनाया है, न दोज़ख. यह कल्पनाएँ हजरते इंसान के जेहनी फितूर हैं अपनी बुनियाद में रख्खे सच और खैर को जब ये धरती पचाने लगेगी तो ये दुन्या खुश गवार हो जाएगी. इस पर इसके प्राणी बे खौफ होकर लम्बी उम्र जीना चाहेंगे. जब सत्य ही सत्य होगा और झूट का नाम निशान न बचेगा और जब ख़ैर ही ख़ैर होगा, बैर का नामों निशान न होगा, तब ये दुनिया असली जन्नत बन जायगी.हमारी धरती पर फैली हुई इंसानियत फल फूल रही है, हमारे पैगम्बरान साइंसटिस्ट नित नई नई खोजों में लगे हुवे हैं, हमारी ज़िन्दगी को आसान दर आसान किए जा रहे हैं, सत्य दर सत्य किए जा रहे हैं ये उनके जज़्बा ए ख़ैर ही तो है. एक दिन वह भी आएगा कि एक एक इंसान के पास रहने के लिए एह एक सय्यारे होंगे और इंसानी उन में तवील तर और मुंह मांगी होगी, अब मज़हबी रुकावटें बहुत दिन तक इस भूगोल पर कायम नहीं रह पाएँगी.
देखिए अल्लाह की आख़िरी झूटी किताब और अल्लाह के आख़िरी झूठे दूत आखिरुज्ज़मान, अपने निज़ाम-आखीर के साथ कौन कौन से आख़िरी झूट गढ़ रहे हैं
"हम ने तुम्हारे आस पास की और बस्तियाँ भी ग़ारत की हैं और हम ने बार बार अपनी निशानियाँ बतला दी थीं, ताकि वह बअज़ आएँ, सो जिन जिन चीजों को उन्हों ने अल्लाह का तक़र्रुब हासिल करने के लिए अपना माबूद बना रखा है, उन्हों ने इनकी मदद क्यूँ न कीं, बल्कि जब वह उनसे गायब हो गए और ये सब उनकी तराशी और गढ़ी हुई बात है."सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६ आयत (२७-२८)ऐ मुसलमानों! क्या तुम इतने कुन्द ज़ेहन हो कि किसी मक्कार और चल बाज़ की बातों में आ जाओ? क्या तुम्हारा रुस्वाए ज़माना अल्लह इस क़दर ज़ालिम होगा कि बस्तियों को ग़ारत कर दे? उसकी नक्ल में अली मौला ने एक गाँव के लोगों को जिंदा जला के मार डाला. अगर तुम कट्टर मुसलमान अली मौला की तरह हो तो क्यूं न तुम को और तुम्हारे परिवार को जिंदा जला दिया जाए ? अभी सवेरा है अपने ज़मीर की आवाज़ सुनो. तुम्हारे लिए एक ही हल है कि तरके-इस्लाम करके मोमिन होने का एलान करदो.
मुहम्मद बार बार कहते हैं कि उनका कलाम जादू का असर रखता है, ओलिमा कहते हैं नौज़ बिल्लाह जादू तो झूटा होता है अल्लाह के कहने माँ मतलब ये हा कि - - .
देखिए कि गंवार अपने अल्लाह को कभी न थकने वाला मख्लूक़ बतलाता है, जैसे खुद था कि जिसे झूट गढ़ने से कभी कोई परहेज़ न था.
अम्र ए वाक़ई ? पढ़े लिखों की नक़ल जो करता था.
शर्री रसूल के बाप को किसी ने नहीं मारा कि वह उससे इंतेक़ाम ले न दादा को. वह तो इस बात का बदला लेगा कि उसकी रिसालत को लोग नहीं मान रहे हैं जो कि किसी बच्चे के गले भी नहीं उतरती.
लाखों लोग उसके इंतेक़ाम के शिकार हो गए.
क़ुरआनी अल्लाह के मुकाबिले में कोई भी कुफ़्र का देव और शिर्क के बुत बेहतर हैं कि अय्याराना कलाम तो नहीं बकते, डराते धमकाते तो नहीं, गरयाते भी नहीं, पूजो तो सकित न पूजो तो सकित, जिस तरह से चाहो इनकी पूजा कर सकते हो, सुकून मिलेगा, बिना किसी डर के. इनकी न कोई सियासत है, न किसी से बैर और बुग्ज़. इनके मानने वाले किसी दूसरे तबके, खित्ते और मुखालिफ पर ज़ोर ओ ज़ुल्म करके अपने माबूद को नहीं मनवाते. इस्लाम हर एक पर मुसल्लत होना अपना पैदायशी हक समझता है. जब तक इस्लाम अपने तालिबानी शक्ल में दुन्या पर क़ायम रहेगा, जवाब में अफ़गानिस्तान,इराक़ और चेचेनिया का हश्र इसका नसीब बना रहेगा.भारत में कट्टर हिन्दू तंजीमे इस्लाम की ही देन हैं. गुजरात जैसे फ़साद का भयानक अंजाम क़ुरआनी आयातों का ही जवाब हैं. ये बात कहने में कोई मुजायका नहीं कि जो मुकम्मल मुसलमान होता है वह किसी जम्हूरियत में रहने का मुसतहक नहीं होता. मुसलामानों के लिए कोई भी रास्ता बाकी नहीं बचा है, सिवाय इसके कि तरके इस्लाम करके मजहबे इंसानियत क़ुबूल कर लें. कम अज़ कम हिदुस्तान में इनका ये अमल फाले नेक साबित होगा राद्दे अमल में कट्टर हिदू ज़हनियत वाले हिदू भी अपने आप को खंगालने पर आमादा हो जाएँगे. हो सकता है वह भी नए इंसानी समाज की पैरवी में आ जाएँ. तब बाबरी मस्जिद और राम मंदिर, दो बच्चों के बीच कटे हुए पतंग के फटे हुए कागज़ को लूटने की तरह माज़ी की कहानी बन जाए. तब दोनों बच्चे कटी फटी पतंग को और भी मस्ख करके ज़मीन पर फेंक कर क़हक़हा लगाएँगे. इंसान के दिलों में ये काली बलूगत को गायब करने की ज़रुरत है, और मासूम ज़हनों में लौट जाने की.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
अरे वाह, सलाम आपको... काश कि ये बात मुसलमानों की समझ में आ जाये... काश...
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