Wednesday 30 March 2011

सूरह सफ़ ६१- पारा -२८

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी ''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है, हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं, और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह सफ़ ६१- पारा -२८

मुहम्मद उम्मी थे अर्थात निक्षर. तबीयतन शायर थे, मगर खुद को इस मैदान में छुपाते रहते, मंसूबा था,

"जो शाइरी करूंगा वह अल्लाह का कलाम क़ुरआन होगा."

इस बात की गवाही में क़ुरआन में मिलनें वाली तथा कथित काफिरों के मुहम्मद पर किए गए व्यंग

'' शायर है ना'' है.

शाइरी में होनें वाली कमियों को, चाहे वह विचारों की हों, चाहे व्याकरण की, मुहम्मद अल्लाह के सर थोपते हैं.

अर्थ हीन और विरोद्दाभाशी मुहम्मद की कही गई बातें

''मुश्तबाहुल मुराद '' आयतें बन जाती हैं जिसका मतलब अल्लाह बेहतर जानता है.

(सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयत 6+7)

यह तो रहा क़ुरआन के लिए गारे हेरा में बैठ कर मुहम्मद का सोंचा गया पहला पद्य आधारित मिशन ''क़ुरआन''.

दूसरा मिशन मुहम्मद का था गद्य आधारित .

इसे वह होश हवास में बोलते थे, खुद को पैगम्बराना दर्जा देते हुए, हांलाकि यह उनकी जेहालत की बातें होतीं जिसे कठबैठी या कठ मुल्लई कहा जाय तो ठीक हो गा .

यही मुहम्मदी ''हदीसें'' कही जाती हैं.

क़ुरआन और हदीसों की बहुत सी बातें यकसाँ हैं, ज़ाहिर है एह ही शख्स के विचार हैं, ओलिमा-ए-दीन इसे मुसलामानों को इस तरह समझाते हैं कि अल्लाह ने क़ुरआन में कहा है जिस को हुज़ूर (मुहम्मद) ने हदीस फलाँ फलाँ में भी बयान फरमाया है.

अहले हदीस का भी एक बड़ा हल्का है जो मुहम्मद कि जेहालत पर कुर्बान होते हैं. शिया कहे जाने वाले मुस्लिम इससे चिढ्हते हैं क्यूँकि अक्सर हदीसें अली मौला एंड कम्पनी का पोल खोलती है.

मुसलमानों! जागो क्या तुम को मालूम है कि तुम पामाल हो रहे हो ? कभी सोचा है कि इसकी वजह क्या हो सकती है ? इस की वजह है तुम्हें घुट्टी मे पिलाया गया इसलाम और तुम्हारे वजूद पर छाए हुए शैतानी आलिमाने इसलाम.

कुरान तुम्हारा पैदाइशी दुश्मन है जो कहता है

"अल्लाह की राह में क़त्ताल करो."

इसके रद्दे अमल में सारी मुहज्ज़ब दुन्या तुमको क़त्ल करके ज़मीन को पाक कर देगी. अभी वक़्त है तरके इसलाम करके ईमान को पकडो, मुस्लिम से मोमिन हो जाओ बहुत आसान है ये काम, बस तुम्हारे पक्के इरादे कि ज़रुरत है.

देखिए कि क़ुरआनी मक्र कैसी कैसी बातें करता है - - -


"सब चीजें अल्लाह की पाकी बयान करती हैं, जो कुछ कि आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है. वही ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है. ऐ ईमान वालो ! ऐसी बात क्यूँ कहते हो जो करते नहीं? अल्लाह के नज़दीक ये बात बड़ी नाराज़ी की बात है कि ऐसी बात कहो और करो नहीं."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१-३)

और खुद साख्ता रसूल की नापाकी भी बयान करता है, कि उनकी करनी और कथनी में बड़ा फर्क है. जो मोमिन को गुमराह करके मुस्लिम बनाते हैं.


"जब मूसा ने अपनी कौम से फ़रमाया कि ऐ मेरी कौम मुझको क्यूँ ईज़ा पहुंचाते हो , हालांकि तुम को मालूम है कि मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ . फिर जब वह लोग टेढ़े हो रहे तो अल्लाह तअला ने इन्हें और टेढ़ा कर दिया."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (५)

मूसा एक ज़ालिम तरीन इंसान था, तौरेत उठा कर इसकी जन्गी दस्ताने पढ़ें.

अल्लाह टेढ़ा तो नहीं होता मगर हाँ मुहम्मदी अल्लाह पैदायशी टेढ़ा है. कहते हैं, "हालांकि तुम को मालूम है कि मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ" सभी शरीफ और शैतान अल्लाह के भेजे हुए ज़मीन पर आते हैं. मुहम्मद के सच में भी झूट की आमेज़िश है.


"जब ईसा बिन मरियम ने बनी इस्राईल से फ़रमाया कि ऐ बनी इस्राईल! मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ कि मुझ से पहले जो तौरेत आ चुकी है, मैं इसकी तस्दीक करने वाला हूँ और मेरे बाद जो रसूल आने वाले हैं, जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ, फिर जब वह उनके पास खुली दलीलें ले तो वह लोग कहने लगे सरीह जादू है."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (६)

न ईसा पर इंजील नाज़िल हुई और न मूसा पर तौरेत. तौरेत यहूदियों का खानदानी इतिहास है, ये आसमान से नहीं उतरी और न इंजील आसमान से टपकी.

इंजील भी ईसा के साथ रहने वाले हवारियो (धोबियों) का दिया हुवा बयान है जो ईसा के खास हुवा करते थे.

इंसानी जन्गों ने मूसा, ईसा और मुहम्मद को पैगामबर बनाए हुए है.


मुसलमानों ! तुमको कुरआन सफेद झूट में मुब्तिला किए हुए है कि इंजील में कोई इबारत ऐसी दर्ज हो कि "जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ "

झूठे ओलिमा तुमको अंधरे में रख कर अपनी हलुवा पूरी अख्ज़ कर रहे है. मुहम्मद मूसा और ईसा के मार्फ़त लोगों से झूटी बयान बाजियां कर रहे हैं कि जैसे उनके परवानो ने उनको माना, उसी तरह तुम मुझको मान लो.

"उस शख्स से ज्यादह ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट बाँधे, हाँलाकि वह इस्लाम की तरफ बुलाया जाता है."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (७)

ये क़ुरआनी तकिया कलाम है,

अल्लाह की जेहालत को न मानना ज़ुल्म है

और बेकुसूर लोगों पर जंग थोपना सवाब है.


"ये लोग चाहते हैं कि अल्लाह के नूर को अपने मुँह से फूंक मार कर बुझा दें हाँला कि अल्लाह अपने नूर को कमाल तक पहुँचा कर रहेगा. गो काफ़िर लोग कितना ही नाखुश हों "
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (८)

मुहम्मद की कठ मुललई पर सिर्फ़ हँस सकते हो. मुसलमानों! इस अल्लाह की हक़ीक़त ऐसी ही है कि तुम जागो और इसे एक फूँक मार कर बुझा दो,

एक हौसले के साथ उट्ठो और इस अल्लाह की ज़ालिम सूरत पर एक फूँक मारो,

बस कि सदाक़त की फूँक,

ईमान की फूँक,

ऐसी हो कि इसकी धुवाँ भरी रौशनी पर उमड़ पड़े

कि तुम्हारे भीतर का इस्लामी धुवाँ मिट जाए

और तुम अपने आप में खुद रौशन हो जाओ.

"आप्पो दीपो भवः" (अपनी रौशनी में रौशन हो जाओ)


"वह अल्लाह ऐसा है जिसने अपने रसूल को सच्चा दीन देकर भेजा है, ताकि इसको तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दे, गोकि मुशरिक कितने भी नाखुश हों."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (९)

अगर तमाम दीन अल्लाह के भेजे हुए हैं तो किसी एक को ग़ालिब करने का क्या जवाज़ है? अल्लाह न हुवा कोई पहेलवान हुवा जो अपने शागिदों में किसी को अज़ीज़ और किसी को गलीज़ समझता है. ऐसा अल्लाह खुद गलाज़त का शिकार है.


"ऐ ईमान वालो ! क्या मैं तुमको ऐसी सौदागरी बतलाऊँ कि दूर तक अज़ाब से बचा सके, कि तुम लोग अल्लाह पर और इसके रसूल पर ईमान लाओ और अल्लाह की राह में अपने माल और अपनी जान से जेहाद करो ये तुम्हारे लिए बहुत बेहतर है, अगर तुम कुछ समझ रखते हो."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१०-११) जंगी प्यास से बुझी हुई ये आयतें क्या किसी पाक परवर दिगार की हो सकती हैं?

ये वहशी मुहम्मद की आवाज़ है.


"जैसा कि ईसा इब्ने मरियम ने हवारीन से फ़रमाया कि अल्लाह के वास्ते मेरा कौन मददगार होता है ? हवारीन बोले हम अल्लाह मददगार होते हालांकि सो बनी इस्राईल में कुछ लोग ईमान लाए , कुछ लोग मुनकिर रहे सो हमने ईमान वालों के दुश्मनों के मुकाबिले ताईद की सो वह ग़ालिब रहे."
सूरह सफ़ ६१- पारा -२८ आयत (१४)

मुहम्मद मक्का के काफिरों को हवारीन बना रहे हैं. मुहम्मद अपनी एडी की गलाज़ात उस अज़ीम हस्ती ईसा की एडी में लगाने की कोशिश कर रहे हैं. उस कलन्दर का जँग से क्या वास्ता. उसका तो कौल है - - -

"अपनी तलवार मियान में रख ले, क्यूँ कि जो तलवार चलाते हैं, वह सब तलवार से ही ख़त्म किए जाते हैं."


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. बिल्कुल ठीक कहा आपने मोमिन जी, आपका एक-एक शब्द सुनकर लगता है कि क्‍या ही अच्‍छा होता अगर हर धर्म में आप जैसे हजारों लोग इन धार्मिक वहमों (जिसमें सभी धर्म शामिल हैं जैसा आपने कहा)से लोगों को निकालकर विज्ञान और मानवता के दो आधारों को ही सत्‍य मानने की शिक्षा देते!! मुझे गर्व है आप पर मोमिन जी कि अब मैं कह सकता हूँ कि भले ही सभी मुस्लिम अंधेरे में पैदा होने के लिए अभिशप्‍त होते हैं लेकिन उन्‍हीं में से कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी अंतरात्‍मा के प्रकाश में झांककर उस खौफनाक और डरावने अंधेरे को चीर कर सत्‍य को देखने में सक्षम होते हैं और उस अंधेरे में जन्‍मजात फंसे दूसरे मजलूम मुस्लिमों को भी उस प्रकाश के दर्शन करने के लिए प्रेरित करते हैं... मेरा साधुवाद और मेरी शुभकामनाएं सदा आपके साथ रहेंगी मोमिन जी, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि आपका संदेश अधिक मुस्लिमों तक पहुंच नहीं पा रहा है और जिन तक पहुंच पा रहा है उन में से अधिकतर आपके संदेश को धैर्य से सुनने और समझने के स्‍थान पर सीधे बौखला कर नाराज हो जाते हैं और आपको इस्‍लाम का दुश्‍मन घोषित कर देते हैं... लेकिन जो सबसे महत्‍वपूर्ण बात वे भूल जाते हैं वह यह है कि आप मुहम्‍मद साहब द्वारा अपनी राजनैतिक वासनाओं को पूरा करने के लिए चलाए गए कुचक्ररूपी इस्‍लाम के तो दुश्‍मन हैं लेकिन इस कुचक्र में फंसे करोड़ों मजबूर मुस्लिमों के लिए एक पथ प्रदर्शक हैं जो उनका कल्‍याण चाहता है... सवाल यह है कि अधिक से अधिक मुस्लिमों को इस बात की समझ कैसे दी जाए ताकि वे आपकी बात का मनन कर अपना, अपने परिवार का तथा बड़े संदर्भ में समूचे विश्‍व का भला करने की ओर अग्रसर हों???

    सादर तथा साभार -

    दिनेश प्रताप सिंह

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  2. दिनेश बिल्कुल ठीक कह रहे हैं.. धर्म और अंध-दौड़ में अन्तर होना ही चाहिये...

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