Monday 14 March 2011

सूरह रहमान ५५ -पारा २७ (1)

मेरी तहरीर में - - -


क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह रहमान ५५ -पारा २७ (1)



मैं इस्लाम का आम जानकर हूँ , इसका आलिम फ़ाज़िल नहीं. इस की गहराइयों में जाकर देखा तो इसका मुनकिर हो गया, सिने बलूगत में आकर जब इस पर नज़रे सानी किया तो जाना कि इसमें तो कोई गहराई ही नहीं है. लिहाज़ा इसके अम्बारी लिटरेचर से सर को बोझिल करना मुनासिब नहीं समझा. जिन पर नज़र गई तो पाया कि कलिमा ए हक के नाहक जवाज़ थे. हो सकता है कि कहीं पर मेरी अधूरी जानकारी दर पेश आ जाए मगर मेरी तहरीक में इसकी कोई अहमियत नहीं है, क्यूँ कि इनकी बहसें बाहमी इख्तेलाफ़ और तजाऊज़ ओ जुमूद के दरमियान हैं. टोपी लगा कर नमाज़ पढ़ी जाए, बगैर टोपी पहने भी नमाज़ जायज़ है, ये इनके मौज़ू हुवा करते हैं. मेरा सवाल है नमाज़ पढ़ते ही क्यूँ हो? मेरा मिशन है मुसलामानों को इस्लामी नज़र बंदी से नजात दिलाना
सूरह रहमान को मेरी नानी बड़े ही दिलकश लहेन में पढ़ती थीं उनकी नकल में मैं भी इसे गाता था. उनके हाफिज़ जी ने उनको बतलाया था कि इस सूरह में अल्लाह ने अपनी बख्शी हुई नेमतों का ज़िक्र किया है .सूरह को अगर अरबी गीत कहीं तो उसका मुखड़ा यूँ था,
"फबेअय्या आलाय रबबोकमा तोकज्ज़ेबान " यानी
"सो जिन्न ओ इंसान तुम अपने रब के कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे"जब तक मेरा शऊर बेदार नहीं हुवा था मैं अल्लाह की नेमतो का मुतमन्नी रहा कि उसने हमें अच्छे और लज़ीज़ खाने का वादा किया होगा, बेहतरीन कपड़ों का, शानदार मकानों का और दर्जनों ऐशों का ख़याल दिल में आता बल्कि हर सहूलत का तसव्वुर ज़ेहन में आता कि अल्लाह के पास क्या कमी होगी जो हमें न नसीब होगा ? इसी लालच में मैंने नमाज़ें पढना शुरू कर दिया था.
जब मैंने दुन्या देखी और उसके बाद क़ुरआनी कीड़ा बन्ने की नौबत आई तो पाया की अल्लाह की बातों में, मैं भी आ गया.
इस सूरह पर मेरा यही तबसरा है मगर आपसे गुज़ारिश है कि सूरह का पूरा तर्जुमा ज़रूर पढ़ें."रहमान ने, (१)
क़ुरआन की तालीम दी, (२)
इसने इंसान को पैदा किया, (३)
इसको गोयाई सिखलाई, (४)
सूरज और चाँद हिसाब के साथ हैं, (५)
और बे तने के दरख़्त और तने दार दरख़्त मती(क़ैदी) है, (६)
और इसी ने आसमान को ऊँचा किया और इसी ने तराज़ू रख दी, (७)
ताकि तुम तौलने में कमी बेश न करो, (८)
और इन्साफ़ और हक़ के साथ वज़न को ठीक रक्खो और तौल को घटाओ मत. (९)
इसी ने खिल्क़त के वास्ते ज़मीन को रख दिया, (१०)
कि इसमें मेवे हैं और खजूर के दरख़्त हैं जिन पर गिलाफ़ होता है, (११)
और ग़ल्ला है जिसमें भूसा होता है और गिज़ा की चीज़ है, (१२)
सो जिन्न और इन्स! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे? (१३)
सूरह रहमान - ५५-पारा २७- आयत (१-१३)
{रहमान की १३ नेमतें}

इसी ने इंसान को ऐसी मिटटी से जो ठीकरे की तरह बजती थी, से पैदा किया, जिन्नात को आग से. {नेमत१४}सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत१५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत१६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत१७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, {नेमत१८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत१९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी से सब ज़मीन और आसमान वाले मानते हैं , वह हर वक़्त किसी न किसी कम में रहता है.{नेमत२०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया, {नेमत२१} .सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत२२}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत२३}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत२४}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, {नेमत२५}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"जितने रूए ज़मीन पर मौजूद हैं, सब फ़ना हो जाएँगे और आप के परवर दिगार की ज़ात जो अज़मत वाली और एहसान वाली है बाक़ी रह जाएगी, {नेमत२६}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी ने इंसान को जो ठीकरे की तरह बजती हैसे पैदा किया.{नेमत२७}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""वह मगरिब ओ मशरक दोनों का मालिक है, {नेमत२८}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इसी ने दो दरयाओं को मिलाया कि बाहम मिले हुए है, इन दोनों के दरमियान एक हिजाब है कि दोनों बढ़ नहीं सकते, {नेमत२९}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"इन दोनों से मोती और मूंगा बार आमद होता है, {नेमत३०}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?""इसी के हैं जहाज़ जो पहाड़ों की तरह ऊंचे हैं, {नेमत३१}
सो जिन्न और इन्स ! तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों से मुनकिर हो जाओगे?"मुसलमानों! तुम्हारे लिए मुहम्मदी अल्लाह का यही वरदान है जो सूरह रहमान में है. हिम्मत करके इस अनचाहे वरदान को कुबूल करने से इंकार कर दो, क्यूँक तुम्हारी नस्लें इस बात की मुन्तज़िर हैं कि उनको इस वहशी अल्लाह से नजात मिले.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. मोमिन साहब,
    आदाब,
    आप की तहरीर नज़र से गुजरी और दिल में उतर गई. मैं भी मुसलमान था मगर अब मोमिन हो गया हूँ. आप कौम की रहनुमाई सही तौर पर कर रहे हैं. कोशिश जारी रक्खें.

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