मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६
सत्तईस्वें पारे के बाद मुहम्मद को कसमें खाने का चस्का सा लग गया है. शायद उन की बातों में झूट का इज़ाफ़ा हो गया हो. वह हर बात क़सम खा कर शुरू करते हैं. क़सम खा कर कहते हैं - - -"क़सम है क़ुरआन मजीद की की, बल्कि इनको इस बात का तअज्जुब हुवा कि इनके पास इन्हीं में से कोई डराने वाला आ गया. सो काफ़िर कहने लगे कि ये अजीब बात है.
- - - अल्लाह अपनी तखलीक को बार बार दोहराता है कि ज़मीन, आसमान, सितारे, पहाड़, पेड़ और फसलें सब उह्की करामात से हुए. जो ज़रीआ बीनाई और दानाई है."सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (१-७)अल्लाह ने अपनी किताब की इतनी ज़ोर की क़सम बिला किसी वजह की खाई. अरबी ज़बान में "बल्कि " का इतेमाल ऐसे ही होता है तो अरबी अल्लाह की कवायद पर अफ़सोस ही है. ये बात अक्सर क़ुरआन में आती है जिसे हम अहले ज़बान उर्दू को खटकती है. मुझे लगता है मुहम्मद की उम्मियत का इसमें दख्ल है.
- - - अल्लाह अपनी तखलीक को बार बार दोहराता है कि ज़मीन, आसमान, सितारे, पहाड़, पेड़ और फसलें सब उह्की करामात से हुए. जो ज़रीआ बीनाई और दानाई है."सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (१-७)अल्लाह ने अपनी किताब की इतनी ज़ोर की क़सम बिला किसी वजह की खाई. अरबी ज़बान में "बल्कि " का इतेमाल ऐसे ही होता है तो अरबी अल्लाह की कवायद पर अफ़सोस ही है. ये बात अक्सर क़ुरआन में आती है जिसे हम अहले ज़बान उर्दू को खटकती है. मुझे लगता है मुहम्मद की उम्मियत का इसमें दख्ल है.
ये डराने वाला किरदार मुहम्मद ने अनोखा अपनी उम्मत के लिए पैदा किया है. उनके पास आगाह, तंबीह या ख़बरदार करने वाले अलफ़ाज़ शायद न रहे हों.
भला काफ़िर ओ मुनकिर को इस बात पर नए सिरे से यक़ीन करने की क्या ज़रुरत है कि अल्लाह की कुदरत से ही इस कायनात का कारोबार चल रहा है. इनका कब दावा था कि ये ज़मीन और आसमान इनकी देवी देवताओं ने बनाया. वह तो बानिए कायनात का तसव्वर करने में नाकाम रहने के बाद उसको एक शक्ल देकर उसमें उसको सजा कर उसकी ही पूजा करते हैं. इस मामूली सी बात को खुद नादान मुसलमान नहीं समझते. संत कबीर ने यादे इलाही को मर्कज़ियत देने के लिए "सालिग राम की बटीया " बना कर ईश्वर को उसमे समेटा ताकि ध्यान उस पर कायम रहे. ओलिमा कुरआन मुसलामानों को इस तरह समझाते हैं गोया उस वक्त के काफिरों का दावा था कि सब कुछ उनके बुतों की माया थी जो ज़मीन ओ आसमान में है.
"जब दो अख्ज़ करने वाले फ़रिश्ते अख्ज़ करते हैं जो कि दाएँ और बाएँ तरफ बैठे रहते हैं. वह कोई लफ्ज़ मुँह से निकलने नहीं पाता मगर इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."जब अल्लाह इंसान के रगे गर्दन के क़रीब रहता है और दिलों की बातें जानता है तो उसने बन्दों के दाएँ बाएँ अख्ज़ करने वाले फरिश्तों को अपनी मुलाज़मत में क्यूँ रख छोड़े है? ये तो अल्लाह नहीं इंसान जैसा लग रहा है कि जिसको दो गवाहों की ज़रुरत होती है. अल्लाह बे वकूफ इंसान जैसी बातें भी करता है "क्या हम पहली बार पैदा करने में थक गए हैं?" या "इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."कुरान में जाहिल मुहम्मद की जेहालत साफ़ साफ़ झलती है मगर मुसलामानों की आँखों पर पर्दा पड़ा हुवा है.
मुहम्मद तरह तरह की ड्रामा निगारी कुरआन की हर सूरह में अलग अलग तरह से करते हैं, गौर करें कि खरबों इन्सान के साथ उनके दो गुना फ़रिश्ते और हर के साथ एक अदद शैतान होगा, मगर मुक़दमा सिर्फ़ एक अल्लाह सुनेगा?
मगर अल्लाह की हिकमत के लिए हर काम मुमकिन है, इसके लिए इतना बड़ा झूट गढ़ा ही इस तरह से है.. अक्सर मुहम्मद "दूर दराज़ की गुमराही" का इस्तेमाल करते हैं ,ये गुमराही की कौन सी सिंफ होती है?
"अल्लाह इरशाद करेगा, मेरे सामने झगडे की बातें मत करो. मैं तो पहले ही तुम्हारे पास वईद भेज चुका हूँ. "सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (२८)मुसलामानों तुहारा अल्लाह क्या इस तरह का शिद्दत पसंद है?हर इंसान की तरह ही अपने माँ के पेट से निकले हुए मुहम्मद तुम्हारे अल्लाह बन गए हैं,
जागो!
बहुत देर हो चुकी है फिर भी अभी वक़्त है.
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (३१)क्यूँकि मुत्तकियों के लिए वहाँ शराब, कबाब और शबाब मुफ्त होंगे. इतना ही नहीं इग्लाम बाज़ी भी मयस्सर होगी जिस अमल को इस दुन्या में करने से शर्मिंदगी होती थी.
ऐसी जन्नत पर लअनत है और इसकी चाहत रखने वालों पर भी धिक्कार.
."सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (४२-४४) मुसलमानों! तुम भोले भले हो, या अहमक कि जिस अल्लाह कू तुम पूजते हो वह जो जलाता है और मरता है? या फिर कलमा ए शहादत पढ़ लो तो तुमको जन्नत में दाखिल क़र देगा.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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